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________________ TWAL NATANTRVARIANTARVANTAANAAT // सुमित्रमंत्रिचरित्रम् // // श्रीजिनाय नमः // (मूल अने भाषांतर सहित) (द्वितीयावृत्तिः) HERE RERS * (कर्ता-श्रीवर्धमानमूरि) -छपावी प्रसिद्ध करनार:पण्डित हीरालाल हंसराज-जामनगर. RE (सने 1935) मुद्रक:-श्रीजेनभास्करोदय प्रिन्टिंग प्रेस. किंमत 0-8-0 (वीरसंवत् 2461) AM ALWILIVILIZIDIEO
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________________ सुमित्र // श्रीजिनाय नमः॥ // 1 // ॥श्रीसुमित्रमंत्रिचरित्रम्॥ *+ECIABASAHEEREk (कर्ता-श्रीवर्धमान सूरि) भाषांतरकर्ता तथा छपावी प्रसिद्ध करनार–पण्डित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाला) क्रियते दिखते मानसंक्षेपो यो दिवानिशम् / द्वितीयं तदिदं शिक्षाव्रतं देशावकाशिकम् // 1 // ____ अर्थः-दिशीव्रतमां हमेशां [ रातदहाडो ] जे प्रमाणनो संक्षेप करवामां आवे, तेने आ देशावकाशिक नामनुं बीजुं शिक्षाव्रत कहे छे. // 1 // देशावकाशिकं यावस्कुरुते श्रद्धया सुधीः / तदन्यत्रात्मनां तेमाभयं दत्तं भवेत्तदा // 2 //
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________________ सुमित्र RK+C+% . अर्थ:--उत्तम बुद्धिवान माणस श्रद्धाथी ज्यांसुधी देशावकाशिक व्रत करे छे त्यांसुधी ते प्रदेशनी बहार वसनारा प्राणीओने || तेणे त्यारे अभयदान आपेलु कहेवाय छे. // 2 // प्रभावादस्य नश्यन्ति विघ्नाः शुद्धात्मनामिह / सुमित्रस्येव जायन्ते परत्र च शुभश्रियः // 3 // अर्थः-ते व्रतना प्रभावथी सुमित्रनी पेठे निर्मल आत्मावाळा मनुष्योनां आ लोकमां विघ्नो नाश पामे छे, तथा परलोकर्मा उत्तम लक्ष्मी प्राप्त थाय छे. // 3 // . मुख्या पुरीततावस्ति भुवस्तिलकवत्पुरी / चन्द्रिकेति चतुर्वर्गश्रीनिरर्गलनागरा // 4 // __अर्थः-पृथ्वीना तिलकनी पेठे नगरीओनी श्रेणिमां मुख्य, तथा धर्म आदिक चारे वर्गोनी शोभाथी भरेला नागरिकोवाळी | चंद्रिकानमनी नगरी छे. // 4 // नासीरवीरश्वासोर्मिसमुड्डीनारिमण्डलः / तासपीड इति क्षमापस्तानपालयदुत्सवैः // 5 // __ अर्थः-संग्राममां आवेला सुभटोना (फक्त) श्वासोश्वासना मोजांभोथीज उडी गयेला छे शत्रुओना समूहो जेना एवो तारा|पीडनामनो राजा ते नगरीनु महोत्सवपूर्वक रक्षण करतो हतो. // 5 // तन्मन्त्री कीर्तिकुसुमं सुमित्राख्यः समन्ततः / विश्वसौरभ्यकृढ़ेजे जिनभक्तिलताद्रुमः // 6 // __अर्थ:--कीर्तिरूपी पुष्पोवाळो, तथा चोतरफथी जगतने सुगंधि करनारो, अने जिनेश्वरमभुनी भक्तिरूपी वेलडीने वृक्षसरखो सुमित्रनामनो तेनो मंत्रि इतो. // 6 // - R-RA- KA%AR BECOMot
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________________ . सुमित्र C%EC %55- M शास्त्रमङ्गलदीपोद्यद्धाम्नि हन्नामधामनि / यस्यालीनौ भुजस्तम्भतोरणे मतिविक्रमौ // 7 // __ अर्थः-शास्त्रोरूपी मंगल दीवाथी उल्लसित तेजवाळां तथा भुजाभोरूपी स्तंभोना तोरणवाळां, एवां जेना हृदयरूपी महेलमां | बुद्धि अने पराक्रम छुपाइने रह्यां हतां // 7 // नृपतिर्नवतारुण्यः पुण्यकर्मपराङ्मुखः / उवाच सचिवाधीश कदाचिद्धार्धकाश्चितम् // 8 // ___अर्थ:-नवी उगती युवानीवाला ते राजाए पुण्य कार्योनो तिरस्कार करीने एक दिवसे वृद्धावस्थाथी शोभता एवा ते मन्त्रि| राजने का के, // 8 // देवार्चा-स्वकरोदाम दान-व्याख्याश्रवादिभिः / धर्म कृत्यैर्वपुर्मन्त्रिन्कि मुधा न्यायतेऽधुना // 9 // ____ अर्थ:-हे मंत्रीश्वर! देवपूजा, पोताना हाथे म्होटुं दान, तथा धर्मकथाना श्रावण आदिक धर्मकार्योधी आ वृद्धावस्थामा फोकट | तुं शरीरने शा माटे क्लेश आपे छे? // 9 // क एभिर्विफलैधर्मकर्मक्लेशर्भवादशः / जराकान्तमविश्रान्तमिति देहं दहत्यहो // 10 // अर्थः- अहो ! आवां निष्फलधर्मकार्योनां क्लेशथी ताराजेवो कयो माणस वृद्धावस्थाथी जीर्ण थयेलां शरीरने आविरीते एकदम बाळी मूके? // 10 // इत्युक्तः स्मितवक्त्रोऽयं मन्त्री धात्रीधवं जगौ / किं नृदेव त्वमप्येवमनौचित्येन भाषसे॥११॥ अर्थः-एम कहेवाथी मुखपर हास्य लावीने ते मन्त्रीए राजाने कडं के, हे राजन् ! तमो पण आवीरीते अयोग्यपणे केमबोलोछो? S -Ck
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________________ चरित्रं // 4 // सुमित्र इच्छामि धर्मकृत्येषु त्वां कारयितुमुद्यमम् / मामपि त्वं तु किं नाथ निषेधयसि तेषु हा // 12 // अर्थः-(१ तो) तमोने धर्मकार्योमा उद्यम कराववाने इच्छु छ, एवामां हे स्वामी! तमो तो उलटा अरेरे! मने पण ते धर्मकृत्यो में करतां केम अटकावो छो ? 12 // धर्मः किं विफलः स स्यायत्प्रसादेन धीधनैः / निर्विघ्नैः स्वर्गमोक्षाणामपि सौख्यमवाप्यते॥१३॥ अर्थः-जेनी कृपाथी विघ्नविनाज बुद्धिवानो स्वर्ग अने मोक्षन सुख पण मेळवी शके छे, ते धर्म शुं निष्फल थाय छे? 13 ___ अथोचे सचिवो राज्ञा मम ज्ञापय मन्त्रिप / विघ्नोच्छिच्याथ संपत्या प्रत्यक्ष धर्मजं फलम्॥१४॥ अर्थः-त्यारे राजाए मंत्रिने कह्यु के, हे मंत्रिश्वर! विघ्नोना विनाशपूर्वक संपत्ति आपनारुं धर्मनुं फल मने तुं प्रत्यक्ष देखाड इत्युक्तिभाजं राजानं सचिवस्तमुवाच सः / त्वं नाथोऽन्ये तु ते भृत्याः साक्षादेतद्वि तत्फलम्॥१५।। अर्थः-एम बोलता ते राजाने ते मंत्रीए का के, तमो स्वामी छो, अने बीजाओ तमारा नोकर छे, एज खरेखर साक्षात् ते धर्मनुज फल छे // 15 // ततोऽमात्यं जगौ राजा पाषाणे द्विदलीकृते / भवत्येकेन सोपानं द्वितीयेन तु देवता // 16 // तरिक तस्यैकदेशेन धर्मश्चक्रे परेण न / सिद्धा स्वभावाविश्वस्य भन्याभव्यव्यवस्थितिः॥१७॥ __अर्थ:-त्यारे राजाए मन्त्रिने कह्यु के एक पत्थरना बे टुकडा करीने, तेमना एक टुकडाथी पगथीयु कराय छे, अने बीजामांथी देवनी मूर्ति कराय छे, // 16 // त्यारे तेना एक टुकडाए | धर्म को हतो ? अने बीजे शुं न्होतो को ? माटे स्वभावधीज गज HorseKE
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________________ सुमित्र चरित्रं HERE // 5 // // 5 // CHAKASHMIRE | तनी सारानरसानी व्यवस्था सिद्ध थयेली छे. // 17 // अथाह मन्त्री नाजीवो ग्रावात्र स्यान्निदर्शनम् / सति धर्मिणि धर्माणां स्थापना युज्यते ततः॥१८॥ ____अर्थः-त्यारे मंत्रीए कड्यु के, अहीं अजीवपदार्थरूप पत्थरनुं दृष्टांत संभत्री शके नही, माटे धर्मी होते छते धर्मोनी स्थापना || संभवी शके छे. // 18 // इत्युक्तस्तं नृपः किंचित्सवैलक्ष्यस्मितोऽवदत् / अहं मन्त्रिन्वचःशच्या त्वया चक्रे निरुत्तरः॥१९॥ ___अर्थः-एम कहेवाथी राजा कंइंक विलखो पडी हास्य करी तेने कहेवा लोग्यो के, हे मन्त्री ! तें तो वचननी युक्तिवडे मने || उत्तररहित करी दोधो. // 19 // परं प्रत्यक्षदृष्टेन प्रभावेणैव कुत्रचित् निःसंशयं करिष्यामि धर्म मन्त्रीश नान्यथा // 20 // अर्थ:-परन्तु हे मन्त्रिश्वर ! क्यांक प्रत्यक्ष जोयेला प्रभावथीज संशयरहित हुँ धर्म आचरीश, ते शिवाय आचरीश नही 20 // इति प्रायस्तयोनित्यं संलापा क्षत्रमन्त्रिणोः / अजायत प्रजामध्ये प्रसिद्धिमधुरोऽधिकम्।।२१॥ अर्थः-एरीते ते राजा अने मन्त्रिबच्चे हमेशां यतो संवाद मायें करीने प्रजानी अंदर अधिक प्रसिद्धिपात्र थइ पढ्यो. 21 निवर्त्य सर्वकृत्यानि कदाचित्सचिवेश्वरः / पाक्षिकावश्यकं कर्तु सायं स्वावासमासदत्।। 22 // अर्थः-एक दिवसे ते मंत्रीश्वर सर्व कार्यो पतावीने पाक्षिकप्रतिक्रमण करवा माटे संध्याकाळे पोताना मकानमां आव्यो. // 22 // गृहाहहिर्न निर्यामीत्यात्तदेशावकाशिकः / सत्यसंधो महामात्यः प्रत्याख्यानविधि व्यधात् // 23 // - -**%AROO
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________________ चरित्रं A%A सुमित्र अर्थः-ग्रहण करेल छे देशावकाशिक व्रत जेणे, तथा सत्यप्रतिज्ञावाळा एवा ते मन्त्रिश्वरे " मारे घरमाथी बहार जq नही" एवीरीतनां पञ्चरुखाण कर्या // 23 // आवश्यके कृते शुद्धश्रद्धानध्यानबन्धुरः / मन्त्रीश्वरो नमस्कारपरावर्तपरोऽभवत् // 24 // अर्थः-प्रतिक्रमण कर्याबाद शुद्ध श्रद्धाथी मनोहर थयेलो ते मंत्रीश्वर नवकारमन्त्रनो जाप करवामां तत्पर थया. // 24 // समायति वः स्वामी गुरूकार्यतयेत्यथ / नृपतिप्रतिहारस्तं तदागत्य व्यजिज्ञपत् / / 25 // अर्थः-ते वखते, राजा तमोने कई महान कार्य प्रसंगे बोलावे छे, एम राजाना छडीदारे आवीने तेने विनंति करी. // 25 // आ प्रभातागृहबहिर्गतिप्रत्याख्यया स्थितः / एष्यामि प्रातरित्युक्त्वा वेत्री प्रेष्यत मन्त्रिणा॥२६॥ अर्थः-प्रभातसुधी घरनी बहार न जवाना पच्चख्खाण करीने हुँ रहेलो छु, माटे हुं प्रभातमा आवीश, एम कहीने मंत्रिए ते | छडीदारने पाछो मोकल्यो. // 26 // परमेष्ठिनमस्कारसुधासेकविवेकतः / पुनर्मानुषजन्मद्वं सचिवः सफलं व्यधात् // 27 // ____ अर्थः-पछी ते मंत्रीश्वर तो पंचपरमेष्टिना नमस्काररूपी अमृतना सिंचनथी मनुष्यजन्मरूपी वृक्षने सफल करवा लाग्यो. 27 समुपेत्य पुनर्वेत्री मन्त्रिन्दुमिदमभ्यधात् / युष्मदुक्तैर्नृपः स्वाज्ञालोपात्कोपान्धतामधात् // 28 // अर्थः-वळी ते छडीदारे पाछा आवीने ते मंत्रीश्वरने एम कधु के, तमारां वचनोथी, पोतानी आज्ञाना भंगथी राजा क्रोदोघांध थाय छे. // 28 // IRSA- M- CROSS
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________________ ******* चरित्रं // 7 // इह नायाति मायातिचित्रधीः सचिवः स चेत् / तत्सर्वैश्वर्यमुद्रा मे याच्येति प्रजिघाय माम्॥२९॥ सुमित्र अर्थः-कपटथी अति विचित्र बुद्धिवाळो ते मंत्रीश्वर जो अहीं न आवतो होय, तो मारी सर्व अधिकारपणानी मुद्रा (तेनी // 7 // | पासेथी) पाछी मागी लेवी, एम कहीने राजाए मने मोकल्यो छे / / 29 // इति श्रुतप्रतीहारव्याहारः सचिवो हसन् / तत्क्षणं प्रेषयन्मुद्रां दुःशीलामिव दासिकाम्॥३०॥ अर्थ:-एरीतनुं ते प्रतीहारनु वचन सांभळोने ते मन्त्रीश्वरे हसतांथका कूलटा दासीनी पेठे तेज क्षणे ते राजमुद्राने पाछी आपी. मन्त्री श्रेयासमुद्रोऽस्मिन्समुद्रे सद्मतो गते / राज्यचिन्ताशल्यनाशादृढंधर्मभरोऽभवत्॥३१॥ ___ अर्थ:-कल्याणना महासागर सरखो ते मन्त्रीश्वर, मुद्रा सहित ते छडीदार घरमांथी बहार गयाबाद राज्यचिंतातुं शल्य नष्ट 4 थवाथी दृढताथी धर्मकार्यमा तत्पर थयो. // 3 // मुद्रां कौतुकतो वेत्री परिधाय करे तदा / मन्त्री जातोऽहमित्यात्मपदातिषु जगौ हसन् // 32 // अर्थः-ते वखते गम्मतनी खातर ते छडीदार हाथमां ते मुद्रिकाने पहेरीने हुं मंत्री थयो छु, एम हांसी करतो थको पोताना सुभटोने कहेवा लाग्यो. // 32 // शनैर्मन्त्रिशिरोरत्न कुरु पादावधारणम् / इति हास्य मुखैः पुंभिर्वृतो गेहाच्चचाल सः // 33 // अर्थः हे मंत्रिशिरोमणि! आप धीमे धीमे पगलां भरो? एम मुखथी हांसी करता ते पुरुषोवडे वींटायेलो ते छडीदार त्यांथी चालवा लाग्यो. // 33 // ** RRC-RRHEARSHAREL ** * *
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________________ सुमित्र // 8 // तदव देवतः कैश्चिद्भटैः प्रकटितासिभिः / आहत्य पातितो नीतश्चायं वार्तावशेषताम्॥३४॥ अर्थः-तेज समये दैवयोगे तलवारो खेंचीने केटलाक सुभटोए ते छडीदारने मारीने पाडी नाख्यो, अने तेथी ते त्यांज मरण पाम्यो. // 34 // त्रस्तशेषैस्तदा तस्य सुभटेनिरेऽरयः वेत्री हतो हत इति तुमुलश्च महानभूत् // 35 // अर्थः-ते वखते नाशतां बाकी रहेला ते छडीडारना सुभटोए ते शत्रुभोने मारी नाख्या, अने छडीदार मरायो, मरायो, एम म्होटो कोलाहल थइ पडयो. // 3 // इति धात्रीधवः श्रुत्वा क्रोधधूमध्वजोद्धरः। उच्चैजल्पमनल्पं स ज्वालाकल्पमकल्पयत् // 36 // अर्थः-ते सांभळीने क्रोधरूपी अग्निथी जाज्वल्यमान थयेलो ते राजा ज्वाला सरखां घणां वचनो म्होटेथी बोलवा लाग्यो.३६|| अस्मत्कार्यमिदं कुर्वन्नतुच्छच्छद्मसद्मना / संहारितः प्रतीहारस्तेनासो मन्त्रिणा ध्रुवम् // 37 // अर्थ:-अमारं आ कार्य करनारा आ छडीदारने खरेखर विस्तीर्ण कपटना स्थानरूपी ते मंत्रीए मारी नाख्यो छे. // 37 // एतस्य यदि वृद्धस्य शिरश्छित्त्वा स्वपाणिना / उच्छालयामि छलिनस्तन्मे मनसि निवृतिः।।३८ अर्थः-(माटे हवे) ज्यारे ते कपटी वृद्धमंत्रिनुं मस्तक मारे हाथेथी कापीने उछाल्डं, त्यारेज मारा मनमां शांति थशे. // 38 // ___एवमुच्चैलपन्गोपः कोपाटोपभटोत्कटः / तत्रागाद्यत्र ते सन्ति घातार्ता वेत्रिघातकाः // 39 // अर्थ:--एरीते म्होटेथी बोलतो ते राजा, क्रोधना आवेशवाळा सुभटोथी भयंकर थयो थको त्यां आव्यो, के ज्यां ते छडी RRERAKHARA
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________________ सुमित्र / 16 दारने मारनारा सुभटो घायल थइने पडया हता. // 39 // अमात्यभृत्या नैते स्युः केऽपि वैदेशिका इच / इति ध्यात्वा नरेन्द्रस्तान्दीपदृष्टानभाषता॥४०॥ // 9 // | अर्थः-आ मंत्रिना नोकरो संभवता नथी, कोइक पण परदेशीजेवा जणाथ छे, एम विचारी राजा दीपकथी जोइने तेओने | कहेवा लाग्यो के, // 4 // के यूयं किं हतो वेत्रीत्युर्वीनाथेऽथ पृच्छति / ऊचुस्तेऽमर्षदष्टौष्ठा वण्ठाः कण्ठागतासवः॥४१॥ | अर्थः-पछी तमो कोण छो? अने आ छडीडारने (तमोए) केम मार्यो? एम राजाए पूछवाथी क्रोधथी होठ करडनारा, तथा | कंठे आवेला माणोवाळा ते लफंगा मवालीयो बोल्या के, // 41 // किमस्मान्पृच्छसि माप देवं पृच्छदुराशयम् / अस्मदीशस्य येनैवं चक्रे व्यर्थो मनोरथः।।४।। __अर्थ:--हे राजन्! आप अमोने शुं पूछो छो? अमारां दुष्ट तगदीरने पूछो? के जेणे अमारा स्वामीनो मनोरथ आरीते निष्फल को. // 42 // धरावासपुराधीशः शूरसेनः स्वसेवकान् / सुमित्रं मन्त्रिणं हन्तुं प्रैषीदस्मान्महेच्छया // 43 // ___ अर्थ:--धाराबास नगरना शूरसेन नामना राजाए म्होटा मनोरथथी सुमित्र मंत्रिने मारवामाटे पोताना सेवक एवा अमोने 4 मोकल्या हता. // 43 // यदयं दण्डयत्यस्मन्नेतारं प्रतिवत्सरम् / त्वामप्यस्मद्विभोः शत्रु सर्वदा पोषयत्यलम् // 4 // rorxKRWECASH
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________________ ' सुमित्र // 10 // ROCES अर्थः-केमके आ सुमित्रमंत्री अमारा स्वामीने दर वर्षे दंडे छे, अने अमारा स्वामीना शत्रु एवा तमोने पण हमेशां सारी रीते पोषे छे // 44 // स्वाम्यादेशादिहास्माभिर्बबन्धेऽध्वाद्य मन्त्रिणः / कुतोऽयमपतत्सिहबन्धनं जम्बुको यथा // 15 // अर्थ:-(अमारा) स्वामिना हुकमथी आजे अमोए अहीं ते मंत्रीनो मार्ग घेर्यो हतो, परंतु जेम सिंहनी जाळमां शियाळ न फसाय तेम ते (अमारा हाथमा) क्याथी सपडाय ? // 45 // इत्युक्तिविकटावेशाः सुभटा प्रकटाशयाः। ते चत्वारोऽपि पश्चत्वं जग्मुस्तत्रैव घातकाः // 46 // | अर्थः-ए रीतना वचनोना भयंकर आवेशवाळा, तथा प्रगट करेल छे, पोताना मनना अभिप्रायो जेभीए एवा ते चारे घा|| तकी सुभटो त्यांज मरण पाम्या // 46 // नृपः कृतानुतापोऽथ गत्वा पोरवरवृतः / अमात्यं क्षमयामास बाह धृत्वा वदनिति // 47 // ____ अर्थः-पछी करेल छे पश्चात्ताप जेणे एवो ते राजा उत्तम नागरीकोसाथे जइने, तथा बन्ने हाथ झालीने एम बोलतो थको | ते मंत्रीश्वरनी क्षमा मागवा लाग्यो के, // 47 // मया तेऽपि नृकल्पस्य कल्पितो योऽल्पबुद्धिना / त्वं क्षमस्व क्षमस्व त्वमपराधममुं मयि॥४८॥ अर्थः-में अल्पबुद्धिए मनुष्योमां कल्पवृक्ष सरखा एवा पण तमारा प्रते जे (आवी अयोग्य वर्तणुक चलावी) ते अपराध माटे | तमो मने क्षमाकरो ? क्षमाकरो? // 48 // ilet
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________________ %E चरित्रं सुमित्र // 11 // +CHAKRE 0% // 11 // व्रतं चेन्नाचरिष्यस्त्वं नाजीविष्यस्ततः पितः / त्वां विना नैव राज्यं मेऽभविष्यत्प्राज्यवैभवम् // 49 // अर्थ:-हे पिताजी! आपे जो व्रत न लीधुं होत, तो आप जीवी शकत नहिं अने आप विना माझं राज्य वैभवशाली थइ शके तेम नथी. // 19 // तदद्यातुल्यकल्याणकारिणः पुण्यकर्मणः। फलं प्रत्यक्षमोक्षमहं पापापहं चिरान // 50 // अर्थ:-माटे आजे में घणे काळे अनुपम कल्याणकारी पुण्यकार्यनुं पापोना नाश करनारुं फल प्रत्यक्ष जोयुं छे. // 50 // सुकृतं जीवितव्यं ते व्रतेनानेन पोषितम् / शोषितं त्वत्कृतेनाद्य दुःकृतं दुर्यशश्च मे // 51 // अर्थ:-तमोए करेलां आ व्रतथी आजे तमारुं पवित्र जीवन पुष्ट थयुं छे, अने मारु पाप तथा अपयश नष्ट धयां छे. // 51 // तत्सहस्वापराधं मे प्रसीद वद सात्त्विक / धर्म कराय मां तात तारयाशु भवार्णवात्॥५२॥ अर्थ:-हे बहादूर मंत्रिश्वर ! मारा अपराधनी तमो क्षमा करो? तथा कृपा करी मारी साथे बोलो ? तथा हे पिताजी मारीपासे धर्मकृत्यो करावो? तथा तुरत आ संसारसमुद्रथी तारो? 52 // उवाच सचिवोऽथेदं नापराधोऽस्ति ते ध्रुवम् / यत्माप सानुतापस्त्वं धर्मे धत्सेऽधुना धियम्॥५३॥ अर्थ:- त्यारे मंत्रीश्वरे एम कयु के, हे राजन् ! खरेखर तमारो अपराध नथी, केमके हवे तमोए पश्चात्तापसहित धर्मबुद्धि धारण करी छे // 53 // ततः संलब्धमुद्रेण मन्त्रिणा प्रेरितो नृपः / जगृहे गृहिणां धर्म पूर्णचन्द्रगुरोः पुरः॥ 54 // MES AA-%CICE
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________________ सुमित्र // 12 // Crocarp REC4-- अर्थः-पछी पाछी मेळवेल हे मुद्रा जेणे ते मन्त्रबडे प्रेरायेला ते राजाए पूर्णचन्द्रगुरुनी पासेथी ग्रहस्थना धर्मनो स्वीकार को. मन्त्रिणः शङ्कमोनोऽथ निजे कण्ठे कुठारवान् / आयातः शूरसेनोऽपि भूभुजां भूषितः श्रिया॥५५॥ अर्थः-पछी ते मंत्रीश्वरथी डरतो ते शूरसेन पण पोताना कंठमा कुहाडो पहेरीने [ राजा पासे ] आव्यो, त्यारे राजाए पण तेर्नु समृद्धिथी सन्मान कयु. // 55 // देवार्चादानसुध्यानरथयात्रादिकर्मभिः / नृपो मन्त्र्युपदिष्टैः स्वं विदधे जन्म पावनम् // 56 // ___अर्थ:-पछी ते मंत्रीश्वरे उपदेशेला देवपूजा, दान उत्तम ध्यान, तथा रथयात्रा आदिकमां कार्योथी ते राजाए पोतार्नु जीवन पवित्र कयु.॥५६॥ तत्र स्वामिनि बालोऽपि चण्डालोऽपि न सोऽभवत् / न यो जिनाधिनाथोक्तधर्मकर्मठतां गतः॥५७।। अर्थ:-ते राजाना राज्यमां एवो कोइपण बाळक के चंडाल पण न हतो, के जे जिनेश्वरमभुए उपदेशेला धर्मकार्यमां तत्पर न थयो. - इथं मन्त्रिव भूपश्च कृत्वा धर्म विशुद्धधीः / महाविदेहे मर्त्यत्वं प्राप्य लेभे शिवश्रियम्।।५८॥ अर्थः-एरीते मंत्रीनीपेठे निर्मल बुद्धिवाळो ते राजा महाविदेह क्षेत्रमा मनुष्य जन्म पामीने मोक्षे गयो. // 18 // . ततः सुमित्रदीपेन गमितेऽस्मिन्प्रकाशताम् / देशावकाशिकपथे संचरन्तु सुखं बुधाः // 59 // अर्थः-माटे ते सुमित्रनामना दीपके प्रकाशित करेला आ देशावकाशिकवतरूपी मार्गमा चतुर माणसोए मुखेथी संचार करचो.५२४ // इति देशावकाशिकव्रतविचारे सुमित्रकथा / - - i l-CASSES
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________________ puCIONSCICUCICHOICICIOUSICISICICISI = = P = = = மைதாமாராத்தாந்து மாமரமரகதாமாமாமாமாமாமாமாமாமாமாமாமாமா = = इति श्रीसुमित्रमंत्रिचरित्रं समाप्तम् mc= = கேனைச்சைச்ச்சசைகைைைனகையை w= = = MU= = = = = = = = = = =w- o - or= = = = e