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प्रकाशन हुआ है, तभी से दिगम्बर जैन धर्म को मुख्य र मान्यताभों को अनावश्यक एवं प्रामाणिक सिद्ध करने का प्रयत्न किया जाने लगा।
वर्तमान में दिगम्बर जैन विद्वानों में तीन प्रकार की विचार धारायें हैं, प्रायः तीनों प्रकार के विचार वाले विद्वान अपनी २ मान्यतामों का पाधार षटखण्डागम को बतलाते हैं, कुछ लोगों का विचार है कि श्रीमुक्ति सवनमुक्ति तथा केबली कबलाहार दिगम्बर जैनागम से भी सिद्ध होते हैं और इसमें षटखण्डागम * सत्संख्याक्षेत्रमशन-कालांतर-भावाल्प-बहुत्व प्ररूपणामों में मानुषी के चौदह गुणस्थानों का वर्णन प्रमाण में देते हैं, परन्तु पांचवें गुणस्थान से ऊपर कौन सी मानुषी ली गई है, तथा दिगम्बर जैन बाचार्य परम्परा ने कौन सी मानुषी के चौदह गुणस्थान बताये हैं। दिगम्बर जैन धर्म की ऐतिहासिक सामग्री एवं पुरातत्व सामग्री में क्या कहीं पर द्रव्यत्री के मोक्ष का बल्लेख मिलता है ? अथवा कहीं पर कोई मुक्त व्यत्री को मूर्ति उपलब्ध है ? इत्यादि बातों पर विचार करने से यह स्थूल बुद्धि वालों को भी सरलता से प्रतीत हो जाता है कि जहां पर मानुषियों के छठे भादि गुणस्थानों का वर्णन है वह सब भाव को अपेक्षा से ही है, न कि द्रव्यापेक्षा से। __दूसरी प्रकार की विचार धारा वाले वे लोग हैं जो द्रव्यसी की दीक्षा, तथा मुक्ति का निषेष तो करते हैं और पटरएडागम में बताये गये, मानुषी के चौदह गुणस्थानों को भाव की अपेक्षा से