Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
एक्को च्चिय परदोसो अह तत्थ पुरीए गुणसमिद्धाए । जं होइ सव्वकालं परदुक्खे दुक्खिओ लोओ ।।४१।। तत्थत्थि पसत्थगुणो दरियारिकरिंदकेसरिकिसोरो । आजलहिमहीनाहो राया अजियविकूमो नाम ॥४२।।
जस्स पयावानलडज्झमाणहिययाण वेरिनारीण । . परिसूसंतोट्ठउडा तेणुण्हा होति नीसासा ||४३।।
विफु(प्फु)रइ कसिणकरवालभासुरो जस्स समरमज्झम्मि । हढकड्डियारिजयसिरि-वेणीदंडोव्व(व) भुयदंडो ॥४४।। तुलियमहीहरभुयदंड-महियगुरुसमरसायरेणं व । हरिणेव्व जेण नियए लच्छी वच्छत्थले ठविया ॥४५॥ विणिवाइयवेरिसुया जस्स पयासंति भीमभुयविरियं । भडखंभचित्तकविकयचरित्तपमुहेहिं हेऊहिं ॥४६।। जम्मि वसुहाहिनाहे वसुहं नयविक्कमेहिं पालंते । होइ पउसो रयणीपढमो जामो न गुणिलोओ ॥४७।। निच्चत्थमणं रविणो दोसुदओ जइ ससिस्स न जणस्स । परवसणसणेणं संतोसो जइ नियत्थेणं ।।४८।। हुंतेण जेण जो किर उप्पज्जइ सो न तस्स नासेण । पावइ तत्थ पसिद्धिं अहुणासदं पमोत्तूण ।।४९।। तस्स महानरवइणो रविवंससमुब्भवस्स गुणकलिया । नामेणं कमलसिरी कुलुब्भवा अत्थि पियभज्जा ॥५०॥ तस्सायत्तं से जीवियंपि इय तप्पउत्तवावारा । ववहरइ जा असेसं दप्पणपडिबिंबछायव्व ॥५१॥
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