Book Title: Shrutsagar Ank 2013 02 025
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृति परिचय श्रेणिकरास • डॉ. उत्तमसिंह जैन श्रुत साहित्य में महाराजा श्रेणिक की कथा विस्तार पूर्वक मिलती है। श्री उत्तराध्ययनसूत्र. श्री निरयावलिकासूत्र, श्री अंतगडदशांगसूत्र, श्री नंदीसूत्र, श्री भगवतीसूत्र, श्री ज्ञाताधर्मकथासूत्र, श्री उववाइयसूत्र आदि विविध आगम ग्रन्थों तथा कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यकृत त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र में महाराजा श्रेणिक का जीवनवृतान्त वर्णित है। ___ मध्यकालीन जैन साधु भगवन्तों एवं कवियों ने उपरोक्त ग्रन्थों को आधार बनाकर महाराजा श्रेणिक के व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व विषयक पद्यबद्ध रोचक और मनोहर विविध रासकृतियों की रचना की है। प्रस्तुत रास तपागच्छीय कवि वल्लभकुशल कृत रासकृति है। प्रायः यह कृति अप्रकाशित है। इसकी रचना वि.सं.१७७५ में कार्तिक वदि तेरस, रविवार के दिन संघवी जयकरण के उपदेशार्थ जीरनगढ़ (जूनागढ) गिरनार में तपागच्छ नायक आचार्य श्री विजयरत्नसूरि के शिष्य आचार्य विजयक्षमासूरि के प्रशिष्य आचार्य सुन्दरकुशलसूरि के शिष्य जैन कवि श्री वल्लभकुशल द्वारा की गई है। कृति की प्रशस्ति में रचना संवत, रचना स्थल एवं ग्रन्थकार की परम्परा का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गाया है। इस कृति की दो प्रतियाँ आचार्य श्री कैलाससागर सूरि ज्ञानमंदिर कोबा के ग्रन्थागार में विद्यमान हैं। जिनका प्रतक्रमांक ५४९१३ तथा ८३८४ है। हाथ द्वारा निर्मित कागज पर काली श्याही द्वारा यह ग्रन्थ लिखा गया है। जिसकी कुल फोलियो संख्या क्रमशः ५४ तथा ४८ है। प्रत्येक पृष्ठ पर १३/१४ पंक्तियों में सुन्दर अक्षरों में पद्यात्मक कड़ियाँ लिखी हुई हैं। अक्षरों की श्याही सुर्ख-काली और चमकदार है। लेकिन पन्ने पीले पड़ गये हैं। प्रत के मार्जिन हाँसाया में दोनों ओर लाल रंग से लाईनें बनाई हुई हैं। इसकी भाषा मारूगुर्जर है, तथा लिपि प्राचीन देवनागरी है । यह ग्रन्थ ४९ ढाल, १० चौपाई तथा ५० दोहाओं में रचित है। इसमें कुल १२३६ गाथाओं का संग्रह है, जो सात खण्डों में विभक्त है। For Private and Personal Use Only

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