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(६) मायानिग्रह विषयक शंख कथा (पृ. ४५५ ४५९)
(७) लोभ- विपाक तथा जयाजय विषयक सुरासुर - कथा (पृ. ४६०
४६७)
(८) नमस्कार विषयक पुलिन्द - मिथुन कथा (पृ. ४६८-४९३)
इस प्रकार चमर गणधरने मोक्षमार्ग के अठारह सोपानरूप अठारह कथाओं द्वारा अनुपम धर्मदेशना की ।
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प्रस्ताव
१० (पृ. ४८५ -५१४) - तीर्थंकर भगवंत सुमतिनाथ का विहार एवं साकेत नगर में समवसरण का वर्णन । वहां के राजा निधिकुंडल के प्रश्न के उत्तर में भूत एवं भविष्य विषय का कथन, पुनः विहार ।
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निर्वाण - समय समीप जानकर भगवान समेतशिखर गिरि पधारते है, देवों का आगमन होता है, समवसरण एवं धर्मदेशना के बाद १,००० मुनियों के साथ भगवंत का सर्वोपरि शिखर पर आरोहण एवं अनशनपूर्वक निर्वाण होता है । ३२ इन्द्रों द्वारा अग्निसंस्कार किया जाता है और चमर गणधर द्वारा संघ का अनुशासन प्रारंभ होता हैं ।
ग्रंथकार - प्रशस्ति के साथ ग्रंथ समाप्त होता है ।
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आज से करीब पच्चीस वर्ष पूर्व भावनगर (सौराष्ट्र) स्थित जैन आत्मानंद सभा ने मुझे सुमतिनाथचरित के गुजराती भाषान्तर का कार्य सौंपा था। संस्था के पास सुमतिनाथचरित की एक प्रेसकापी थी, जो वहां के किसी ज्ञानभण्डार की हस्तप्रत के आधार से लिखी गई थी और अत्यन्त अशुद्ध थी। मुझे भाषान्तर उसी के आधार से करना था । अत्यन्त कठिनाई से मैनें एक खंड का भाषान्तर कर दिया, जो १९८० में प्रकाशित हो गया । भाषान्तर करते समय मुझे मूल ग्रन्थ के संशोधन-संपादन की आवश्यकता महसूस हुई। आदरणीय स्व. पं. दलसुखभाई मालवणिया से इस बारे में बात हुई तो उन्होंने प्राकृत ग्रन्थ परिषद के संग्रह में सुरक्षित स्व. पू. आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी द्वारा करवाई गई सुमतिनाथचरित की नकल मुझे दी । प्रस्तुत संपादन के लिए मैंने उसी नकल का उपयोग किया है। आज कई वर्षों के बाद यह ग्रन्थ प्रकट हो रहा है तब मैं स्व. पू. आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी और स्व. पं. दलसुखभाई दोनों महानुभावों का स्मरण करके हृदयपूर्वक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ । अपने पास की सुमतिनाथचरित की दो हस्तप्रतों की झेराक्स नकलें बिना मांगे ही मुझे देकर और इस संपादनकार्य में रस दिखाकर जो प्रेरणा दी है इसके लिए परम पूज्य आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजी म. सा. के प्रति भी वंदनपूर्वक आभार व्यक्त करता हूँ । बार बार संपादनकार्य शीघ्रता से सम्पन्न करने का आग्रह करके प्रेरित करने के
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