________________ सुमित्र चरित्रं HERE // 5 // // 5 // CHAKASHMIRE | तनी सारानरसानी व्यवस्था सिद्ध थयेली छे. // 17 // अथाह मन्त्री नाजीवो ग्रावात्र स्यान्निदर्शनम् / सति धर्मिणि धर्माणां स्थापना युज्यते ततः॥१८॥ ____अर्थः-त्यारे मंत्रीए कड्यु के, अहीं अजीवपदार्थरूप पत्थरनुं दृष्टांत संभत्री शके नही, माटे धर्मी होते छते धर्मोनी स्थापना || संभवी शके छे. // 18 // इत्युक्तस्तं नृपः किंचित्सवैलक्ष्यस्मितोऽवदत् / अहं मन्त्रिन्वचःशच्या त्वया चक्रे निरुत्तरः॥१९॥ ___अर्थः-एम कहेवाथी राजा कंइंक विलखो पडी हास्य करी तेने कहेवा लोग्यो के, हे मन्त्री ! तें तो वचननी युक्तिवडे मने || उत्तररहित करी दोधो. // 19 // परं प्रत्यक्षदृष्टेन प्रभावेणैव कुत्रचित् निःसंशयं करिष्यामि धर्म मन्त्रीश नान्यथा // 20 // अर्थ:-परन्तु हे मन्त्रिश्वर ! क्यांक प्रत्यक्ष जोयेला प्रभावथीज संशयरहित हुँ धर्म आचरीश, ते शिवाय आचरीश नही 20 // इति प्रायस्तयोनित्यं संलापा क्षत्रमन्त्रिणोः / अजायत प्रजामध्ये प्रसिद्धिमधुरोऽधिकम्।।२१॥ अर्थः-एरीते ते राजा अने मन्त्रिबच्चे हमेशां यतो संवाद मायें करीने प्रजानी अंदर अधिक प्रसिद्धिपात्र थइ पढ्यो. 21 निवर्त्य सर्वकृत्यानि कदाचित्सचिवेश्वरः / पाक्षिकावश्यकं कर्तु सायं स्वावासमासदत्।। 22 // अर्थः-एक दिवसे ते मंत्रीश्वर सर्व कार्यो पतावीने पाक्षिकप्रतिक्रमण करवा माटे संध्याकाळे पोताना मकानमां आव्यो. // 22 // गृहाहहिर्न निर्यामीत्यात्तदेशावकाशिकः / सत्यसंधो महामात्यः प्रत्याख्यानविधि व्यधात् // 23 // - -**%AROO