Book Title: Siddhanta Sutra Samanvaya
Author(s): Makkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
Publisher: Vanshilal Gangaram

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Page 207
________________ १६३ आपको धरना सप्रमाण बकव्य प्रद्धि करना परमावश्यक था, परन्तु दूसरे विद्वान तो कुछ लिखते भी हैं, आप सबथा चुप हैं और काम छोड़ देने की धमकी दे रहे हैं। ऐनी धमरी तो चागम के विषय में कोई निस्पृह भ्रम करने वाला भी नहीं दे सकता है। धापका कर्तव्य तो यही होना चाहिये कि आप स्वयं महाराज की सेवा में यह प्रार्थना करें कि सअद शब्द पर जो विवाद समाज में खड़ा हो गया है उसे आप दूर कर दीजिये और शाखाधार से जो निर्णय भाप देंगे उसे मानने में हमें कोई भापति नहीं होगी । ऐसा कहने से आपको बात जाती नहीं है किन्तु सरतमा प्रयोग होगी। विद्वता का उपयोग और महस्य ह में नहीं कि आगम की रक्षा में है । चाचार्य महाराज पूर्ण समदर्शी उद्धट विद्वान, सिद्धांत शास्त्र के रहस्य एवं निश्चय सभ्यम्टष्टि है. भीतराग महर्षि है। ठ दे जो निर्णय देंगे भागम के अनुसार ही देंगे, चारको महाराज के नियांय में किसी प्रकार से माशङ्का भी नहीं करना चाहिये। जैसा कि - पं० वंशीवर ओ ने "यदि श्राचार्य शांतिसागर जी साद पद के विरुद्ध निर्णय देंगे तो दूसरे चाचार्य दूसरा निखँब देंगे तो किसका मान्य होगा" ऐवी सर्वथा अनुचित एवं भा बात रखकर अपनी भाशा रखकर मनोवृत्ति का परिचय दिया है। आप विवेक से काम लेवें और अपने बड़े भाई के समान कई बात नहीं कहकर इस विवाद को मिटाने एवं भागम की रक्षा करने में परम पूज्य भाचार्य महाराज से ही निर्णय मांगें बधा

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