Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 3
________________ [ प्रकाशकीय ___ जैन जगत् में आजकल अधिकांश जन-संघ, स्वप्नद्रव्य को देवद्रव्य मानने की शास्त्रसिद्ध परम्परा का पालन कर रहे हैं, तदपि इस द्रव्य को साधारण में ले जाने की और उसकी बोली पर अतिरिक्त चार्ज लगाकर, उसे साधारण खाते में खताने की एक अवांछनीय बात पिछले कई वर्षों से चल रही है। ऐसी स्थिति में उस बात का सचोट खण्डन करने वाली किसी पुस्तक के प्रकाशन की महत्ती आवश्यकता वर्षों से अनुभव की जा रही थी। इस महत्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करने का पुण्य पू. पाद परम शासन प्रभावक जैन शासन ज्योतिधर व्याख्यान वाचस्पति आचाय देव श्रीमद् विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजश्री के पट्टालंकार परम पूज्य शान्त आचार्यदेव श्रीमद् विजय कनकचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की कृपा से हमारी संस्था श्री विश्वमंगल प्रकाशन मन्दिर, पाटन को मिल रहा है-यह आनन्द की बात है। ___ इस संस्था की स्थापना पू. पाद प्रवचन प्रभावक आचार्यदेव श्रीमद् विजय कनकचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के शिष्य रत्न श्रुतोपासक पूज्य उपाध्यायजी महाराज श्री महिमा विजयजी गणिवर श्री के उपदेश से हुई थी। तब से आज तक यह संस्था उत्तरोत्तर उपयोगी प्रकाशनों का साहित्य-थाल समाज के सामने रखने में सफल हुई है, यह इन पूज्यों की कृपादृष्टि का ही परिणाम है। इस पुस्तक का प्रकाशन भी उस कृपादृष्टि का ही एक प्रतीक है ! . . पूज्य आचार्यदेवश्री ने बहुत ही परिश्रम से सम्पादन-संकलन किया है, फलस्वरूप यह पुस्तक देवद्रव्य विषयक जानकारी के लिए एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज के समान बन गई है । ऐसा सुन्दर साहित्य हमारी संस्था को प्रकाशित करने के लिए पू. प्रशान्तमूर्ति आचार्य भगवन्त श्रीमद्

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