Book Title: Subhashit Sangrah
Author(s): Sukhsagar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 208
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८१ १८४ १०० १५२ १८८ १९० ११२ जणणी जम्मजले तैलं जम्मंलीए जन्मिनां प्रकृतिजगन्मातजनस्थाने भ्रान्तं जम्बूफलानि जटा नेयं जनिता चोपनेता जननी जन्मजबराईका पेंडा जब तक तेरे जातिर्यातु जानन्ति यद्यपि जाप्यं शतगुणं जाता लता हि जातापत्या जातेति शोको जामाता कृष्णजाता शुद्धकुलं जानामि नागेन्द्र जायते नस्का जानन्ति पशवो ( २०१ ) ९८ जानीयात् सङ्गरे १०२ जाड्यं धियो जिनभवनबिम्ब१२९ जिणसासणस्स जिनभक्ति जिहे प्रमाणं १४४ जिसका काम जिनप्रतिमा जविन्तोऽपि जीवन्ति सुधियः जीवोऽनादि१८८ जीभीमें अमृत १८९ जुमुप्सामयाजूए पसत्तजूवारी घर जे माणस जैनागारसहन जैनो धर्मः १०९ जो गुणइ १२२ ज्वरोष्णदाह१४२ ज्ञानस्य ज्ञानि१५० ज्ञातिभिर्भज्यते १६. झटिति पराशय१७४ तवनियमेण m ३१ س १७० م २३ For Private And Personal Use Only

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