Book Title: Sukta Muktavali
Author(s): Bhupendrasuri, Gulabvijay Upadhyay
Publisher: Bhupendrasuri Jain Sahitya Samiti

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Page 337
________________ बालापणे संयम योगधारी, वर्षासमे कांचलि जेण तारी। श्रीवीरकेरो अइमुत्त तेई, सुज्ञान पाम्यो सुविवेक लेई // 33 // किञ्च-भगवतो महावीरस्य प्रभोः कश्चनाऽतिमुक्ताभिधानः शिष्यक्षुल्लकः शैशव एव गृहीतचारित्रश्चातुर्मासे जलोपरि श्रीफलकांचलिमतास्यत् / उत्तमविवेकोदयादीर्यापथिविधि प्रतिक्रामन् ' पणगदनमट्टिमकडा' इति पदं सम्यग्विभावयन् मिथ्यादुष्कृतमिति मुहुर्निगदन त्वरितमेव केवलज्ञानमाप // 33 // अथ ९-निर्वेद-वैराग्यविषये-शार्दूलविक्रीडित-छन्दसि'जे बन्धूजन कर्मबन्धन जिसा भोगा भुजंगा गणे, जाणन्तो विष सारिखी विषयता संसारताते हणे / जे संसार असार हेतु जनने संसारभावे हुवे, भावो तेह विरागवन्त जनने वैराग्यता दाखवे // 34 // यो हि कुटुम्बवर्ग कर्मबंधनमवैति तथा सांसारिकं सुखमपि सर्पमिव भयंकरमसारं रोगजनकञ्च पश्यति, वैराग्यवान् स पुमान संसार सुखेन तरति / यश्च संसारे रज्यति, स पुनः 2 अत्रैव निपतति / अतो विषयेषु वैराग्य विधातव्यम् // 34 // वसन्ततिलका-वृत्तम्-निर्वेद ते प्रबल दुर्भर बन्दिखानो, जे छोड़वा मन धरे बुध तेह जानो। निर्वेद थी तजिय राज विवेक लीधो, योगीन्द्र भर्तहरि संयमयोग सीधो // 35 // किश-निवेदो नाम विषयवासनाराहित्य, अतएव निवेदी पुमान् संसारम, कारागारं जानाति / यथा-कश्चित्प्राणी देवादेकदा

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