Book Title: Taporatna Mahodadhi Author(s): Bhaktivijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 9
________________ तपोरत्नमहोदधि 119 11 दरेक तपोनुं विधान शास्त्राधार साथै जणावेल अनेक ग्रंथो, बुको, तपना टीपणाओ, छूटक पत्रोमाथी तेमज चालु प्रचार 'विगेरेथी जेटला जाणवामां आव्या तेटला बधा संपादक महात्माए ग्रंथमां दाखल करेल छे. आ ग्रंथमां आवेल तपोना विधिविधानमा जे अपूर्णता हती, ते वृद्ध परंपराथी मेळवी, अनुभवीने पूछीने संपादक महाराजे दूर करी ले. जे जे तपना गुणणामां स्त्रीओ माटे शब्दो काठीन्य जणाया छे त्यां त्यां बीजा सरळ शब्दोवाळा गुणणा बताच्या छे तेनाथी चाली शकशे छतां मां सुधाराने अवकाश होई कोई स्थळे स्खलना होय के द्रष्टि दापथी के प्रेसदोपथी भूल रही गई होय तो अमोने लखी जणाववा कृपा करवी, जेथी ते सुधारी लेवामां आवशे. जावा प्रमाणें अत्यार सुधी अनवस्थितपणे अनेक प्रकारना तपो करवामां आवता हता ते एकसरखी संकलनाथी करवा कराववामां आवे अने अनेक अप्रगट रहेल तपोनी माहिती सर्व तपाभिलाषीओने मळे ए आ ग्रंथ प्रसिद्ध करवानो हेतु पण छे. आ ग्रंथ मननपूर्वक यांची श्री चतुर्विध श्रीसंघ आ ग्रंथमां आपेला तप करवाने उजमाळ थाओ अने तेनो लाभ संशोधक महाराजश्री तथा आर्थिक सहाय आपनारने तथा आ सभाने प्राप्त थाओ एम इच्छी आ प्रस्तावना समाप्त करीए छीए. आ ग्रंथनी प्रथम आवृत्ति सभाना प्रमुख शेठ श्री गुलाबचंद आनंदजीना स्वर्गवासी पूज्य पिता शेठ श्री आनंदजी पुरुषोत्तमनी सीझ तरीके ते वखतना सभाना धारा सुजन प्रगट करवामां आवी हती. परंतु अत्यारे सख्त मोंचवारीना सबवे तेमणे आपली सीरी झनी रकममांथी आ ग्रंथ प्रगट न थई शकवाथी आ बीजी आवृत्तिमां गं. स्व. श्री हीराबहेने रु. ५०१) मददना आप्या ते आभार साधे आ ग्रंथ प्रगट करवामां आव्यो हे. आत्मानंद भवन ज्ञानपंचमी ( संवत २००२ ) } गांधी वल्लभदास त्रिभुवनदास - भावनगर Jain Education International For Private & Personal Use Only) प्रस्तावना ॥७॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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