Book Title: Sumitramantri Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit

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Page 10
________________ सुमित्र // 8 // तदव देवतः कैश्चिद्भटैः प्रकटितासिभिः / आहत्य पातितो नीतश्चायं वार्तावशेषताम्॥३४॥ अर्थः-तेज समये दैवयोगे तलवारो खेंचीने केटलाक सुभटोए ते छडीदारने मारीने पाडी नाख्यो, अने तेथी ते त्यांज मरण पाम्यो. // 34 // त्रस्तशेषैस्तदा तस्य सुभटेनिरेऽरयः वेत्री हतो हत इति तुमुलश्च महानभूत् // 35 // अर्थः-ते वखते नाशतां बाकी रहेला ते छडीडारना सुभटोए ते शत्रुभोने मारी नाख्या, अने छडीदार मरायो, मरायो, एम म्होटो कोलाहल थइ पडयो. // 3 // इति धात्रीधवः श्रुत्वा क्रोधधूमध्वजोद्धरः। उच्चैजल्पमनल्पं स ज्वालाकल्पमकल्पयत् // 36 // अर्थः-ते सांभळीने क्रोधरूपी अग्निथी जाज्वल्यमान थयेलो ते राजा ज्वाला सरखां घणां वचनो म्होटेथी बोलवा लाग्यो.३६|| अस्मत्कार्यमिदं कुर्वन्नतुच्छच्छद्मसद्मना / संहारितः प्रतीहारस्तेनासो मन्त्रिणा ध्रुवम् // 37 // अर्थ:-अमारं आ कार्य करनारा आ छडीदारने खरेखर विस्तीर्ण कपटना स्थानरूपी ते मंत्रीए मारी नाख्यो छे. // 37 // एतस्य यदि वृद्धस्य शिरश्छित्त्वा स्वपाणिना / उच्छालयामि छलिनस्तन्मे मनसि निवृतिः।।३८ अर्थः-(माटे हवे) ज्यारे ते कपटी वृद्धमंत्रिनुं मस्तक मारे हाथेथी कापीने उछाल्डं, त्यारेज मारा मनमां शांति थशे. // 38 // ___एवमुच्चैलपन्गोपः कोपाटोपभटोत्कटः / तत्रागाद्यत्र ते सन्ति घातार्ता वेत्रिघातकाः // 39 // अर्थ:--एरीते म्होटेथी बोलतो ते राजा, क्रोधना आवेशवाळा सुभटोथी भयंकर थयो थको त्यां आव्यो, के ज्यां ते छडी RRERAKHARA

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