Book Title: Taporatna Mahodadhi
Author(s): Bhaktivijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ पोरत्नमहोदधि ॥ १० ॥ यदूरं यदुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम् । तत्सर्वं तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रमम् ॥ २॥ अर्थ - जे ( वस्तु ) अत्यंत दूर छे, जे दुःखवडे आराधी शकाय तेवी छे, तथा जे दूर रहेली छे ते सर्व वस्तु तपस्यावडे साध्य छे. कारण के तपस्या एटले तपस्यानो प्रभाव दुरतिक्रम छे, एटले तेने कोइ उल्लंघन करी शके तेम नथी. २ तपः शिवकुमारवच्चरति मन्दिरस्थोऽपि यः स देवपरिषद्यपि द्युतिमहत्त्व विस्फुर्तिभृत् । कृशान्वकृशता पनोल्लसितवर्णकं काञ्चनं स धातुष्षु विशिष्टतां नृपतिमौलितामेति च ॥ ३ ॥ अर्थ - जे माणस शिवकुमारनी जेम गृहस्थाश्रममां रहीने पण तपस्यानुं आचरण करे छे, ते मनुष्य देवसभामां कांति अने महत्वनी स्फुर्तिने धारण करनार ) थाय छे. जेम अग्निना घणा तापमां तपाववाथी जेनो वर्ण उल्लास पांमेलो छे एवं सुवर्ण सर्व धातुओमां विशिष्टपणाने अने राजाना मुगटपणाने पामे छे, तेम ते सर्व मनुष्योमां विशिष्टपणुं अने राजाओमां शिरोमणिपणुं पामे छे. ३. तपः सकलकर्मभिद्विविधलब्धिनिश्चितं गृहे पुरि च दुर्भगोऽप्यहद्द नन्दिषेणो द्विजः । व्रते शमतपः परः सुरनरैकवंद्योऽभवद्रविज्वलन तापितः श्रयति दीप्तिमामो घटः ॥ ४ ॥ अर्थ — तप समग्र कर्मने भेदनारो छे अने विविध प्रकारनी लब्धिने प्राप्त करनारो छे. अहो ! नंदिषेण नामनो ब्राह्मण | पोताना घरमा तथा नगरमां पण महादुर्गामी हतो, ते चारित्र ग्रहण करीने शमयुक्त तपमां तत्पर थवाथी देव तथा मनुsra बंदन करवा योग्य थया. जुओ ! " सूर्य अने अनिथी तपावेलो काचो घडो पण कांतिने पामे छे, " ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only) 300 तपमहिमातप विधान ॥ १० ॥ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 204