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(२) चिंतामणी - कुमार द्वारा प्रमाद विषय में चिन्तामणि प्राप्त करके गवाँनेवाले
वणिकपुत्र की कथा (पृ. १३३-१३६) (३) चूय - मदनरेखा द्वारा अविचारी कृत्य विषयक सहकारछेदक नरेन्द्र की कथा (पृ.
१३६-१४४) (४) कूयनर - कुमार द्वारा विषयकामना से दुःख विषयक मधुबिंदु दृष्टांत (पृ. १४५ --
१४८) (५) ससुर - कनकावली द्वारा परिणाम का विचार करके कार्य करने के लिए मित्रवती
के श्वसुर की कथा (पृ. १४८-१५३) (६) सूरसेण निव - कुमार द्वारा राज्यलोभ के कारण जीववध करनेवाले को नरकप्राप्ति
विषयक शूरसेन की कथा (पृ. १५४-१६१) (७) वरदत्त - रत्नावली द्वारा अविचारिता विषयक वरदत्त की कथा (पृ. १६१-१६६) (८) जयवम्म - कुमार द्वारा स्त्रीचरित्र-गहनता विषयक जयवर्म की कथा (पृ. १६७
१७१) (९) कज्ज - लीलावती द्वारा अतिलोभ विषयक कार्यवेष्ठि-कथा (पृ. १७१-१७४) (१०) कुबेरदत्त - कुमार द्वारा संबंधों की विचित्रता विषयक कुबेरसेन-कुबेरसेना कथा
(पृ. १७५-१७७) (११) अक्का - कमलावती द्वारा अतिलोभ विषयक कुट्टिनी कथा (पृ. १७७-१८६) (१२) समुद्ददत्त - कुमार द्वारा संबंधों की कुटिलता विषयक समुद्रदत्त-कथा (पृ.
१८८-१९१) (१३) जंबुग - सौभाग्यमंजरी द्वारा लोभविषयक जंबुक-कथा (पृ. १९१-१९५) (१४) मित्ततिय - कुमार द्वारा अन्याय-उपार्जित धन विषयक तीन मित्रों की कथा
(पृ. १९७-१९९) (१५) अक्का - रत्नमंजरी द्वारा अतिलोभ विषयक कुट्टिनी की कथा (पृ. १९९-२०५) (१६) वणिपुत्त - कुमार द्वारा स्नेह की निरर्थकता विषयक वणिकपुत्र-कथा (पृ. २०६-२०८)
इस वार्तालाप के अंतमें सभी वधूएं संविग्न हुई, सभीने महाव्रतग्रहण का संकल्प किया ।
महादान के बाद कुमार और सभी भार्याओंने दीक्षा ली । तत्पश्चात् कुमार अनेकविध तपश्चर्या करके, एकवीश स्थान द्वारा तीर्थंकर कर्म उपार्जित करके, संलेखनापूर्वक समाधिमरण प्राप्त करके वैजयंतविमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ ।
___ यहां पर कर्ताने ग्रंथ के पूर्वार्ध के पूर्ण होने की सूचक गाथा दी है (गाथा १३१४, पृ.२१२)- श्रीसोमप्रभसूरि विरचित सुमतिस्वामीचरितमें तीर्थंकर कर्म
अर्जन-प्रवर नर- सुर- भवोंका वर्णन पूर्ण हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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