Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
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अम्हारिसेसु तम्हा धम्मुवसत्थमुज्जमंतेसु ।
अजाणंतु य सुयणा इयरे वि य होंतु मज्झत्था ||२०|| पुरिसेणं बुद्धिमया लद्धूण सुमाणसत्तमइदुलहं । अप्पहियं कायव्वं तं च न धम्माउ परमत्थि ॥२१॥ धम्मो संसारमहा - समुद्दपडियाण जाणवत्तं व्व । धम्मो च्चिय होइ सुमाणुसत्त- सुर-सिद्धिसुहमूलं ॥ २२ ॥ जइ वि हु दाणाईओ चउव्विहो मोक्खसाहओ धम्मो । भणिओ जिणेहिं तहवि हु मज्झ रुई नाणदाणम्मि ||२३|| अमुणियपरमत्थाणं मिच्छत्तमहंधयारमूढाण । जो देइ नाणदाणं तेण न किं तिहुयणं दिन्नं ? ||२४|| जम्मंधस्स व जह विमल चक्खुदाणेण होइ उवयारो । जीवाण वि जाण तहा निम्मलनाणप्पयाणेण ॥ २५ ॥ तंपि हु नाणपयाणं जहत्थजिणधम्मतत्तवित्थारो । संमत्त-नाण- दंसण-चरणाणुगओ कहेयव्वो ||२६|| तप्परिवालणमाहप्प-गलियनीसेसकम्मनियलाण । पुव्वपुरिसाण चरियं जणइ विवेयं कहिज्जंतं ॥२७॥ परियप्पियचरियगयं दुविहं पि हु उवसमेइ जइ जीवे । ता अविकलकज्जपसाहणेण इह दोवि गरुयाइं ||२८|| तं नत्थि संविहाणं संसारे एत्थ जं न संभवइ । इय वयणाओ सव्वं चरियं चिय कप्पियं नत्थि ||२९||
न परोवयारओ इह अन्नो धम्मो जयम्मि संभवइ । उवयारो वि न विज्जइ सद्धम्मुवएसओ अवरो ||३०||
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