________________
सोमप्रभाचार्य के किसी शिष्यने आचार्य के शतार्थ काव्य में गुरुस्तुतिरूप जो पद्य जोड़ दिये हैं, उन से उनके पूर्व जीवन पर थोडा प्रकाश पडता है
"मंत्रियों में मुकुटरूप प्राग्वाट जाति के जैन श्रावक जिनदेव थे। उनके सज्जनशिरोमणि पुत्र सर्वदेव थे। सर्वदेवके पुत्र सोमप्रभने कुमारावस्था में जिनदीक्षा ली थी। वे शास्त्रोंके पारगामी, तर्कपटु, शीघ्रकवि और उत्तम व्याख्याता थे।"१
सुमतिनाथप्रभुचरित्र-भाषांतर की अपनी प्रस्तावना में पू. मुनिश्री रवीन्द्रसागरजी ने सोमप्रभसूरि के जीवन के बारेमें लिखा है- "वि. सं. १२३८ महा सुदी ४ शनिवार के दिन आचार्यश्री के करकमलों से प्रतिष्ठित चतुर्विंशति जिन मातृकापट श्री शंखेश्वर तीर्थ में विद्यमान है ।
वि. सं. १२८३ का चातुर्मास वडाली में करके, चातुर्मास पूर्ण होने पर छ'री पालक संघ के साथ वि. सं. १२८४ में सिद्धाचल की यात्रा आचार्यश्री ने की थी। वि. सं. १२८४ का चातुर्मास अंकेवालिया में किया, उसी चातुर्मास समयमें ही आचार्यश्रीका स्वर्गवास हुआ ।"२
उपरोक्त तथ्यों के स्रोत का मुनिजी ने उल्लेख नहीं किया है। यदि उपरोक्त उल्लेख सही हैं, तो हम सोमप्रभसूरि का जीवन-काल विक्रमीय १३वीं सदी के प्रारंभ से वि. सं. १२८४ तक का मान सकते हैं।
इस तरह आचार्य सोमप्रभसूरि अपने समय के एक समर्थ प्रभावक आचार्य थे । उनका तत्कालीन जैन आचार्यों से एवं अन्य विद्वानोसे घनिष्ठ संबंध था । उनके १. प्राग्वाटान्वयनीरराशिरजनीजानिर्जिना पर:
संजातो जिनदेव इत्यभिधया चूडामणिर्मन्त्रिणाम् । यस्यौदार्य-विवेक-विक्रम-दया-दाक्षिण्यपुण्यैर्गुणैः साम्यं लब्धुमहर्निशं जगदपि क्लिश्यन् विश्राम्यति । तस्याऽऽत्मजः सुजनमण्डलमौलिरत्नमुज्जृम्भितेन्द्रियजयोऽजनि सर्वदेवः । एकस्थसर्वगुणनिर्मतकौतुकेन धात्रा कृतोऽयमिति यः प्रथितः पृथिव्याम् ॥ सूनुस्तस्य प्रथमकमलादर्पण: पुण्यकायः कौमारेऽपि स्मरमदजयी जैनदीक्षां प्रपन्नः । विश्वस्यापि श्रुतजलनिधे: पारमासाद्य जज्ञे श्रीमान् सोमप्रभ इति लसत्कीर्तिराचार्यवर्यः ॥ यो गृह्णाति समश्रुतं वहति यस्तऽद्भुतं पाटवं
काव्यं यस्त्वरितं करोति तनुते यः पावनी देशनाम् । २. सुमतिनाथप्रभुचरित्र, भाग-२, अनुवादक मुनि रवीन्द्रसागरजी, आत्मानंद जैन सभा,
भावनगर, प्रस्तावना पृ. १२ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org