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ताओ उपनिषद भाग ३
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कोई मौका ही न दें... क्योंकि भला करना महंगा काम है, सभी के लिए सुविधापूर्ण नहीं है; बुरा करना सस्ता काम है, सभी कर सकते हैं।
तो अगर मैं एक आदमी को पैसे की सहायता पहुंचाए चला जा रहा हूं तो जरूरी नहीं है कि कभी ऐसी हालत हो जाए कि मुझे पैसा उससे मांगना पड़े। जरूरी नहीं है। क्योंकि जिनके पास है उनके पास और इकट्ठा होता चला जाता है और जिनके पास नहीं है उनसे और छिनता चला जाता है। वह आदमी भी चाहता है कि कभी मुझे दान करे। वह मौका न मिले तो फिर क्या करे वह आदमी ? बुरा कोई भी कर सकता है; बुरा सस्ता काम है। वह कुछ मेरे लिए बुरा करे और मुझे नीचा दिखाए, मेरे संबंध में कुछ अफवाहें उड़ाए, मेरे संबंध में कुछ निंदा चलाए, कोई उपाय करे – कोई उपाय करे कि मैं नीचे हो जाऊं ! जिस दिन उपाय करके वह मुझे नीचा दिखा देगा, बैलेंस हो जाएगा। हमारा निबटारा हो जाएगा; लेन-देन बराबर हो जाएगा।
नीत्शे ने बहुत ही कठोर व्यंग्य किया है जीसस पर । क्योंकि जीसस ने कहा है कि तुम्हारे गाल पर जो एक चांटा मारे, तुम दूसरा गाल उसके सामने कर देना । हम कहेंगे कि इससे ज्यादा श्रेष्ठ सिद्धांत और क्या होगा ! नीत्शे ने कहा है, ऐसा अपमान भूल कर मत करना किसी का कि कोई आदमी तुम्हारे गाल पर एक चांटा मारे तो तुम दूसरा उसके सामने मत कर देना। नहीं तो तुम तो ईश्वर हो जाओगे और वह कीड़ा हो जाएगा । और यह क्षम्य नहीं है। अच्छा हो कि तुम भी एक करारा चांटा उसको मार देना, तुम कम से कम दोनों आदमी तो रहोगे। दूसरे को भी आदमी होने की इज्जत देना ।
जीसस की ऐसी आलोचना किसी दूसरे व्यक्ति ने नहीं की है। लेकिन कोई दूसरा कर भी नहीं सकता । नीत्शे की हैसियत का आदमी चाहिए। वह ठीक जीसस की हैसियत का आदमी है। लेकिन इसका मतलब क्या हुआ ? इसका मतलब हुआ कि शुभ भी अशुभ हो सकता है। आपने मेरे गाल पर चांटा मारा और मैंने दूसरा आपके सामने कर दिया; बड़ा शुभ कार्य कर रहा हूं मैं । लेकिन यह अशुभ हो सकता है, यह अपमानजनक हो सकता है। शायद यही सम्मानपूर्ण होता कि मैं एक चांटा आपको मारता और हम बराबर हो गए होते। उसमें आपकी इज्जत थी ।
क्या है शुभ ? क्या है अशुभ ?
जीसस ने कहा है, कनफ्यूशियस ने भी कहा है, महाभारत में भी वही सूत्र है, सारी दुनिया के धर्मों ने उसको आधार माना है कि तुम दूसरे के साथ वही करना जो तुम चाहो कि दूसरा तुम्हारे साथ करे। यह शुभ की परिभाषा है। लेकिन नीत्शे ने कहा है कि यह जरूरी नहीं है; स्वाद अलग-अलग भी होते हैं। जरूरी नहीं है, रुचियां भिन्न होती हैं। जरूरी नहीं है कि तुम जो चाहते हो दूसरा तुम्हारे साथ करे, वही तुम उसके साथ करो। क्योंकि उसकी रुचि भिन्न हो सकती है, वह चाहता ही न हो कि कोई उसके साथ ऐसा करे। यह जरा कठिन है; थोड़ा जटिल है।
बर्नार्ड शॉ ने उसको ठीक मजाक पर, सरल ढंग पर रखा है। उसने कहा है कि मैं चाहता हूं कि आप मेरा चुंबन करें, इसलिए मैं आपका चुंबन करूं ? तो आपको सिद्धांत समझ में आ जाएगा। जीसस कहते हैं, तुम वही करना दूसरे के साथ, जैसा तुम चाहते हो कि दूसरा तुम्हारे साथ करे । बर्नार्ड शॉ कहता है कि मैं चाहता हूं कि आप मेरा चुंबन करें तो मैं आपका चुंबन करूं ? जरूरी नहीं है चुंबन लौटे। फिर क्या होगा ?
शुभ और अशुभ इतना आसान नहीं कि बांट कर रखे जा सकें। सब श्रेणियां, जो आदमी ने बनाई हैं, बचकानी हैं। कामचलाऊ हैं, लेकिन बचकानी हैं। गहन चिंतन तो कहता है कि शुभ और अशुभ एक ही बात हैं। और इसलिए जो जानता है— दूसरों से सीख कर नहीं, जो अपने भीतर से जानता है—उसके लिए कोई चीज शुभ और अशुभ नहीं होती। सहज जीता है; उससे जो हो जाता है, वही शुभ है।
इस फर्क को आप समझ लें। एक तो व्यक्ति है, जो दूसरों से सीखता है: क्या शुभ है, क्या अशुभ है। नियम