Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 3
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free ताओ उपनिषाद-भाग-1) प्रवचन-1 ताओ उपनिषाद-(भाग-1) ओशो ओशो द्वारा लाओत्से के 'ताओ तेह किंग' पर दिए गए 127 प्रवचनों में से पहले 22 अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन लोओत्से की किताब जमीन पर बचने वाली उन थोड़ी सी किताबों में से एक है, जो पूरी तरह शुद्ध है। इसमें कुछ जोड़ा नहीं जा सकता। न जोड़ने का कारण यह है कि जो लाओत्से कहता है, लाओत्से की हैसियत का व्यक्ति ही उसमें कुछ जोड़ सकता है। किसी को कुछ जोड़ना हो तो लाओत्से होना पड़े। और लाओत्से होकर जोड़ने में फिर कोई हर्ज नहीं है। जिन्होंने जाना है-शब्दों से नहीं,शास्त्रों से नहीं,वरन जीवन से ही, जीकर लाओत्से उन थोडे से लोगों में से एक है। और जिन्होंने केवल जाना ही नहीं है। वरन जानने की भी अथक चेष्टा की है-लाओत्से उन और भी बहुत थोड़े से लोगों में से एक है। ओशो सनातन व अविकारी ताओ-पहला प्रवचन अध्याय 1: सूत्र 1 परम ताओ जिस पथ पर विचरण किया जा सके, वह सनातन और अविकारी पथ नहीं है। जिसके नाम का सुमिरण हो, वह कालजयी एवं सदा एकरस रहने वाला नाम नहीं है। जिन्होंने जाना है-शब्दों से नहीं, शास्त्रों से नहीं, वरन जीवन से ही, जीकर-लाओत्से उन थोड़े से लोगों में से एक है। और जिन्होंने केवल जाना ही नहीं है, वरन जनाने की भी अथक चेष्टा की है-लाओत्से उन और भी बहुत थोड़े से लोगों में से एक है। लेकिन जिन्होंने भी जाना है और जिन्होंने भी दूसरों को जनाने की कोशिश की है, उनका प्राथमिक अनुभव यही है कि जो कहा जा सकता है, वह सत्य नहीं है; जो वाणी का आकार ले सकता है, आकार लेते ही अपनी निराकार सत्ता को अनिवार्यतया खो देता है। जैसे कोई आकाश को चित्रित करे, तो आकाश कभी भी चित्रित नहीं होगा; जो भी चित्र में बनेगा, निश्चित ही वह आकाश नहीं है। आकाश तो वह है जो सबको घेरे हुए है; चित्र तो किसी को भी नहीं घेर पाएगा। चित्र तो स्वयं ही आकाश से घिरा हुआ है। तो चित्र में बना हुआ जैसा आकाश होगा, ऐसे ही शब्द में बना हुआ सत्य होगा। न तो चित्र में बने आकाश में पक्षी उड़ सकेगा, न चित्र में बने आकाश में सूरज निकलेगा, न रात तारे दिखाई पड़ेंगे। चित्र का आकाश तो होगा मृत; कहने को ही आकाश होगा, नाम ही भर आकाश होगा। आकाश के होने की कोई संभावना चित्र में नहीं है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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