Book Title: Siddhanta Sutra Samanvaya
Author(s): Makkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
Publisher: Vanshilal Gangaram

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Page 166
________________ बोगी मानें । मूल प्रन्य और टीका मन्यों के प्रमाणों को देखते हुये और उनके विरुद्ध पाप बोगों का वक्तव्य पढ़ते हुये हमें इतना पटु सत्य लिखना पड़ा है इसलिये पार लोग हमें क्षा' करें। हमारा इरादा पाप पर या दूसरे विद्वानों पर पाक्षेप करने का सर्वथा नकिन्तु बस्तुस्थिति बताने का है । १२-६३ सत्र और ८१.६०-६१ ये सब सूत्र भावापी मुख्यता नहीं रखते है किन्तु वे पवेत अथवा व्यशरीर की मुख्यता रखते हैं और द्रव्य शरीर भी वहां की निया जाता है जहां जिस वे की अपेक्षा से कथन है । ऐसा नहीं है कि कथन तो मानुषी की और द्रव्य शरीर मनुष्य का लिया जाय। जिस का कथन है उसी को अपर्याप्त पर्याप्त अवस्था और दृष्य शरीर ग्रहण करना सिद्धांत.. विवि है। इसी बात की सिदि हम उन सत्रों की व्याख्या और प्रकरण में अनेक प्रमाणों से सष्ट कर चुके हैं। मागे ६० फूलपाको शास्त्री ने धवन के 5वें सत्रा प्रमाण देकर यह बताया है कि वहां पर स्त्रीवेद विशिष्ट तियंचों का पहरा है । प्रमाण यह हैस्त्रीविशिषि विशेषगतिपादनार्थमाह' घबमा १४३२७ इतना विकर वे निखाते है कि इसी के समान सा सूत्र ही पाले मनुष्यों के सम्बन्ध में है, व्याधियों के समान्य रात्री जी से हम यह पूछते हैं कि उपरोषपना पति

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