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संपादकीय
'कुमारपालप्रतिबोध' जैसी विशिष्ट कृति के रचयिता, राजा कुमारपाल एवं आचार्य हेमचन्द्रसूरिके समकालीन, आचार्य सोमप्रभसूरि विरचित प्राकृतभाषाबद्ध अनुपम चंपूरचना सुमइनाह - चरियं ( सुमतिनाथ - चरित) यहाँ प्रथमबार संशोधितसंपादित करके प्रकाशित करते हुए अत्यंत आनंद अनुभव कर रहा हूँ ।
स्व. आगमप्रभाकर पूज्य मुनिराज श्री पुण्यविजयजी ने इसकी नकल अहमदाबाद के 'लवारनी पोळ जैन ज्ञान- भंडार' की हस्तप्रत पर से करवाई थी और दूसरी तीन हस्तप्रतों से पाठान्तर भी लिखवाये थे । उसी सामग्री की सहाय से प्रस्तुत संपादन किया गया है। परम पूज्य आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजीने यह जानकर की मैं इस ग्रंथका संपादन कर रहा हूँ, महती कृपा करके दूसरी दो हस्तप्रतों की झेरोक्ष नकलें मुझे दी। ग्रंथका संपादन कार्य पूर्ण होने आया था अतः इन दोनो हस्तप्रतों के पाठान्तर तो मैं लिख नहीं पाया, किन्तु मूल में आते अपभ्रंश अंश की शुद्धि करने के लिए ये दोनों झेरोक्ष कापियाँ मुझे अत्यंत सहायभूत बनी ।
उपरोक्त सभी प्रतियों का परिचय इस प्रकार है
( १ ) ल. प्रति :
'लवारनी पोळ जैन ज्ञान भंडार', अहमदाबाद की १८० पत्रों की कागजी प्रत । कविप्रशस्ति के अंत में लिपिकार - प्रशस्ति इस प्रकार है
॥ ग्रंथाग्रं ९८२१ ॥ छ ॥ इति सुमतिनाथपुस्तकं लिखितं समाप्तमिति ॥ छ || शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ चिरंजीवी ॥
(२) पा. प्रति :
पूज्यपाद मुनिराज पुण्यविजयजी ने इस प्रति के पत्रों की संख्या २३६ दीखाई है (इन में पत्र १०८ दुबारा लिखा गया है ।)
ग्रंथ के अंत में लिपिकार - प्रशस्ति इस प्रकार है
एवं ग्रंथाग्रं सहस्र ९ शत ६२१ || छ । सुमतिनाथचरित्रं समत्तं ॥ छ ॥ श्री ॥ शुभं भवतु ॥
१. यह हस्तप्रत हेमचंद्राचार्य ज्ञान मंदिर, पाटन के संग्रह की प्रत नं. १६६२ होने की संभावना है ।
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