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________________ ******* चरित्रं // 7 // इह नायाति मायातिचित्रधीः सचिवः स चेत् / तत्सर्वैश्वर्यमुद्रा मे याच्येति प्रजिघाय माम्॥२९॥ सुमित्र अर्थः-कपटथी अति विचित्र बुद्धिवाळो ते मंत्रीश्वर जो अहीं न आवतो होय, तो मारी सर्व अधिकारपणानी मुद्रा (तेनी // 7 // | पासेथी) पाछी मागी लेवी, एम कहीने राजाए मने मोकल्यो छे / / 29 // इति श्रुतप्रतीहारव्याहारः सचिवो हसन् / तत्क्षणं प्रेषयन्मुद्रां दुःशीलामिव दासिकाम्॥३०॥ अर्थ:-एरीतनुं ते प्रतीहारनु वचन सांभळोने ते मन्त्रीश्वरे हसतांथका कूलटा दासीनी पेठे तेज क्षणे ते राजमुद्राने पाछी आपी. मन्त्री श्रेयासमुद्रोऽस्मिन्समुद्रे सद्मतो गते / राज्यचिन्ताशल्यनाशादृढंधर्मभरोऽभवत्॥३१॥ ___ अर्थ:-कल्याणना महासागर सरखो ते मन्त्रीश्वर, मुद्रा सहित ते छडीदार घरमांथी बहार गयाबाद राज्यचिंतातुं शल्य नष्ट 4 थवाथी दृढताथी धर्मकार्यमा तत्पर थयो. // 3 // मुद्रां कौतुकतो वेत्री परिधाय करे तदा / मन्त्री जातोऽहमित्यात्मपदातिषु जगौ हसन् // 32 // अर्थः-ते वखते गम्मतनी खातर ते छडीदार हाथमां ते मुद्रिकाने पहेरीने हुं मंत्री थयो छु, एम हांसी करतो थको पोताना सुभटोने कहेवा लाग्यो. // 32 // शनैर्मन्त्रिशिरोरत्न कुरु पादावधारणम् / इति हास्य मुखैः पुंभिर्वृतो गेहाच्चचाल सः // 33 // अर्थः हे मंत्रिशिरोमणि! आप धीमे धीमे पगलां भरो? एम मुखथी हांसी करता ते पुरुषोवडे वींटायेलो ते छडीदार त्यांथी चालवा लाग्यो. // 33 // ** RRC-RRHEARSHAREL ** * *
SR No.600420
Book TitleSumitramantri Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1935
Total Pages16
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size1 MB
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