Book Title: Siddhhem Balavbodhini Part 02
Author(s): Mahimaprabhsuri
Publisher: Mahimaprabhvijay Gyanmandir Trust

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Page 632
________________ શ્રી સિદ્ધહેમચન્દ્રશદાનુશાસનસૂત્રાકારાધનુક્રમણિકા [૬૧૭ सूत्राङ्ग । सूत्रम् । विरागादिरङ्गश्च ॥ ६-४-१८३॥ विरामे वा ।। १-३-५१ ॥ विरोधिनाम० ॥ ३-१-१३० ॥ विधीवाद्वा ॥ ६-४-२५ ॥ विवादे वा ॥ ३-३-८० ॥ विवादे द्वन्द्वा० ॥६-३-१६३॥ विशपतपद || ५-४-८१ ॥ विशाखाषा० ॥ ६-४-१२० ॥ विशिसहि० ॥ ६-४-१२२ ॥ विशेषणं च ॥ ३-१-९६ ॥ विशेषणमन्तः ॥ ७-४-११३ ॥ विशेषणस - हौ ॥ ३-१-१५० ॥ विशेषविव ॥ ५-२-५ ॥ विश्रमेर्वा ॥ ४-३-५६ ॥ विष्वचो विषुश्च ॥७-२-३१॥ विसारिणो मत्स्ये ॥ ७-३-५९॥ वीप्सायाम् ॥ ७-४-८० ॥ वीरुन्यग्रोधौ ॥ ४-१-१२१ ॥ घृकाटेण्यण् ॥ ७-३-६४ ॥ वृगो वस्त्रे ॥ ५-३-५२ ॥ बृजमद्रा० ॥ ६-३-३८ ॥ वृत्तिसर्गतायने ॥ ३-३-४८ ॥ वृत्तोऽपपाठो० ॥ ६-४-६७ ॥ वृयन्तोऽसषे ॥ १-१-२५ ॥ वृद्धस्त्रियाः ॥ ६-१-८७ ॥ सूत्राङ्क । सूत्रम् । वृद्धस्य च ज्यः ॥७-४-३५॥ वृद्धाघूनि ॥ ६-१-३० ॥ वृद्धिः स्वरेष्वा० ॥ ७-४-१ ॥ वृद्धिरादौत् ॥ ३-३-१ ॥ वृद्धिर्यस्य० ॥ ६-१-८ ॥ वृद्धेऽञः ॥ ६-३-२८ ॥ वृद्धो यूनात० ॥ ३-१-१२४॥ वृद्भिक्षिलुट० ॥ ५-२-७० ॥ वृद्भ्यः ः स्वसनोः ॥३-३-४५॥ वृन्दादारकः ॥ ७-२-११ ॥ वृन्दारकनाग० ॥३-१-१०८ ॥ वृषाश्वान्० ।। ४-३-११४ ॥ वृष्टिमान वा ॥ ५-४-५७ ॥ वृतो नवाऽना० ॥ ४-४-३५ ।। वेः ॥ २-३-५४ ॥ वेः कृगः-शे ॥ ३-३-८५ ॥ वेः खुखम् ॥ ७-३-१६३ ॥ येः स्कन्दो० ॥ २-३-५१ ॥ वेः स्त्रः ॥ २-३-२३ ॥ वेः स्वार्थे ॥ ३-३-५० ॥ वेगे सर्त्त० ॥ ४-२-१०७ ॥ वेटोsपतः ॥ ४-४-६२ ॥ वेणुकादिभ्य० ॥ ६-३-६६ ॥ वेतनादेर्जीवति ॥ ६-४-१५ ॥ वेत्तिच्छिद० ॥ ५-२-७५ ॥

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