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इसकी रचना सोमप्रभसूरिने वि. स. १२४१ में की थी। आचार्य हेमचंद्रसूरि के शिष्य श्रीमहेन्द्रमुनि और वर्धमानगणि एवं गुणचंद्रगणि ने इस ग्रंथ का श्रवण ग्रंथकारके मुखसे किया था ।
उपरोक्त रचनाओं के उपरांत एक 'लघुत्रिषष्टि की रचना सोमप्रभ की होने का उल्लेख मेघविजयकृत 'लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'की गुजराती प्रस्तावनामें पं. मफतलालने किया है ।३ ।
- शान्तिनाथ पर एक लघु रचना सोमप्रभकी होने का उल्लेख जिनरत्नकोशमें (पृ. ३८०)में मिलता है ।
सुमतिनाथचरित सुमइनाहचरियं(सं. सुमतिनाथचरितम्) सोमप्रभसूरिकी प्रथम कृति मानी जाती है। पंचम तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ के जीवनचरित्र का आलेखन करनेवाली समग्र प्राकृतसंस्कृत साहित्य की यह प्रथम कृति है। ९८०० से अधिक ग्रंथाग्र प्रमाणकी यह कृति महाराष्ट्री प्राकृत भाषामें रची गई है, तथापि पंचम प्रस्तावमें आठ कर्मों के प्रभाव के वर्णनमें संस्कृत गद्य का प्रयोग किया गया है (पृ. १२५-१२७) और नवम प्रस्तावमें नमस्कारविषयक पुलिंद-मिथुन की कथा में संस्कृत गद्य-पद्य दोनों का प्रयोग किया गया है (पृ. ४७१-४८५) । सप्तम प्रस्ताव में जिनभक्ति-विषयक सुंदरकथा नामक विस्तृत कथा अपभ्रंश पद्यमें लिखी गई है। तदुपरांत एकाधिक स्थानोंमें संस्कृत और अपभ्रंश पद्य प्राप्त होते
हैं।
आचार्य का संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं पर समान प्रभुत्व है । अक्षरवृत्त और मात्रावृत्त दोनों प्रकार के छंद में भी उनकी निपुणता प्रत्येक पद में दिखाई देती है।
९८२१ ग्रंथान के इस ग्रंथमें ३७०७ पद्य हैं। अर्थात् एक तृतीयांश से अधिक भाग पद्य है।
ग्रंथ का नाम एवं केन्द्रवर्ती विषय सुमतिनाथ तीर्थंकर का चरित है, किन्तु ग्रंथ एक प्रकार का कथाकोश ही बन गया है ।
१. शशिजलधिसूर्यवर्षे शुचिमासे रविदिने सिताष्टम्याम् ।। __जिनधर्मप्रतिबोधः क्लृप्तोऽयं गूजरेन्द्रपुरे ॥ (कुमारपालप्रतिबोध- प्रशस्ति) २. हेमसूरिपदपङ्कजहंसैः श्रीमहेन्द्रमुनिपैः श्रुतमेतत् । __ वर्द्धमान-गुणचन्द्र-गणिभ्यां साकमाकलितशास्त्ररहस्यैः॥(कुमार. प्रति.- प्रशस्ति) ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, खंड - ६, पृ. ७९ । ४. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, खंड - ६, पृ. ८५ ।
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