Book Title: Siddhanta Sutra Samanvaya
Author(s): Makkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
Publisher: Vanshilal Gangaram

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Page 212
________________ शास्त्र के जीर्णोद्धार कार्य में कोई चिंता का सामना नहीं करना पड़ेगा ऐसा भी हमें भरोसा है। परन्तु कार्य का प्रलोभन सिद्धांत विषात को सहन करा देवे यह बात भले ही थोड़े समय के लिये हो तो भी वह अनुचित एवं अग्राह्य है। जैसे अनेक दिनों का पोषित एवं पीण शरीर का धारी अत्यन्त मशक साधु भी बिना नधाभक्ति एवं निरन्तयय शुद्धि सप्रेक्षण के कभी भोजन ग्रहण नहीं कर सकता है। उसी प्रकार कोई भी परमागग श्रद्धानी, उस में सामिल की गई सिद्धांत विपरीत बात को अथवा लगे हुये भवर्णवार को बिना दूर किये कभी चुप नहीं बैठ सकता है। इस समस्या पर ध्यान दिलाते हुये हम चारित्र चक्रवर्ती परम पूज्य श्री १०८ प्राचार्य महाराज के चरणों में यह निवेदन करते हैं कि वे शोघ्र ही ऐसी समुचित व्यवस्था कराने का नाम्रपत्र निर्मारक कमेटी को भादेश दे। जिससे दिगम्मरत्व एव परमागम सिद्धांत शास्त्र की रक्षा भक्षुण्ण बनी रहे। बस इतना ही सदुरेश्य हमारा इस मन्ध रचना का है। -अन्य नाम और उसका उपयोगइसका नाम हमने सिद्धांत सूत्र समन्वय' रक्खा है। वह इसलिये रक्खा है कि इस निन्ध रचना से सजद' पद १५६ सत्र में सर्वधा नहीं है यह निर्णय तो भली भांति हो ही जाता है। साथ ही इस पटखण्डागम में केवल भारत नहीं, उसमें इब्योरमा निरुण भी है, पाद की कार मार्गणामी का बोन वेदाहि मार्गणामों से सर्वथा भिम बोगमायाम

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