Book Title: Subhashit Sangrah
Author(s): Sukhsagar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 212
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०५) धर्मभ्रष्टा हि धर्मार्थकामधर्महीनो द्विजधर्महीनाः कृमयः धर्मोपदेशेन धनाल्यता धर्मोऽयं धनधन्यानां गिरिधर्मार्थकामधनानि भूमौ धनुषि धनुधनिकः श्रोत्रियो धर्म करत धिगस्तु धीराणां भूषणं धूम्रपानरतं धूमः पयोधरध्येयस्त्वं ध्यानं दुःखन सा दीक्षा नमस्कारसमो नवकार इक्कनरयगइ ३९ न विद्यया ४५ म देवपूजा ५८ न ते नरा न कयं दीणु६३ न चौरहार्य ७९ न जातु कामः ६४ न वेषां ब्राह्मणी १०५ नमस्तुभ्यं न सा जाई १५७ नमस्यामो देवान् १६५ न चादौ मुग्ध१६८ न रणे निर्जिते १८६ न नर्मयुक्तं ११६ न मांसभक्षणे नत्थि यसि कोइ ४. नराणां नापितो न निर्मितं ११८ न कार्या १२९ न याचे गजा २ न पश्यति १२ न स्वर्धनी १३ नरत्वं दुर्लभ १५ न स्नेहेन AACGM mmD Moc WAmm 24 vis . ० ० For Private And Personal Use Only

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