Book Title: Shrutsagar 2017 05 Volume 12
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 श्रुतसागर मे-२०१७ संकेत साचा तस तणा ए माहालंतडे, जे दीठानी द्रष्टि; तेअने धिन धी हऊया ए माहालंतडे, होसिइ निइणि सृष्टि ॥२९॥ ॥३३॥ सयल देवातन परीहरी ए माहालंतडे, आराहउ श्रीभाद; तुम्ह जिम वंछित पूरवइ ए माहालंतडे, अनइ समरउ दइ साद ॥३०॥ ॥३४।। भादराय अवदात तणी ए माहालंतडे, वात सुणी नर-नारि; चींतवइ अभिनवउ कुतिगू ए माहालंतडे, दीसण इणि संसारि॥३०॥ ॥३५॥ एक चित्त जे नरवरु ए माहालंतडे, समरइ श्रीभादराय; रोग दोष सिवि तेहना ए माहालंतडे, निश्चइ टालइं अंतराय ॥३१॥ ॥३६॥ भण(इ)गुणइ जे नि(न)रवरु ए माहालंतडे, भाज मंत्रीसर रास; ऋद्धि वृद्धि कल्याण सहित ए माहालंतडे, पूरइं तीह सवि आस।।३२॥ ॥३७।। ॥ इति श्रीभादमन्त्रीश्वररासः समाप्तः ॥ प्राचीन साहित्य संशोधकों से अनुरोध श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं या किसी पूर्वप्रकाशित कृति का संशोधनपूर्वक पुनः प्रकाशन कर रहे हैं अथवा महत्त्वपूर्ण कृति का अनुवाद या नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, इसे हम श्रुतसागर के माध्यम से सभी विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादन कार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? यदि अन्य कोई विद्वान समान कृति पर कार्य कर रहे हों तो वे वैसा न कर अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों का सम्पादन कर सकेंगे. निवेदक- सम्पादक (श्रुतसागर) १. देवगण. For Private and Personal Use Only

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