Book Title: Siddhanta Sutra Samanvaya
Author(s): Makkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
Publisher: Vanshilal Gangaram

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Page 195
________________ सामान पट्टशिष्य थे। प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत पक्रवर्ती ने जब गोम्मटसार की रचना की थी तभी उनके सामने ही उनके शिष्य चामुंडराय ने इस गोम्मटमार की टोका कर्णाटक वृत्तिरीयो, यह टीका पनोंने अपने गुरु मन पन्ध गोम्मटसार के रयिता भाषायें नेमिषन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती को दिखाकर उनसे पास भी करा ली होगी यह निश्चित है। तभी तो गोम्मटसार की रचना क अंत में प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत पवती ने यह गाथा लिलो है। गोमहमुत्तनिहण गोम्मटरायेण जा कयादमी सोमो चिरकाल एमेण य वीरम हो । (गो०० गा०६७२) अर्थ-गोम्मटसार अन्य के गाथा सूत्र लिखने के समय जिस गोमटराय ने (चामुबाराय ने) देशी भाषा कर्णाटक वृति बनाई है वह और मार्तण्ड नाम से प्रसिद्ध चामुण्डराय पिरकाम तक जयवंत रहो। ___ यह १७२वी गाथा गोम्मटसार की सबसे खीर को गाया इसमें च.मुंबराय की टीका का उल्लेख कर प्राचार्य ने मिषन सिद्धांत चक्रवर्ती ने उन्हें वीर मार्तण नाम से पुकारकर चिराग जीने का भावपूण भाशीर्वाद दिया है। इससे पहली पांच गावागों में भी प्राचार्य महाराज ने चामुण्डराय के महान गुणों को और उनके समुद्र तुल्य ज्ञान की भूरि २ प्रशंसा की है। इससे यह पात सहज हर एक की समझ में माने योग्य है कि पापाय

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