Book Title: Shrutsagar 2017 05 Volume 12
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 ॥९॥ SHRUTSAGAR May-2017 सूरिमंत्रना धरण धीर विद्याबलि बलिआ, कर्म वसेषि कुटिल कर्म सायण वसि पडिया; ऊषध मंत्र जडी करी ते घणुं विगूता', पुण गुण-लाभ व(वि)हीण दीण कल-कसमल' खूता ॥८॥ कालंतरि तसु पुजा-भावि हऊँ बुद्ध-पचासो', भाद भूप जई पूछीउ ए जस सरव-वएसो; एक चित्त सद्दहण करी सूरिराय पधारइ, भादभूवनी वयण लही नीअ देह साधारइ ॥९॥ ॥१०॥ अनुदिण ते गुरूराय सार, उवयार पमाण, भाद भूपना वयण अतिहिं आणइ बहुमान; इणि कुलिजगि इस्यु ज्ञानवंत नवि दीसइ कोई, तिणि कारणि मई सहीअ सयल महिमंडलि जोइ॥१०॥ ॥११॥ एक दुरंत महंत रोग, आपद वसि पडीआ, कर्म-विशेषि अनाथ दीण जिण बहू(हु)परि नहीआ; कालंतरि सिरि-भादराय तीहि श्रीमुखि मलीया, तास वयण सद्दहण करी सुख-संव(प)दि मलिआ॥११॥ नारि अनेकि विअदुअकम्म-दुग्मि झुरंति, पुत्तरयण पसवंति तेअपुण घर न रहंति; पुत्र-विरह-दुह-दाव-ताव-संताविअ-देह, जाख-शेष१३-क्षेत्रपाल-पुम(पमु)ह सुर पूजइ एह; दीण वचन बु(ब)हु पिर चवइ ए वली वली सिरि नामइ, पुत्र जीवत आशा करी ए मूरिख पडी भामइ ।।१२।। ॥१३॥ जाग१६ भोग वद्धामणा ए मानणा७ अन्ने(ने)क, पुत्र-आरति भरि नडीअ नारि करइ रही अववेक; १. दुःखी थयां, ७. दररोज, १३. यक्ष-शेषनाग, २. वगरना, ८. उपचार, १४. बोलवं, ३. कलिकाल रूपी कचरामां. ९. कलियुगमां, १५. भ्रममां, १०. खराब परिणामवाळां, १६. यक्ष, ४. थयो, ११. पद आ प्रमाणे हशे ‘एक १७. मानतां, ५. प्रकाश, महंत दुरंत रोग', १८. पीडाथी. ६. श्रद्धा, १२. तेने, ॥१२॥ For Private and Personal Use Only

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