Book Title: Sumitramantri Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit
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________________ सुमित्र // 12 // Crocarp REC4-- अर्थः-पछी पाछी मेळवेल हे मुद्रा जेणे ते मन्त्रबडे प्रेरायेला ते राजाए पूर्णचन्द्रगुरुनी पासेथी ग्रहस्थना धर्मनो स्वीकार को. मन्त्रिणः शङ्कमोनोऽथ निजे कण्ठे कुठारवान् / आयातः शूरसेनोऽपि भूभुजां भूषितः श्रिया॥५५॥ अर्थः-पछी ते मंत्रीश्वरथी डरतो ते शूरसेन पण पोताना कंठमा कुहाडो पहेरीने [ राजा पासे ] आव्यो, त्यारे राजाए पण तेर्नु समृद्धिथी सन्मान कयु. // 55 // देवार्चादानसुध्यानरथयात्रादिकर्मभिः / नृपो मन्त्र्युपदिष्टैः स्वं विदधे जन्म पावनम् // 56 // ___अर्थ:-पछी ते मंत्रीश्वरे उपदेशेला देवपूजा, दान उत्तम ध्यान, तथा रथयात्रा आदिकमां कार्योथी ते राजाए पोतार्नु जीवन पवित्र कयु.॥५६॥ तत्र स्वामिनि बालोऽपि चण्डालोऽपि न सोऽभवत् / न यो जिनाधिनाथोक्तधर्मकर्मठतां गतः॥५७।। अर्थ:-ते राजाना राज्यमां एवो कोइपण बाळक के चंडाल पण न हतो, के जे जिनेश्वरमभुए उपदेशेला धर्मकार्यमां तत्पर न थयो. - इथं मन्त्रिव भूपश्च कृत्वा धर्म विशुद्धधीः / महाविदेहे मर्त्यत्वं प्राप्य लेभे शिवश्रियम्।।५८॥ अर्थः-एरीते मंत्रीनीपेठे निर्मल बुद्धिवाळो ते राजा महाविदेह क्षेत्रमा मनुष्य जन्म पामीने मोक्षे गयो. // 18 // . ततः सुमित्रदीपेन गमितेऽस्मिन्प्रकाशताम् / देशावकाशिकपथे संचरन्तु सुखं बुधाः // 59 // अर्थः-माटे ते सुमित्रनामना दीपके प्रकाशित करेला आ देशावकाशिकवतरूपी मार्गमा चतुर माणसोए मुखेथी संचार करचो.५२४ // इति देशावकाशिकव्रतविचारे सुमित्रकथा / - - i l-CASSES

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