Book Title: Sumitramantri Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit
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________________ %E चरित्रं सुमित्र // 11 // +CHAKRE 0% // 11 // व्रतं चेन्नाचरिष्यस्त्वं नाजीविष्यस्ततः पितः / त्वां विना नैव राज्यं मेऽभविष्यत्प्राज्यवैभवम् // 49 // अर्थ:-हे पिताजी! आपे जो व्रत न लीधुं होत, तो आप जीवी शकत नहिं अने आप विना माझं राज्य वैभवशाली थइ शके तेम नथी. // 19 // तदद्यातुल्यकल्याणकारिणः पुण्यकर्मणः। फलं प्रत्यक्षमोक्षमहं पापापहं चिरान // 50 // अर्थ:-माटे आजे में घणे काळे अनुपम कल्याणकारी पुण्यकार्यनुं पापोना नाश करनारुं फल प्रत्यक्ष जोयुं छे. // 50 // सुकृतं जीवितव्यं ते व्रतेनानेन पोषितम् / शोषितं त्वत्कृतेनाद्य दुःकृतं दुर्यशश्च मे // 51 // अर्थ:-तमोए करेलां आ व्रतथी आजे तमारुं पवित्र जीवन पुष्ट थयुं छे, अने मारु पाप तथा अपयश नष्ट धयां छे. // 51 // तत्सहस्वापराधं मे प्रसीद वद सात्त्विक / धर्म कराय मां तात तारयाशु भवार्णवात्॥५२॥ अर्थ:-हे बहादूर मंत्रिश्वर ! मारा अपराधनी तमो क्षमा करो? तथा कृपा करी मारी साथे बोलो ? तथा हे पिताजी मारीपासे धर्मकृत्यो करावो? तथा तुरत आ संसारसमुद्रथी तारो? 52 // उवाच सचिवोऽथेदं नापराधोऽस्ति ते ध्रुवम् / यत्माप सानुतापस्त्वं धर्मे धत्सेऽधुना धियम्॥५३॥ अर्थ:- त्यारे मंत्रीश्वरे एम कयु के, हे राजन् ! खरेखर तमारो अपराध नथी, केमके हवे तमोए पश्चात्तापसहित धर्मबुद्धि धारण करी छे // 53 // ततः संलब्धमुद्रेण मन्त्रिणा प्रेरितो नृपः / जगृहे गृहिणां धर्म पूर्णचन्द्रगुरोः पुरः॥ 54 // MES AA-%CICE

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