Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
॥झा अर्ह नमः ॥ नएँ नमः ॥
श्रीशङ्केश्वरपार्श्वनाथाय नमोनमः ।। __नमो नमः श्रीगुरुनेमिसूरये ॥
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
॥ नमः सर्वज्ञाय ॥ पढमं चिय पढमजिणस्स नमह नहमणिमऊहरमणीयं । अंकुरियमोक्खपायव-बीयनिहाणं व पयकमलं ।।१।। सो जयइ वद्धमाणो घणोव्व इह जस्स वयणवारिभरो । नियभासाय रसेण व तरूण जीवाण परिणमइ ।।२।। अइनिम्मलाए नमिमो अवसेसजिणावलीए पयकमले । जीए मुत्तावलीए व एक्को च्चिय सुत्तसारत्थो ॥३॥ पणमह पणमंतमहा-कइंदसंकंतनयणपडिबिंबं । कयनीलुप्पलपूयं व भारईचरणनहनिवहं ॥४॥ जाओ जाण पसाएण मज्झ मूयस्स वयणविन्नासो । . ताण अणंतगुणाणं गुरूण पणमामि पयकमलं ॥५॥ ते कइणो हिययमहोयहिम्मि सुमहत्थरयणरमणीया । उल्लसइ जाण वाणी उयरुयरि तरंगमालव्व ।।६।। सुकइत्तणावलेवं वहति कह ते न जाण उभयंपि । वयणम्मि वसा वाणी न मणम्मि सयथनिप्फत्ती ॥७॥ पयपूरणमेत्तेणं अदिट्ठपरमत्थवत्थू(त्थु)नाणेणं । कव्वेण कुवुरिसेण व कइकुलमज्झे परं हासो ||८||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 838