Book Title: Shrutsagar Ank 2013 02 025
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री लोद्रवपुर तीर्थ एक परिचय • डॉ. उत्तमसिंह तीर्थाधिराज : श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग १०० से.मी. परिकर युक्त। तीर्थ स्थल : जैसलमेर से १५ कि.मी. तथा अमरसागर से ५ कि.मी. दूर स्थित लोदरवा गाँव में। प्राचीनता : लोद्रवपुर ग्यारहवीं शताब्दी में राजस्थान के लोद्र राजपूतों की राजधानी का प्रमुख शहर था। भाटी देवराज ने अपनी राजधानी वि.सं. १०८२ में देवगढ से यहाँ परिवर्तित की थी। उस समय इस नगर की जाहो-जलाली अद्भुत थी। नगर में प्रवेश करने हेतु बारह प्रवेशद्वार बनाये हुए थे। एक समय यह राज्य सगर राजा के अधीन था । राजा के श्रीधर तथा राजधर नामक दो पुत्र थे। जिन्होंने जैनाचार्य से प्रतिबोध प्राप्त कर जैन धर्म अंगीकार किया। इन्हींने यहाँ श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान के अति विशाल और भव्य तीर्थ का निर्माण कराया। यह उल्लेख श्री सहजकीर्तिगणि द्वारा लिखित शतदलपद्मयंत्र की प्रशस्ति में मिलता है जो आज भी इस मन्दिर के गर्भद्वार के दाँयी ओर विद्यमान है। लेकिन राजकीय विप्लव के परिणाम स्वरूप यह मन्दिर क्षतिग्रस्त हो गया। सर्वप्रथम सेठश्री खीमसिंह द्वारा जीर्णोद्धार कार्य का आरम्भ उनके पुत्र श्री पूनसिंह द्वारा कार्य संपूर्ण कराये जाने तथा पुनः धर्मपरायण सेठश्री थीरूशाह भणसाली द्वारा जीर्णोद्धार, नूतन जिनबिंब निर्माण एवं प्रतिष्ठा कराने का उल्लेख भी शतदलपद्मयंत्र में मिलता है जो निम्नवत है : श्रीमल्लोद्रपुरे जिनेशभवनं सत्कारितं खीमसीः। तत्पुत्रस्तदनुक्रमेण सुकृती जातः सुतः पूनसीः ।।३।। कालान्तर में रावल भोजदेव तथा जेसलजी (चाचा-भतीजा) के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। जिसके परिणाम स्वरूप पूरा लोद्रवपुर शहर नष्ट हो गया तथा मन्दिर भी क्षतिग्रस्त हुआ। इस युद्ध में जेसलजी ने विजय प्राप्त कर नई राजधानी का निर्माण कराया और नाम रखा जैसलमेर । जैसलमेर के राजमान्य एवं संपन्न श्रावकों ने यहाँ के प्रसिद्ध किले में भव्य देरासरों तथा पाण्डुलिपि भण्डारों का निर्माण कराया। उस समय श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाजी को लोद्रवपुर से जैसलमेर ले जा कर नव निर्मित देरासर में प्रतिष्ठा की गई जो आज भी वहाँ विराजमान हैं। For Private and Personal Use Only

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