Book Title: Subhashit Sangrah
Author(s): Sukhsagar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 195
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८८) यच्चिन्तितं तदिह दूरतरं प्रयाति, यच्चेतसाऽपि न कृतं तदिहाऽभ्युपैति । प्रातर्भवामि भुवनेश्वरचक्रवर्ती सोऽहं व्रजामि विपिने जटिले तपस्वी ॥१३३४॥ घर घर बाजा न बजे, कहत पुकार पुकार । प्रभु विसारे पसु भये, पडत चाम पर मार ॥१३३।। कृपण कोथली श्वान भग, दोनों एक समान । घालत ही सुख उपजे, नीकलत निकसे प्राण ॥१३३६॥ वसीकरण यह मंत्र है, तज दे वचन कठोर ।। तुलसी मीठे बोलसे, सुख उपजे चउ भोर ॥१३३७॥ ये गायन में बडे, तुं गायनमें परवीण । ये ग्राहक कडवीणके, तु ले बेठा कर वीण ॥१३३८॥ जबराईका पेंडा न्यारा, कोइ मत मानो रीस । सब देवता सीस पूजावे, लिंग पूजावे ईश ॥१३३९।। भंग वेची थी जा दीना, भूरखा वेचा था ता दिना । खबर पडेगी ता दीना, रंगरोट कटेगो जा दिना ॥१३४०॥ जिसका काम तिसको छाजे, ओर करे तो लाठी वाजे । कुकर ठोडे गद्धा पोकारे, लाठी लेइ करी धोबी मारे॥१३४१। माठो धोरी ठोठ गुरु, कूवे तो खारो नीर । गामको ठाकुर घरकी घरनी, पांचो दहे सरीर ॥१३४२।। For Private And Personal Use Only

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