Book Title: Sumitramantri Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit

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Page 4
________________ सुमित्र RK+C+% . अर्थ:--उत्तम बुद्धिवान माणस श्रद्धाथी ज्यांसुधी देशावकाशिक व्रत करे छे त्यांसुधी ते प्रदेशनी बहार वसनारा प्राणीओने || तेणे त्यारे अभयदान आपेलु कहेवाय छे. // 2 // प्रभावादस्य नश्यन्ति विघ्नाः शुद्धात्मनामिह / सुमित्रस्येव जायन्ते परत्र च शुभश्रियः // 3 // अर्थः-ते व्रतना प्रभावथी सुमित्रनी पेठे निर्मल आत्मावाळा मनुष्योनां आ लोकमां विघ्नो नाश पामे छे, तथा परलोकर्मा उत्तम लक्ष्मी प्राप्त थाय छे. // 3 // . मुख्या पुरीततावस्ति भुवस्तिलकवत्पुरी / चन्द्रिकेति चतुर्वर्गश्रीनिरर्गलनागरा // 4 // __अर्थः-पृथ्वीना तिलकनी पेठे नगरीओनी श्रेणिमां मुख्य, तथा धर्म आदिक चारे वर्गोनी शोभाथी भरेला नागरिकोवाळी | चंद्रिकानमनी नगरी छे. // 4 // नासीरवीरश्वासोर्मिसमुड्डीनारिमण्डलः / तासपीड इति क्षमापस्तानपालयदुत्सवैः // 5 // __ अर्थः-संग्राममां आवेला सुभटोना (फक्त) श्वासोश्वासना मोजांभोथीज उडी गयेला छे शत्रुओना समूहो जेना एवो तारा|पीडनामनो राजा ते नगरीनु महोत्सवपूर्वक रक्षण करतो हतो. // 5 // तन्मन्त्री कीर्तिकुसुमं सुमित्राख्यः समन्ततः / विश्वसौरभ्यकृढ़ेजे जिनभक्तिलताद्रुमः // 6 // __अर्थ:--कीर्तिरूपी पुष्पोवाळो, तथा चोतरफथी जगतने सुगंधि करनारो, अने जिनेश्वरमभुनी भक्तिरूपी वेलडीने वृक्षसरखो सुमित्रनामनो तेनो मंत्रि इतो. // 6 // - R-RA- KA%AR BECOMot

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