Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
अवहरियकरितुरंगमलच्छी न हु तेण तुलगुणो ॥६२॥ अपरोवयारिकणगो कुलमहिहरबाहिरो पयइथद्धो । कणयगिरी वि समाणो गुणेहिं न हु तस्स कुमरस्स ॥६३॥ इय निज्जियसयलुवमाण-विमलगुणगरुयलद्धजसपसरो । भुयणच्छेरयभूओ देवकुमारोव्व नररूवो ॥६४॥ अणुदियहमणन्नमणो पवित्तपिउचरणकमलकयसेवो । बहुविबुहसहाणुगओ आणंदियगुरुयणो वीरो ॥६५॥ सुकई कलासु कुसलो गंथत्थवियारलद्धमाहप्पो । सुयणो परोवयारी वाई सुकयन्नुओ रसिओ ॥६६॥ अह तस्स जहासुहमिच्छियत्थसंपत्तिसुहियहिययस्स । वच्चंति सव्वदियहा परोवयारं करंतस्स ॥६७॥ अह नरवइणा परभाविऊण सव्वत्थ तस्स सामत्थं । सुपसत्थतिहि-मुहुत्ते अहिसितो जोवरज्जम्मि ॥६८ । अत्थि य तस्साजियविकूमस्स सिरिवरसीहसामंतो । पियमित्त-मंति-सुसहाय-बीयहिययं व नरवइणो ॥६९।। तस्सत्थि सुओ नामं रणवीरो वैरिरायदुद्धरिसो । हरिविकुमस्य आबालभावसहवडिओ मित्तो ॥७०॥ अन्ने वि राय-सामंत-मंति-ववहरय-इब्भ-बहुपुत्ता । विविहगुणा गुणिरायं हरिविकूममेव सेवंति ॥७१॥ अन्नम्मि दिणे पच्चूस एव कयसयलगोसकरणीओ । उवविट्ठो महरिहआसणम्मि बहुसेवयसमेओ ॥७२॥ नीसेसमित्तमंडल-पणिवइयसलक्खणंककमकमलो । । विहियजहारिहपडिवत्ति-दिनकप्पूरतंबोलो ॥७३॥
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