Book Title: Siddhanta Sutra Samanvaya
Author(s): Makkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
Publisher: Vanshilal Gangaram

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Page 204
________________ १६० इस पंचिसे वे पटखण्डागम में भाववेद का स्वयं खण्डन भी कर रहे हैं । इसके आगे दिगम्बर जैन सिद्धान्त दर्पण द्वितीय भाग के पृष्ठ १७८ और १७६ में उम्भों ने पटखरडागम के सूत्र १३ में की धवला टीका का पूरा उद्धरण दिया है और अर्थ भी किया है अन्त में यही लिखा है कि यह १३ वां सूत्र द्रव्यखी का ही विधान करता है और उसके पांच हो गुणस्थान होते हैं। इस से उन्हों ने १३ में सूत्र में 'संजय' पद का सप्रमाण एवं सहेतुक खण्डन किया है। हम यहां अधिक उद्धरण देना व्यर्थ समझने हैं जिन्हें देखना होवे दिगम्बर जैन सिद्धान्त दर्पण द्वितीय भाग में सोनी जी का पूरा लेख पढ़ लेवें। हमने तो यहां कुछ उद्धरण देकर के सोनी जी की पूर्वापर विरुद्ध लेखनी और समझ का दिग्दर्शन करा दिया है। इससे पाठक सहज समझ लेंगे कि इन भावपची विद्वानों का कोरा हठवाद कितना बढ़ा हुआ है। वे सिद्धान्त शास्त्र और गोम्मटसार के प्रार्णो का पहले प्रन्भाशय के अनुकूल अर्थ करते थे अब वे उसके विरुद्ध अर्थ कर रहे हैं यह बात सोनी जी के दिये हुए उद्धरणों से हमने स्पष्ट कर दी है। इन विद्वानों को दिगम्बरस्य एवं सिद्ध-विघात की परवा (चिन्ता) नहीं है किन्तु इस समय उन्हें केवल अपनी बात को रक्षा की चिन्ता है। उनकी ऐसी समझ और विचार शत्री का हो जाना खेदजनक बात है। भागम के विषय में हठवाद वर्षो ? श्रीमान प्रोफेसर हीरालाल जी एम० ए० ने जब द्रव्यस्त्री

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