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________________ ' सुमित्र // 10 // ROCES अर्थः-केमके आ सुमित्रमंत्री अमारा स्वामीने दर वर्षे दंडे छे, अने अमारा स्वामीना शत्रु एवा तमोने पण हमेशां सारी रीते पोषे छे // 44 // स्वाम्यादेशादिहास्माभिर्बबन्धेऽध्वाद्य मन्त्रिणः / कुतोऽयमपतत्सिहबन्धनं जम्बुको यथा // 15 // अर्थ:-(अमारा) स्वामिना हुकमथी आजे अमोए अहीं ते मंत्रीनो मार्ग घेर्यो हतो, परंतु जेम सिंहनी जाळमां शियाळ न फसाय तेम ते (अमारा हाथमा) क्याथी सपडाय ? // 45 // इत्युक्तिविकटावेशाः सुभटा प्रकटाशयाः। ते चत्वारोऽपि पश्चत्वं जग्मुस्तत्रैव घातकाः // 46 // | अर्थः-ए रीतना वचनोना भयंकर आवेशवाळा, तथा प्रगट करेल छे, पोताना मनना अभिप्रायो जेभीए एवा ते चारे घा|| तकी सुभटो त्यांज मरण पाम्या // 46 // नृपः कृतानुतापोऽथ गत्वा पोरवरवृतः / अमात्यं क्षमयामास बाह धृत्वा वदनिति // 47 // ____ अर्थः-पछी करेल छे पश्चात्ताप जेणे एवो ते राजा उत्तम नागरीकोसाथे जइने, तथा बन्ने हाथ झालीने एम बोलतो थको | ते मंत्रीश्वरनी क्षमा मागवा लाग्यो के, // 47 // मया तेऽपि नृकल्पस्य कल्पितो योऽल्पबुद्धिना / त्वं क्षमस्व क्षमस्व त्वमपराधममुं मयि॥४८॥ अर्थः-में अल्पबुद्धिए मनुष्योमां कल्पवृक्ष सरखा एवा पण तमारा प्रते जे (आवी अयोग्य वर्तणुक चलावी) ते अपराध माटे | तमो मने क्षमाकरो ? क्षमाकरो? // 48 // ilet
SR No.600420
Book TitleSumitramantri Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1935
Total Pages16
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size1 MB
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