Book Title: Sumitramantri Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit
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________________ सुमित्र / 16 दारने मारनारा सुभटो घायल थइने पडया हता. // 39 // अमात्यभृत्या नैते स्युः केऽपि वैदेशिका इच / इति ध्यात्वा नरेन्द्रस्तान्दीपदृष्टानभाषता॥४०॥ // 9 // | अर्थः-आ मंत्रिना नोकरो संभवता नथी, कोइक पण परदेशीजेवा जणाथ छे, एम विचारी राजा दीपकथी जोइने तेओने | कहेवा लाग्यो के, // 4 // के यूयं किं हतो वेत्रीत्युर्वीनाथेऽथ पृच्छति / ऊचुस्तेऽमर्षदष्टौष्ठा वण्ठाः कण्ठागतासवः॥४१॥ | अर्थः-पछी तमो कोण छो? अने आ छडीडारने (तमोए) केम मार्यो? एम राजाए पूछवाथी क्रोधथी होठ करडनारा, तथा | कंठे आवेला माणोवाळा ते लफंगा मवालीयो बोल्या के, // 41 // किमस्मान्पृच्छसि माप देवं पृच्छदुराशयम् / अस्मदीशस्य येनैवं चक्रे व्यर्थो मनोरथः।।४।। __अर्थ:--हे राजन्! आप अमोने शुं पूछो छो? अमारां दुष्ट तगदीरने पूछो? के जेणे अमारा स्वामीनो मनोरथ आरीते निष्फल को. // 42 // धरावासपुराधीशः शूरसेनः स्वसेवकान् / सुमित्रं मन्त्रिणं हन्तुं प्रैषीदस्मान्महेच्छया // 43 // ___ अर्थ:--धाराबास नगरना शूरसेन नामना राजाए म्होटा मनोरथथी सुमित्र मंत्रिने मारवामाटे पोताना सेवक एवा अमोने 4 मोकल्या हता. // 43 // यदयं दण्डयत्यस्मन्नेतारं प्रतिवत्सरम् / त्वामप्यस्मद्विभोः शत्रु सर्वदा पोषयत्यलम् // 4 // rorxKRWECASH

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