Book Title: Subhashit Sangrah
Author(s): Sukhsagar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 197
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९० ) फूट नाशका मूल हे, फुट मत करो कोय | फूट पडी नृप हिंदमें दीयो देशको खोय दमयंती नल नरवरे, राणी तजी निरधार | पांडव पांचाली तजी, ए जूवारी आचार जूवारी घर ऋघडी, माकड कंठे हार । घेली माथे बेडलो, रहे केटली बार राजा के घर रातिजो, भाभज विना न होय । जो सुवे साचे कहे, तो मेनाकी गत होय पंडित भये मसालची, बातां करे बनाई । औरन को उजलो करे, आप अंधेरे जाई रांड गुरु पैसा परमेश्वर, छोरा छोरी साध । तीरथ हमारे कोन करे, घरमें ही वैराग सासु तीरथ ससरा तीरथ, आधा तीरथ साली । माबाप को लात मारु, सब तीरथ घरवाली जे माणस जेणी परे, समजे धर्मनो सार । पंडित जन तेनी परे, समजावे निरधार ।। १३५३ ।। For Private And Personal Use Only ।। १३५४ ।। ॥ १३५५ ॥ ॥ १३५६ ।। ।। १३५७ ।। ।। १३५८ ॥ ।। १३५९ ।। ।। १३६० ।। जिन प्रतिमा पूजी नाही, धर्मो जो मनमें द्वेष | सो नर मर कर कुता भया, झालर वेरा देख ॥ १३६१ ॥ कर मरोडे चुडीया तिडे, रे मूर्ख मणियार । अपने पियुके कर विना, कभी न करूं सीसकार ।। १३६२ ।।

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