Book Title: Sumainahchariyam
Author(s): Somprabhacharya, Ramniklal M Shah, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 11
________________ यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयते ।। भग्नपृष्ठि कटि ग्रीवा बद्धमुष्ठिरधोमुखे । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ॥ ॥ छ । संवत् १६५४ वर्षे पोस शद १० शं. लखितम् ॥ छ । (३) रा. प्रति : यह प्रति राधनपुर(गुजरात) के किसी भंडार की होने के पू. पुण्यविजयजी के उल्लेख के अलावा अन्य कुछ विगतें मिली नहीं हैं। (४) दे. प्रति : इस प्रति अहमदाबाद के 'देवशानो पाडो ज्ञान भंडार' की प्रत होने का स्व. पूज्य मुनिजी ने लिखा है, इसके अलावा कुछ विगतें प्राप्त नहीं हैं । (५) हे. प्रति : __पूज्य आचार्यश्री प्रद्युम्नसूरिजी से प्राप्त दो झेरोक्ष में से एक यह प्रत पाटन(उ. गुज.) के हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभंडार की १५६५७ नंबर की प्रत है । उसका आदि-अंत इस प्रकार है आदि : दि०॥ ॐ नमो श्री वीतरागाय ॥ ॐ नमो श्री सारदायै नमः ॥ ॐ नमो श्री गुरुभ्यो नमः ॥ जयइ जयकप्परुक्खो पढमजिणो जस्स खंधसिहरेसु । सउणाण वल्लहा वालवल्लरी सहइ सिद्धिफला ॥१॥ अंत :___ ग्रंथाग्रं ॥ ९८५१ ॥ श्री सुनतिनाथ पुस्तकं लिखितं, समाप्तमिति ॥छ। संवत् १८४४ रा वर्षे काती वदी १० दिने लिखतं । पं. दौला ॥ श्री पाटणमध्ये ॥ (६) वि. प्रत : पूज्य आचार्यश्री प्रद्युम्नसूरिजी से प्राप्त झरोक्ष कापियों में से दूसरी २०५ पत्र की यह कागजी प्रत श्रीमत् पंन्यास श्री दयाविमलजी गणी शिष्य पंन्यासजी सौभाग्यविमलजी गणी ज्ञानभंडार, कालुशीकी पोळ, विमलगच्छ उपाश्रय, अहमदाबाद की है। उसका नं. ३३८० है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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