Book Title: Sumitramantri Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit

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Page 5
________________ . सुमित्र C%EC %55- M शास्त्रमङ्गलदीपोद्यद्धाम्नि हन्नामधामनि / यस्यालीनौ भुजस्तम्भतोरणे मतिविक्रमौ // 7 // __ अर्थः-शास्त्रोरूपी मंगल दीवाथी उल्लसित तेजवाळां तथा भुजाभोरूपी स्तंभोना तोरणवाळां, एवां जेना हृदयरूपी महेलमां | बुद्धि अने पराक्रम छुपाइने रह्यां हतां // 7 // नृपतिर्नवतारुण्यः पुण्यकर्मपराङ्मुखः / उवाच सचिवाधीश कदाचिद्धार्धकाश्चितम् // 8 // ___अर्थ:-नवी उगती युवानीवाला ते राजाए पुण्य कार्योनो तिरस्कार करीने एक दिवसे वृद्धावस्थाथी शोभता एवा ते मन्त्रि| राजने का के, // 8 // देवार्चा-स्वकरोदाम दान-व्याख्याश्रवादिभिः / धर्म कृत्यैर्वपुर्मन्त्रिन्कि मुधा न्यायतेऽधुना // 9 // ____ अर्थ:-हे मंत्रीश्वर! देवपूजा, पोताना हाथे म्होटुं दान, तथा धर्मकथाना श्रावण आदिक धर्मकार्योधी आ वृद्धावस्थामा फोकट | तुं शरीरने शा माटे क्लेश आपे छे? // 9 // क एभिर्विफलैधर्मकर्मक्लेशर्भवादशः / जराकान्तमविश्रान्तमिति देहं दहत्यहो // 10 // अर्थः- अहो ! आवां निष्फलधर्मकार्योनां क्लेशथी ताराजेवो कयो माणस वृद्धावस्थाथी जीर्ण थयेलां शरीरने आविरीते एकदम बाळी मूके? // 10 // इत्युक्तः स्मितवक्त्रोऽयं मन्त्री धात्रीधवं जगौ / किं नृदेव त्वमप्येवमनौचित्येन भाषसे॥११॥ अर्थः-एम कहेवाथी मुखपर हास्य लावीने ते मन्त्रीए राजाने कडं के, हे राजन् ! तमो पण आवीरीते अयोग्यपणे केमबोलोछो? S -Ck

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