Book Title: Shrutsagar 2017 05 Volume 12
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RNI:GUJMUL/2014/66126 ISSN2454-3705 श्रतसागर | श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) May-2017, Volume : 03, Issue : 12, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/EDITOR: Hiren Kishorbhai Doshi BOOK-POST / PRINTED MATTER 18RIGIP पदावाIGE PA1981 खा.श्री.कैलाचसागररिज्ञानविय श्रीमहावीर जैन आराधना केना. सा.क्र.3६७१४ गावराचाक्चामाधाचराधा-NEEMUYIरशाहावा. GधGN२४६१६३३४०६121GBावापाना२३8112221 वापाGU1GIGR४१२२१८पा8419२२1949212119४२६५२८ 1३८२४1०२६५८/२१६८२८५४०८1gणधा ॥६१19२०६४ GPान्त्राप्रधा|६४ानवधापायपदापENGELUGUIGAILUGUनाया GIGRIGत्रायात्राबा२१2019चधापश७३८३३धापापात्रा पपान्दाधापनायवपाप३0422101612811 दिवाधादशात्रावश४४ी४१0३दाच॥२॥२१७1८३1३RGol पत्रादधा२१६८७३शपपचारधावाG३2192UB2044489104261 ११2144२१६/२१६पाश्चात२२२छायण ४ानवापारयन्त्र ण १२ ८२वा112३८ो६ाहा21921३१८1८३1921६१२६पदा८४८२४६२६५डा 16891६1219214शधा७४पशवपखात्र३४३३७५३1८४७चापा GAU4192192541219201६७1८शापशावा.२४ पधाराश ६५४५४पत्राप७३णापवाद४८1८८1८८२४ाददादी ai 1/ R SERIA हावापयामपादघ2194 उपशा३।६२/६/२४६५६३४|१२ -०९/१४/६धाधुनि४०1८२४४६४।६४ाप३12212 चश६५३ ६४०/४४वाटचाप४४०/वाहमश्रीचयपा२३२०३४३४ायाश्री पश६॥२३१८४७८२४ावश६४२३१५२०२१७1०२१२४६३)श्रीवाना 1-91GINE२४11611६1190६४ारठाधिरावष्टाधराशा 1080८८२४/६।३५६८४७४ा७४७२४ानाम४11219zill २३४ापबा४ि1121912वश्वारा७४चादशादरा४।०२ १३४ादत्रा२१19IG४१1८बा२४1८३12711३1४/३६६६पादना४५/२६ MAHश्रीपा-४१६५४०रा२४ायनिहापाहावाशश्३याकाशा पशहादात्रयपात्रहार२१७४८४iraic2012221982168912३६या४या HA५४198219219वा८४७1८८२६७३।०४४1त्राशययायः विवाहावातिचापाकजिनम्तवना८72198144141924 पनामानन्दान अवतपातशनिलाक्दावमाSATRAUोताहनवत् जबकि ना1८४०GHI अंकपल्लवीलिपिनिबद्ध स्तवनपत्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरिपद प्रदान महोत्सव प.पू. गच्छाधिपति आचार्य श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरीश्वरजी के साथ प.पू. गुरुभगवंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी सूरिसिंहासन पर बिराजमान नूतन आचार्य भगवंत आचार्य श्री महेन्द्रसागरसूरिजी आचार्य श्री अरविंदसागरसूरिजी आचार्य श्री अरविंदसागरसूरि म.सा. निर्मित १०० वर्षीय पंचांग का विमोचन For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RNI : GUJMUL/2014/66126 ISSN 2454-3705 (आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र श्रुतसागर श्रुतसागर SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष-३, अंक-१२, कुल अंक-३६, मे-२०१७ Year-3, Issue-12, Total Issue-36, May-2017 वार्षिक सदस्यता शुल्क-रु. १५०/- ** Yearly Subscription - Rs.150/अंक शुल्क - रु. १५/- ** Price per copy Rs. 15/ आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * *संपादन सहयोगी * हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा । भाविन के. पण्ड्या एवं ज्ञानमंदिर परिवार १५ मे, २०१७, वि. सं. २०७३, वैशाख कृष्ण-४ नआराध महावीर केन्द्र. काबा अमृतं तु विद्या সুকাকু आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रम 1. संपादकीय रामप्रकाश झा 3 2. पूजा हेतु 4 3. प्रभुदर्शन स्तवन 4. Beyond Doubt आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी Acharya Padmasagarsuri गणि सुयशचंद्रविजयजी 5. भादमंत्री रास 6. अंकपल्लवीलिपिबद्ध पार्श्वजिन स्तवन 7. ऋषभपंचाशिका 8. जैन न्यायनो विकास संजयकुमार झा किरीट के. शाह मुनि श्री धुरंधरविजयजी रामप्रकाश झा 9. समाचार सार * प्राप्तिस्थान * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ * सौजन्य स्व. श्री पारसमलजी गोलिया व स्व. श्रीमती सुरजकँवर पारसमल गोलिया की पुण्य स्मृति में हस्ते : चाँदमल गोलिया परिवार की ओर से बीकानेर - मुम्बई KIsAm-mEEDO For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नूतन अंक आपके करकमलों में सादर समर्पित करते हुए अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है। इस अंक में गुरुवाणी शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमदबुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. का लेख “पूजा हेतु” के आगे का अंश प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख में जिनेश्वर वीतराग प्रभु के दर्शन से प्राप्त होनेवाले लाभों का वर्णन किया गया है, द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनांशों की पुस्तक 'Beyond Doubt' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है। __अप्रकाशित कृति प्रकाशन स्तंभ के अन्तर्गत इस अंक में दो कृतियों का प्रकाशन किया जा रहा है। प्रथम कति गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. द्वारा संपादित “भादमन्त्री रास” है, जो अद्यावधि सम्भवतः अप्रकाशित व अज्ञात है। इस कृति में मन्त्री भाददेव के माहात्म्य का वर्णन किया गया है। द्वितीय कृति आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के वरिष्ठ पंडितवर्य श्री संजयकुमार झा के द्वारा सम्पादित एवं तपागच्छाधिपति आचार्य विजयप्रभसूरि के परम्परावर्ती महिमाविजय के शिष्य लालविजय के द्वारा रचित “अंकपल्लवीबद्ध पार्श्वजिन स्तवन” है। इस कृति की विशिष्टता है कि इसमें मात्र अंकों का प्रयोग करते हुए सम्पूर्ण कृति की रचना की गई है। अनुमानतः वि.सं. 18वीं के मध्यकाल में रचित यह लघुकाय कृति सम्भवतः अप्रकाशित है। अन्य विशिष्ट प्रकाशनस्तंभके अंतर्गत इस अंक में कवि धनपालरचित "ऋषभपंचाशिका" की कुछ गाथाओं का प्रकाशन ब्राह्मीलिपि में किया जा रहा है। इस कृति का लिप्यंतरण कार्य श्री किरीटभाई के. शाह द्वारा किया गया है। आशा है ब्राह्मी लिपि के अभ्यासुओं हेतु यह उपयोगी सिद्ध होगा। उसके बाद डॉ. उत्तम सिंह के द्वारा रचित व सम्पादित पुस्तक भारतीय पुरालिपि मञ्जषा की समीक्षा डॉ. कृपाशंकर शर्मा के द्वारा प्रस्तुत की गई है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में मुनि श्री धुरंधरविजयजी द्वारा लिखित लेख “जैन न्यायनो विकास” का अन्तिम अंश प्रकाशित किया जा रहा है. इसमें जैन दार्शनिक ग्रन्थकारों में से श्री रामचन्द्रसूरि, श्री गुणचन्द्रसूरि, श्री प्रद्युम्नसूरि व श्री रत्नप्रभसूरि के समय व उनके कृतित्व का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। __ आशा है, इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से अवगत कराने की कृपा करेंगे, जिससे अगले अंक को और भी परिष्कृत किया जा सके। For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पूजा हेतु Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (गतांकथी आगळ...) आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी प्रभुनी प्रतिमा द्वारा गुणो मेळवी शकाय छे. रागीनी छबी देखीने राग उत्पन्न थाय छे. कामिनीनी छबी देखीने काम उत्पन्न थाय छे. शान्त पुरूषनी मूर्ति देखवाथी शान्त गुण उत्पन्न थाय छे. एक सामान्य उपदेशक वा साधुनी छबी देखीने तेना गुणोनुं स्मरण थाय छे तो अनन्त गुणोना धामभूत एवा परमात्मा वीतराग देवनी प्रतिमा देखवाथी तेमना गुणोनुं स्मरण थाय ए स्वाभाविक छे, अने तेमज तेमना गुणोनी प्राप्ति थइ शके तेमां कंइ आश्चर्य नथी. प्रभु प्रतिमाने देखीने प्रभुना गुणोनुं स्मरण सहेजे थाय छे. प्रभुनी प्रतिमाने प्रभुरूप मानीने सेवा-पूजा-भक्ति-आराधना करवाथी सेवक पोताना आत्मानी उन्नति करी शके छे. प्रतिमा पूजा दर्शन लाभ. श्री वीतराग देवनी प्रतिमाने प्रशस्तभावथी अवलोकनारा पुण्यबंधादि प्राप्त करे छे. वीतराग देवनी प्रतिमाने देखीने जे मनुष्यो द्वेषभाव धारण करे छे तेओ पापनो बंध करे छे. वीतरागदेवनी प्रतिमाने देखी जेओ वीतरागना ज्ञानादि गुणोनुं स्मरण करे छे तेओ संवर अने निर्जरा तत्त्वने सेवी शके छे. प्रभुनी प्रतिमामां प्रभुपणुं धारीने प्रभुना सर्व गुणोनुं स्मरण करवुं. प्रभुनी प्रतिमाने प्रभुना गुणो प्राप्त करवा माटे पूजवानी जरूर छे. प्रभुनी प्रतिमामां प्रभुनी स्थापना करीने भक्ति करवाथी समवसरणमां बेठेला प्रभुनी भक्ति जेटलुं ज अध्यवसायनी शुद्धिए फल प्राप्त थाय छे. प्रभुनी भक्तिनां अंगोनो निषेध करवानी जरूर नथी परन्तु प्रभुनी भक्तिना अंगोमां सुधारो करवानी जरूर छे. प्रभुना गुणो जाणीने जेओ प्रभुनी प्रतिमानी पूजा सेवा भक्ति करे छे तेओ दर्शननी शुद्धि करे छे. प्रभुना गुणोनुं प्रतिमा आदि निमित्त पाम्या विना स्मरण थतुं नथी माटे प्रभु प्रतिमानी उपयोगिता सिद्ध थाय छे. लोकोनां मनरंजन करवाने माटे वा पौद्गलिक सुखनी लालसाए जेओ प्रभुनी सेवा भक्ति पूजा करे छे तेओ पूजा भक्ति सेवानुं वास्तविक फल प्राप्त करी शकता नथी. प्रभुनी प्रतिमा प्रभु रूप छे एवो भाव धारण करी सेवक बनीने प्रभुना गुणोने For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR May-2017 सेववा-पूजवा-आराधवारूप द्रव्य अने भावथी भक्ति करतां खरेखर सेवकनो आत्मा ते प्रभुरूप थाय छे. प्रभुनी भक्ति करनाराओमां प्रभुना गुणो प्रतिदिन प्रगटता जाय अने कषायोनी मन्दता प्रतिदिन थती जाय तो समजवू के तेओनामां खरी भक्ति प्रगटवा पामी छे. गृहस्थोए प्रभुनी द्रव्य अने भावथी भक्ति करवी जोइए. प्रभुनी द्रव्य भक्तिमां भावनी अपेक्षाए अल्पहानि छे अने लाभ घणो छे. गृहस्थोए प्रतिदिन प्रभुनी पूजा करवी जोइए. साधुओ भावस्तवना अधिकारी छे. अक्षरो रूप मूर्तिना आलंबन वडे जेम ज्ञाननी यादी आवे छे तेम प्रभु प्रतिमाना अवलंबनथी साक्षात् प्रभुनु स्मरण थाय छे. रागीन चित्र देखवाथी जेम राग उत्पन्न थाय छे तेम वीतरागनी मूर्ति देखवाथी वीतराग गुण- स्मरण सेवन थाय छे. आखी दुनिया अनेक रीतिए मूर्तिपूजक छे एम विद्वानो कथे छे. (संपूर्ण) प्रभुजी० १ प्रभुदर्शन स्तवन (अवसर बेर बेर नहीं आवे-ए राग.) प्रभुजी तुम दर्शन सुखकारी, तुम दर्शनथी आनंद प्रगटे; जगजन मंगलकारी. तप जप किरिया संयम सर्वे, तुम दर्शनने माटे; दान क्रिया पण तुज अर्थे छे, मळतो निज घर वाटे अनुभव विण कथनी सहु फीकी, दर्शन अनुभव योगे; क्षायिक भावे शुद्ध स्वभावे, वर्ते निज गुण भोगे देश विदेशे घरमां वनमां, दर्शन नहीं पामीजे; दर्शन दीठे दूर न मुक्ति, निश्चियथी समजीजे चेतन दर्शन स्पर्शन योगे, आनंद अमृत मेवा; बुद्धिसागर साचो साहिब, कीजे भावे सेवा. प्रभुजी० २ प्रभुजी०३ प्रभुजी०४ प्रभुजी०५ For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Beyond Doubt (Continue...) Acharya Padmasagarsuri Compared to sense perception, super sense perception is more reliable. Those who have experienced the latter kind of perception are able to describe the existence of hell. Not everyone have seen lions and swans, but still all of us believe them to exist, because we know that somebody has already seen them in real life. Also one has not seen all the countries and oceans of the world, but still we believe that they are there, because we know about them. The same principle is applicable to believe in the existence of hell and hellish creatures. I have a direct perception of them, so I say that they exist.” We bow to the 8th Ganadhara, Shri Akampitaji, who became the Lord's disciple, along with his 350 students, after getting the doubt cleared. He too created the Dvadashanga based on the knowledge of the Tripadi, imparted by Lord Mahavira. CHAPTER 12 “अध पुण्ये सन्दिग्धं द्विजमचल भ्रातरं विबुधमुख्यम्। ऊचे विभुर्ययार्थ म्वे दार्थं किं न भावयसि?" The Lord asked Achalabhratha, the nineth great Brahmin Scholar who had come to the Samavasarana, “Why are you unable to understand the exact meaning of the Vedic tenet.” Achalabhratha had a doubt regarding the authenticity of Punya and also brought with him his family of 300 students. Since Lord Mahavira was an omniscient, He knew the doubt and the base for it. The Lord said, “In one particular tenet of the Vedas, it is said” "quayas HD G to You HUH" i.e. whatever has happened and whatever shall happen in this world is all Purusha'. You have interpreted this verse to mean that there is no Punya or any such thing. But at the same time in another context in the Vedas, it is said," "qui quela runt’| i.e. Righteousness leads to the accumulation of meritorious deeds (Punya). This verse propounds the existence of Punya tattva?. Isn't this your doubt and vedas the basis for it?” 1. Purush- Parabrahma, Supreme Soul 2. Tattva- Reality For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR May-2017 Achalabharatha said, “Oh Lord! Thou art an omniscient and knoweth the doubt over which I have been pondering since years. I think that as a person gradually frees himself from evil deeds, he begins to achieve happiness, and when he is freed from all sins he achieves eternal happiness. When it is enough to believe in the “Papa tattva” what is the need to believe or take into account the element of 'Punya’?” The Lord replied, “In the Vedic verse, the “Purusha' has been given utmost importance and is described to be immortal, but none of the other truths have been denied in the verse. Though Punya tattva has not been referred to in the tenet, it has also not been said that it does not exist at all. If it were not a reality, the latter sentence "que: queda HUTI would not have been written. Just as evil deeds result in sin, good deeds result in fortune and merit. The Atman is eternal but wanders in the world taking many forms which perish after some time. It experiences the fruit of its Karma which it has earned in the previous births. Whatever deeds a person performs in one's life, Layers in the form of Punya and Papa get accumulated in the soul. In the next birth, the soul remains the same, but the body is of a total new origin. The soul carries to the next birth the layers of accumulated Karma. When the meritorious deeds bear fruit, the soul experiences pleasure and when the evil deeds are ripened the person experiences pain and suffering. One has to experience the fruit of both Punya and Papa. The former is compared to a golden chain and the latter is compared to an iron shackle. Both keep the soul bound to the wheel of Samsara'. (Continue...) 1 Samsara-World क्षतिसुधार श्रुतसागर वर्ष-३ अंक-११ में मुखपृष्ठ पर जो ब्राह्मीलिपि के शिलालेख की प्रतिलिपि दी गई है वह क्षतिवशात् उपर का भाग नीचे इस तरह उल्टा छप गया है, अतः पाठकों से अनुरोध है कि इसे योग्य करके पढ़ें. इस क्षति के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भादमंत्रीरास गणि सुयशचंद्रविजयजी ‘मंत्री भाद' - आ नाम पूर्वे तमे क्यांय वांच्यु छे? तेमनां जीवननी घटना विषे क्यांयथी पण सांभळवा मळ्युं छे खरूं? कदाच तमारो जवाब 'ना' ज हशे अने अमारो पण 'ना' ज. अमारां माटे पण आ नाम तद्दन नवु ज छे. ज्यारे प्रस्तुत कृतिनी प्रत प्रथम वार जोवा मळी त्यारे अमने एम हतुं के आपणे त्यां पूर्वे जेम वस्तुपाल, तेजपाल, शांतनु जेवां मंत्रीओ थयां हतां तेमज भाद' पण कोई राजानां मंत्री हशे, अने ते मंत्रीए जिनालय आदिनां निर्माणमां के जीर्णोद्धारादिकमां पोतानी संपतिनो व्यय कर्यो हशे, तेथी कोई कविए ते मंत्रीनां सुकृतनी अनुमोदना करवा माटे प्रस्तुत कृतिनी रचना करी हशे. पण रासने वांचतां अमारी कल्पना साव निरर्थक ज ठरी. अहीं काव्यमां नथी कोई जिनालयादिनां जीर्णोद्धारदिकनी नोंध के नथी कोई संघादिकनां ओच्छवमहोच्छवनी नोंध. हवे तमने प्रश्न थशे तो पछी आ काव्यमा छे शु? चालो जोईए. आदीश्वर भगवान जे गिरिराज पर ९९ पूर्व वार आवी समवसर्या, ते शत्रुजयगिरिनो महिमा पोतानां ज्ञानबळे जाणी कोई देव प्रभुनी भक्ति करवा अने प्रभुभक्तोनी पीड हरवा गिरिराजनी पावन भूमि पर आवीने वस्यां. अहीं काव्यमां कविए ते देवनां एटले के मंत्री भादनां दैवी माहात्म्य पर प्रकाश पाथर्यो छे. जो के कविए देव- भाद मंत्री के 'भाद राय' आq नाम कया कारणथी प्रयोज्यु छे, ते विशे अथवा भाद देव' पूर्वभवमां कोई राज-मंत्री रूपे होय, तो ते वखतनी कोई घटना पर के शा कारणथी ते मंत्री देव बन्यां, ते बाबतनो कशो खूलासो काव्यमां को नथी. पण एटलुं चोक्कस छे के कविनां जणाववा मुजब ‘मंत्री भाद' ओसवाळ ज्ञातिनां छे तथा आदीश्वर दादानां परम भक्त छे. कृतिमां भाद देवनां माहात्म्यने वर्णवतां कवि कहे छे के कलिकालमा ज्यारे मंत्र, तंत्र, दिव्य औषधिओ निष्फळ जाय छे, त्यारे फक्त एक भाद देव ज कल्पवृक्ष समान छे. तेमने संभारतां शाकिनी, डाकिनी, भूत, प्रेत दूर चाल्यां जाय छे, रोगोनो नाश थाय छे, संतान सुखनी प्राप्ति थाय छे, सिकोतरी(देवी)नां दोषो, चारित्रनां तेमज आचार्यपद प्राप्तिनां अंतरायो टळी जाय छे. उपरोक्त वातनी पुष्टि माटे कविए काव्यमां मंत्री भादनां केटलाक चमत्कारोनी वात पण आलेखी छे. जेमके भाद देवनी सहायथी सूरिमंत्र आराधक एक आचार्य For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR May-2017 भगवंतने थयेल सायण(शाकिनी)नो उपद्रव नाश पाम्यो, तो अन्य एक महंतनो दुःसाध्य एवो रोग पण ते देवनां वचनथी दूर थयो. कोई स्त्रीने अवतरतां मृत बाळको आ ज देवनी पूजाथी जीवंत थयां, तो वंध्या स्त्रीने भाद देवनां आशीषथी पुत्र उत्पन्न थयां. कोईकनां वळी समुद्रमां तोफानथी डोलतां वहाणो भाद देवनां स्मरणथी खेमकुशल पाछां फर्यां, तो कोई संघनां मिथ्यात्वी देव द्वारा संताडायेली राजविहार प्रासादनी बारशाखो आ ज देवनां कहेवाथी, अंबिकादेवीनां बलिविधान पूर्वक नवां पाषाणनी बनावी पाछी मेळवी. आवां तो घणां प्रसंगो हशे, पण वर्णववानी मर्यादा होई कविए ढूंकमां ज ते वर्णवी काव्य- समापन कर्यु छे. कविए काव्यमां क्यांय पण पोतानुं के पोतानी गुरु परंपरानुं वर्णन कर्यु नथी, तेथी काव्य रचनानो, कविनो के भाद देवनी हयातीनो कोई चोक्कस समय जाणी शकातो नथी, पण प्रतनी लेखन पद्धति, अक्षर मरोडनां आधारे तेमज प्रति आलेखनमां लेखके सोमजयसूरिने करेलां नमस्कारने आधारे अंदाजे कृति १५मी सदीनां उत्तरार्द्धनी होय तेम लागे छे. वळी कृतिनी भाषा पण कृतिने १६मी सदी आसपासनी होय तेवं मानवां मनने प्रेरे छे. हवे एक प्रश्न फक्त भाद देवनां समयनो छे ते अंगे हवे थोडुं विचारीए. आगळ आपणे विचार्यु ते मुजब जो कृतिनी रचना सोमजयसूरिनां नजीकनां काळमां एटले के १५मी सदीनां उत्तरार्द्धमां थई होय, तो भाद देवनो प्रभाव १६मी सदीमां शनुजयनी आसपासनां प्रदेशमां फेलायेलो होय तेम मानवू पडे. अहीं कविए 'वात प्रकासीअकेतली माहालंतडे, जे दीठी प्रत्यक्ष ए पदथी पण पोते देवनी हयाती अनुभव्यानो स्पष्ट खुलासो को ज छे. वळी आगइ जे हुई अछइ ए माहानंतडे, तेहु छइ भाख असंख' ए पदथी भाद देवनी घणी घटनाओ पोतानी साक्षी पूर्वे थई होवार्नु बताडवां द्वारा कविए उपलक्षणथी भाद देवनां पूर्व अस्तित्वनो आडकतरो खुलासो आप्यो छे. एटले के १६मी सदीनां पूर्वार्द्धमां पण भाद देवनुं अस्तित्व हशे ज. छतां कोई व्यवस्थित पुरावो मळे तो भाद देव विशे वधुं स्पष्टता थाय. प्रान्ते कृतिनी हस्तप्रत संपादनार्थे आपवा बदल श्री हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर (पाटण)नां ट्रस्टी श्री यतिनभाई शाहने खूब खूब आभार. प्राप्त प्रतमां कोई-कोई जग्याए गाथांकमां भिन्नता जोवा मळे छे, माटे प्रतमां आपेल गाथांकोने तेमनां तेम राखी, बाजुमां सळंग गाथांक आपेल छे. For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 10 भादमंत्री रास १. युगल पर, २. जडीबुट्टी, ॥८०॥॥ श्रीसोमजयसूरि गुरुभ्यो नमः ।। पणमिअ प्रथम जिणेसरपाय, राय सेवक जिन तस तणउ ए; गायसो रंगिहिं नव नव भंगिहिं, भाद मंत्री सहूं करी जगी ॥१॥ सिरि सिद्ध-सेहर असम भूमी (मि)धर, सिहिर-शृंगारण-रयण-कुंभ, नाभि-नरेसर-नंदन नायक, वंछित - व -दायक गलिअ-दंभ; र(रि)सह जिणेसर भुवण-दिणेसर, पणय-सुरेसर जगगुरु ए, भाद भूमी(मि)पति अति भगति सेवति, जास पयकमलि जुअलि' वरू ए॥२॥ विमल-भूधर-शिरि रायणि तरुन्तलि, समोसरिया नवाणूंअ पूरव वार; सुरनर किंनर असुर योगीश्वर, भणइ एह तीरथ त्रैलोक्य- सार ॥३॥ निरमल नाणीअ महिमा जाणीअ, आदर आणीअ अति धणु ए; तीणइ ठामि वास करइ नामि, आवद हरइ वंछित श(स) वि करइ भादराय ॥४॥ आहे भादराय महिमा अपार, हूं पार न जाणूं; ज्ञान नही मुखि एक जीभ, कुण परि वखाणूं ॥५॥ एक निरंतर देवभक्ति, गुरूभगतिइ माचइ; प्रीति धरइ निरलोभसुं, अनइ साचइ राचइ ॥६॥ कालबलइ नवि फलइं मंत्र, महिमा नवि गोली, मंत्र तंत्र देवता-वयण, नवि जडी' अनमूली; इक बलवत्तर नाभिराय-नंदन कलपतर, सेव-परायण भादराय, पूरु आणंदि ॥७॥ तास तणा अवदात वात केतली वखाणं, सांभलतां अंगि करइ रोम अंकूर अमाण(णूं); दर्शन सुदृढ धरइ प्रेम मिथ्यात व (वि) गरइ, सायण जयनि भूअ पेअ' सवि नीअ' पगि पाडइ ॥८॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. कल्पवृक्ष. ४. शाकिनी,डाकिनी, भूत, प्रेत आदि For Private and Personal Use Only ५. निज, पोतानुं. मे २०१७ 11811 ॥२॥ ॥३॥ 11811 ॥५॥ ॥६॥ 11611 11211 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 ॥९॥ SHRUTSAGAR May-2017 सूरिमंत्रना धरण धीर विद्याबलि बलिआ, कर्म वसेषि कुटिल कर्म सायण वसि पडिया; ऊषध मंत्र जडी करी ते घणुं विगूता', पुण गुण-लाभ व(वि)हीण दीण कल-कसमल' खूता ॥८॥ कालंतरि तसु पुजा-भावि हऊँ बुद्ध-पचासो', भाद भूप जई पूछीउ ए जस सरव-वएसो; एक चित्त सद्दहण करी सूरिराय पधारइ, भादभूवनी वयण लही नीअ देह साधारइ ॥९॥ ॥१०॥ अनुदिण ते गुरूराय सार, उवयार पमाण, भाद भूपना वयण अतिहिं आणइ बहुमान; इणि कुलिजगि इस्यु ज्ञानवंत नवि दीसइ कोई, तिणि कारणि मई सहीअ सयल महिमंडलि जोइ॥१०॥ ॥११॥ एक दुरंत महंत रोग, आपद वसि पडीआ, कर्म-विशेषि अनाथ दीण जिण बहू(हु)परि नहीआ; कालंतरि सिरि-भादराय तीहि श्रीमुखि मलीया, तास वयण सद्दहण करी सुख-संव(प)दि मलिआ॥११॥ नारि अनेकि विअदुअकम्म-दुग्मि झुरंति, पुत्तरयण पसवंति तेअपुण घर न रहंति; पुत्र-विरह-दुह-दाव-ताव-संताविअ-देह, जाख-शेष१३-क्षेत्रपाल-पुम(पमु)ह सुर पूजइ एह; दीण वचन बु(ब)हु पिर चवइ ए वली वली सिरि नामइ, पुत्र जीवत आशा करी ए मूरिख पडी भामइ ।।१२।। ॥१३॥ जाग१६ भोग वद्धामणा ए मानणा७ अन्ने(ने)क, पुत्र-आरति भरि नडीअ नारि करइ रही अववेक; १. दुःखी थयां, ७. दररोज, १३. यक्ष-शेषनाग, २. वगरना, ८. उपचार, १४. बोलवं, ३. कलिकाल रूपी कचरामां. ९. कलियुगमां, १५. भ्रममां, १०. खराब परिणामवाळां, १६. यक्ष, ४. थयो, ११. पद आ प्रमाणे हशे ‘एक १७. मानतां, ५. प्रकाश, महंत दुरंत रोग', १८. पीडाथी. ६. श्रद्धा, १२. तेने, ॥१२॥ For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12 मे-२०१७ ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ श्रुतसागर सिकति-विहूणा पुत्र जीवत देइ न सकइ एक, मंत्र-वयण जीवता हऊआ तिहिं नंदन छेक ॥१३॥ करूणाभर कंसार भाद नृप अतिसि विचार, नारि तणा हरा वंझ दोस देह पुत्र उदार; गुप्त वात केतली एक किहिता बंधि' नावइ, ज्ञान प्रमाणइ भाद मंत्र ते सहूअ जणावइ ॥१४॥ एक नर उत्तम ऋण संबंधि कन्याधन पूरां, पुत्र-विहूणा दिवस राति-भर भरीआ चिंता; भादराय तणुं एक चित्त जे ध्यान करंति, तास पसाइं तेह भवनि सुर-रंगि रमंति ॥१५॥ राजभवणि मांडवीअ तणी संकट विसमाई', भादरायना भगति प्रति नवि आवइ भाई; घणा सजननी घणीअ वार टाली वसमी वात, तिण कारणि सुरराय तणु जस अति अवदात ॥१६॥ पसुनवचन वेरिआ असुर सुर राय-विहार, बारसाख काढतां जाणी सुर ज्ञानभंडार; तेह वात सचिवा भणी सावय रूवि आवइं, नयण गयां देखडीअ भावि संताव२ जणावइ ।।१५।। ते असमंजस जखा अतीत तव संघ.... तिणि काजि अनेक उपल१३ जोया अणावी; मान प्रमाण वहीण४ तत्थ ते काज न आवी, तउ श्रावक जिन पूज करी सिरि भाद बोलावी ॥१६॥ जनभगति श्रीसंघ काजि करिवा सावधान, भाद भणइ अंबिका प्रति करु बल-विधान;१५ १. थयां, ६. अडचण, २. घj, ७. कर वसुल करनार राजकारभारी, ३. वांजीयापणुं. ८.शमावे, ४. केटलीक. ९. दुःखनी, ५. कहेतां, १०. चुगलीखोरनां वचनोथी, ॥१७|| ॥१८॥ ॥१९॥ ११.रूपे, १२. दुःख, संताप, १३. पाषाण, १४. विहीन, १५. बळी-बाकुळां. For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२५॥ SHRUTSAGAR May-2017 कालयोगि पाषाण ठाम देखाडी जाम, बारसाख नीपनीअ नवी रहावीय जस नाम ॥१७।। ॥२०॥ मा(म)हि सुम(समु)दुमाहि वाहणा ए नरेसूआ, वाय वसेण जेलंति; भाद मंत्रीसर समरण ए नरेसूआ, कुसल-खेमि आवंति ॥१८॥ चारित्रना अंतराईआ ए नरेसूआ, अनेक तणा टालंति; भाद वयण सुपसाइ लइ ए नरेसूआ, ते न(नि)श्चल पामंति ॥१९॥ पुंडरीकाचल-सेवकू ए नरेसूआ, तणुंअजे धा(ध्यां)न करंति; मन चीतवा' मनोरथू ए नरेसूआ, तेहना स्तवि सीझंति ॥२०॥ चारित्रीया महासती तणा ए नरेसूआ, सिद्धि सीकोतरि(री) दोष; टाली ते तु सदा करे ए नरेसूआ, निरमल चारित्र पोष ।।२१।। ॥२४॥ आचारयपद-संपदा ए नरेसूआ, अंतराय भादराय; वयण टाला अनेकि तणा ए नरेसूआ, चिर जयु ते गुरुराया।।२२॥ लोक-वात महिमा सुणी ए नरेसूआ, एक लागा तसु झाणि; आस पूगी तेह नर तणी ए नरेसूआ, इहि मनि ,(भ्रं)ति म आणि ॥२३॥ ॥२६।। साचा ज्ञान तणइं बलि ए नरेसूआ, देखीडई प्रत्तक्ष;" अतिसय कुतगकारीया ए नरेसूआ, आदीसरनु सिक्ष ॥२४॥ प्रत्यय पुहुते जन घणा ए नरेसूआ, मानइ तस वयणा ए; फासूय पाणी देव पूजा ए नरेसूआ, आदरइ पडिकमणाइ ॥२४॥ वात प्रकासीअ केतली माहालंतडे, जे दीठी प्रत्यक्ष; आगइ जे हुई अछइ ए माहालंतडे, तेहु छइ लाख असंख ॥२५॥ ॥२९॥ सिरिसेत्र(g)जिगिरिमंडणउ ए माहालंतडे, ते श्रीमरुदेव(वि) मल्हार; समरिउ सवि संकट हरइ ए माहालंतडे, तास सेवक स(सु)विचार ।।२६।। ॥३०॥ वंछितपूरण-सुरतरु ए माहालंतडे, सेवक-वच्छलकार; कारण विण ते बंधवू ए माहालंतडे, ओसवंशसणगार ॥२७॥ संतानसुख-संपद तणा ए माहानंतडे, दायक नाभिमल्हार; सेवक गुण संभारता ए माहालंतडे, ऊलट अंगि अपार ॥२८॥ ॥३२।। १. वशथी. ३. एक देवी. ५. प्रत्यक्ष. ६. शिष्य. २. चिंतव्यां. ७.खातरी थतां. ॥२७॥ ॥२८॥ ॥३१॥ ४. ध्यानमां. For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 श्रुतसागर मे-२०१७ संकेत साचा तस तणा ए माहालंतडे, जे दीठानी द्रष्टि; तेअने धिन धी हऊया ए माहालंतडे, होसिइ निइणि सृष्टि ॥२९॥ ॥३३॥ सयल देवातन परीहरी ए माहालंतडे, आराहउ श्रीभाद; तुम्ह जिम वंछित पूरवइ ए माहालंतडे, अनइ समरउ दइ साद ॥३०॥ ॥३४।। भादराय अवदात तणी ए माहालंतडे, वात सुणी नर-नारि; चींतवइ अभिनवउ कुतिगू ए माहालंतडे, दीसण इणि संसारि॥३०॥ ॥३५॥ एक चित्त जे नरवरु ए माहालंतडे, समरइ श्रीभादराय; रोग दोष सिवि तेहना ए माहालंतडे, निश्चइ टालइं अंतराय ॥३१॥ ॥३६॥ भण(इ)गुणइ जे नि(न)रवरु ए माहालंतडे, भाज मंत्रीसर रास; ऋद्धि वृद्धि कल्याण सहित ए माहालंतडे, पूरइं तीह सवि आस।।३२॥ ॥३७।। ॥ इति श्रीभादमन्त्रीश्वररासः समाप्तः ॥ प्राचीन साहित्य संशोधकों से अनुरोध श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं या किसी पूर्वप्रकाशित कृति का संशोधनपूर्वक पुनः प्रकाशन कर रहे हैं अथवा महत्त्वपूर्ण कृति का अनुवाद या नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, इसे हम श्रुतसागर के माध्यम से सभी विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादन कार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? यदि अन्य कोई विद्वान समान कृति पर कार्य कर रहे हों तो वे वैसा न कर अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों का सम्पादन कर सकेंगे. निवेदक- सम्पादक (श्रुतसागर) १. देवगण. For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंकपल्लवीलिपिबद्ध पार्श्वजिन स्तवन संजयकुमार झा ॥०॥६४२।७४।८४७।८३।८२४।६४२।७४।६४।५३।५३१।३३१।५३१।५४२१७२१।६१६ |३३९।८४७।८३१८२४।६१६।३३९।८४७।६१२।८३।३३३।४५७।८३।७३९।३३४।१२२। ८३।८३७।४५।८४७।८३।८२४।१२२।८३।८३७।४५।७२२।७१।६५।७३२।७२।७४२। ६५२।८४७।८३।८२४।७४२१६५२।८४७।२१६८२८८४११।८३।७३९।३३४॥१॥६१। ७२।६४३।३३४।८४७।८३।८२४।६१।७२।६४३।३३४।५१।४५८।८३३।६१।८३२।७१ ।८३।६५।८४३१५१।८४७।८३।८२४।८३।६५।८४३।५१।८३३।८२।१२२७४४।६५३। ७३८।३३४।५३३१५५।५३३।५५।८४७।८३।८२४।५३३।५५/५३३।५५/५३९।७३।५३१ 1५२२२७१।८३११।२१।४१।८४७।८३।८२४।८३११।२११४१।८३।२३।७३२।८४४।४१ ७३८।३३४॥२॥२१७।८३।७३२।८४७।८३।८२४।२१७१८३१७३२१५५८२४।५५।८३२ ।७२।३१११।५३।५५।८४७।८३।८२४।३११११५३।५५।२१६।२१।६५।२४।८३३।२४। ४५९।३३४।३३३।५५।११११।२३८।८४७।८३८२४।११११।२३८।६१६।३३२१७२।३१ ८1८३२।७।६१२१६५८१८४७।८३।८२४।६१२१६५८१८४७।६१२७५१७।६४।७४।५ १४५९।३३४॥३॥८३३१११५३।७२।८४७।८३।८२४।८३११।५३।७२।७२६।५१८३९। ८४२१७१।६१७।८।५१।८४७।८३।८२४। पेखत ६१।७२।६५२।४५१११५३।७३९।३३४ ।८३९।८४८।८४७।८३।८२४।८३९।८४८।८४७।श्री३३३।५५।७२२।७१।६५३। ८२।३३३ ।४५।८४७१८३१८२४।६५३।८२।३३३।६५।६१६।५५३।६५।३११११५३।७३९।३३४॥४ ॥३३।५५।६५।८४७।८३।८२४।३३।५५।६म५।८३।६२।७३।५२।७१९।६५६।३४।८३।६२ ७३।८४७।८३१६२४।८३।६२।७३।६२१७३४।६५६|३४|१२२।८३।७३४।३३४।६४/७४। ६४।७य । ८४७।८३।८२४।६४।७४।६४।७१।५३३।२२।२३२।६५३।३४।६४७।४च्या ।हे८३। ८२४।६४७।४च्या ।हेश्री३३३।५५।३२७।३२।७३४।३३४॥५॥श्री५१।६१।२३।३२।८४७।८३ ।८२४।५१।६।२३।३२१२१७१७२९।१२४।८३।श्री७४२।३३।७१।८४७।८३।८२४।७४३।३३ ७१।६१।७२।६४।८३६।७२४।८३।७२६।३३४।६१।७२।५११६१९।८४७।८३।८२४।६१।७२ 1५११६१९।८४७।२१९।४३३।७४।७२४।८३।३३३।८४११२।७३।२३३।८४७।८३।८२४।३३ ३.८४११२।७३।२३३।३३।२३।७२।७४३।८श।८१४।८४/७२६।३३४॥६॥८३।२१।७३।८४७ 1८३1८२४।८३।२१।७३।७४३।६३६।५४।८३३।४५।२३२७२ श्री६५।८४३।६५२।८४७।८३ ।८२४।६५।०४।६५२।७४।३३।७१२३५।६१।७२।५१।६१८।३३४।६५५।३४।१२२।७४२। ८४७।८३।८२४।१२२।७४२।८४७।२३।६५।४५।५५४।७४२७२।७३२।७३।८४७।८३।८२४। ७३२।७३।७४४।३३।७१।६५५।५५३।ई।६५।३३११।६१८।३३४॥७॥ इति श्रीपार्श्वजिनस्तवन संपूरणं । ८३११।७४।५१।८३।५१।७२।८९। अंकपल्लीकृतं स्तवनं । लिखावतं पत्रांतरे विलोक्य। विद्वान् स पुमान् । यादृशं तादृशं भवेत् ॥१॥ शुभं भवतु दिने२। श्रीभव० For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 16 श्रुतसागर मे-२०१७ संयोगवशात् एक प्रत की प्रतिलेखन पुष्पिका अंकमय होने से स्पष्टता हेतु पूज्य आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी म.सा. को बताने का हुआ। पूज्यश्री ने देखते ही अपने साहजिक भाव में बताया कि वर्णमाला के वर्ग, वर्ण व मात्रा इन तीनों के अंकसंकेत से वर्णमाला के अक्षरों का स्पष्टीकरण हो सकता है। उदाहरण के तौर पर गणना करके उन्होंने प्रतिलेखन पुष्पिका भी स्पष्ट कर दी। यह स्पष्ट होते ही हस्तप्रत सूचीकरण से जुड़े सभी संपादक मित्रों को अपार हर्ष हुआ। यह सौभाग्य की बात है कि गुरु की गुरुचावी से इस पहेली का ताला खुल गया। पूज्यश्री के ज्ञानवैभव की भूरि-भूरि अनुमोदना। इनके इस उपकार के प्रति हम संपादकगण चिरऋणी रहेंगे। कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची भाग-११ के लिये २०१२ ई. में जब प्रत संपादन का काम कर रहा था, उस समय यही प्रत सामने आयी. भाषा अंकमय होने तथा अंकपल्लवी लिपि के संकेताक्षरों का अनुभव न होने से मात्र पार्श्वजिन स्तवन-अंकपल्लीमय प्रत एवं कृतिनाम का उल्लेख कर सका। क्योंकि प्रतिलेखक ने अन्त में “इति श्री पार्श्वजिनस्तवनं संपूरणं" ऐसा लिखा था. प्रत एवं कृति संपूर्ण होते हुए भी पूर्ण व प्रामाणिक सूचना का उल्लेख नहीं कर पाया। इसका मलाल आज तक दिलो-दिमाग में गूंज रहा था। उपर्युक्त प्रतिलेखन पुष्पिका स्पष्टीकरण के बाद तुरंत इस कृति का स्मरण होने से उसका प्रकाशन करने हेतु सुसज्ज हुआ, जिसका परिणाम आज पाठक के करकमलों में उपस्थित है। आशा है यह अंकपल्लवीलिपिमय पार्श्वजिन स्तवन वाचक वर्ग को रोचक एवं बोधप्रद सिद्ध होगा। प्रत परिचय ___ यह प्रत स्थानीय ज्ञानभंडार श्रीदेवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार में प्रत क्रमांक-४६७१४ पर स्थित है। पत्रांक मात्र-१ है। पत्र के अ एवं आ भाग में १४-१४ पंक्तियाँ हैं। प्रत की किनारी सामान्य ट्टी है। पानी के कारण पत्र आंशिक विवर्ण हो गया है। फिर भी भौतिक स्थिति अच्छी है। सभी अंक सुवाच्य है। मंगलदर्शक चिह्न से प्रत का प्रारंभ होता है एवं अन्त में देवनागरी लिपिमय “इति श्रीपार्श्वजिनस्तवन संपूरणं” ऐसा उल्लेख मिलता है। प्रथम दृष्ट्या तो इसी से स्पष्ट हो पाता है कि इस प्रत में उक्त कृति है। इसके बाद प्रतिलेखन संवत् हेतु “८३११।७४।५१।८३।५१।७२८९” इस तरह से लिखा गया है। जिसका स्पष्ट संवत् इस प्रकार है-८३११=सं, ७४=व, ५१=त, ८३=स, ५१=त, ७२=र+८९ अर्थात् संवत् सतर=१७+८९=१७८९ ऐसा स्पष्ट होता है। इसके अतिरिक्त प्रतिलेखक ने अपने नाम, स्थलादि का कोई उल्लेख नहीं किया है। सबके अंत में अंकपल्लीकृतं स्तवनं । लिखावतं पत्रांतरे विलोक्य। विद्वान् स पुमान्। यादृशं तादृशं भवेत् ॥ १॥ शुभं भवतु दिने२। श्रीभव० लिखकर प्रत संपूर्ण किया गया है। यहाँ “पत्रांतरे विलोक्य” से यह स्पष्ट होता है कि यह पूर्व में किसी के द्वारा लिखी गई अंकपल्लवीलिपिबद्ध For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 17 SHRUTSAGAR May-2017 प्रति के आधार से इसकी प्रतिलिपि की गई है। अंकपल्लवीलिपि की लेखन शैली में यहाँ कई विशेषताएँ देखने को मिलती हैं। गाथा-७ अंतर्गत अंक-४ में ह्रस्व इकार (४ि), अन्य गाथा में भी अंक के साथ ह्रस्व उकार (३), कहीं-कहीं नाम के पूर्व में श्री शब्द दिया हुआ है वह प्रक्षिप्त या अधिक पाठ प्रतीत होता है. क्वचित् पाठ के मध्य हे, पेखत आदि शब्द देवनागरी में ही लिखे हुए मिलते हैं। लिपिकार ने प्रत्येक ख की जगह ष का ही उपयोग किया है। जैसे कि सखी में उपयुक्त शब्द ८२४ षी(खी)। इसे यथावत् लिप्यंतर करके सही शब्द कोष्ठक के अन्दर (खी) इस तरह दर्शाया गया है। किसी विद्वान द्वारा कहीं-कहीं सुधार भी किया गया है। इसे पढने हेतु वर्णमाला का वर्ग, वर्ण व मात्रा इन तीनों के योग्य संयोजन से पढा जाता है। इस लिपि में संयुक्ताक्षर का अभाव पाया गया है. यथा- प्रभ की जगह परभ, प्रभु की जगह परभि(भु) आदि. संभव है कि देशी भाषा होने के कारण हलन्त की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई हो. संस्कृत व प्राकृत भाषा के लिये अंकपल्लवीलिपि में लिखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा. ऐसी लिपि देखने में अब तक नहीं आई है. प्रस्तुत लिपि को पढने में प्रथम वर्ग, द्वितीय वर्ण एवं तृतीय मात्रा इस तरह ज्यादातर ३ अंकों का समूह बनेगा, क्वचित् अनुस्वार के लिये ११ व विसर्ग के लिये १२ इस तरह अक्षर के साथ जोड़ा जाता है, तब अक्षर हेतु ४ भागों में विभक्त ५ अंकों का भी हो जाता है. तात्पर्य है कि शब्द संयोजन में जैसा आवश्यक हो, उसी प्रकार अंकसंयोजन करें. जैसे पहली गाथा के प्रथम पाद में उल्लिखित-भाव हे सखी भाव में भा अक्षर के लिये आठ वर्गों में छ?(६) पवर्ग का चौथा (४) वर्ण यानि कि भ एवं आकार की मात्रा के लिये मात्रावर्ग की दूसरी मात्रा का अंक लिखा हुआ है. इस प्रकार भा का अंक ६४२ हुआ. इसी क्रम में व का वर्ग-७वां एवं उसका वर्ण-४था ७४। इस प्रकार भा के लिये ६४२ एवं व के लिये ७४। दिया गया है. उल्लेखनीय है कि अकारयुक्त अक्षर के लिये यहाँ पर दो प्रकार से प्रयोग पाया गया है. उदाहरण के तौर पर प्रथम गाथा में द अक्षर के लिये ५३१। इस तरह से १अंक के प्रयोग के साथ मिलता है जबकि व अक्षर के लिये ७४। इस तरह से तृतीय स्थान पर १ अंक के बिना लिखा हुआ मिलता है. अक्षर को अलग-अलग पढने के लिये अंकसमूह के बाद विभाजक संकेत हेतु दंड (1) का उपयोग किया जाता है. पाठकों को सरलता से पढने के लिये आठ वर्ग, वर्ण व मात्रा सहित लेख के अंत मे तालिका दी गयी है. कृति व विद्वान परिचय __मारुगूर्जर भाषाबद्ध तेवीसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का यह सुंदर स्तवन है। गाथा-५ के अंत में “जिन छेछलीजी” उल्लेख से स्तवन की एक विशेषता यह भी सिद्ध होती है कि पार्श्वनाथ के १०८ नामों में से एक छेछली(सेसली)पार्श्वनाथ का यह स्तवन है. सेसली पार्श्वनाथ का यह तीर्थ राजस्थान प्रांत में जिला-पाली, प्रखंड-बाली के सेसली गाँव में है. बाली के नजदीक नारलाई गाँव से प्रतिमाजी लाकर संवत् ११८७ में आचार्य आनंदसूरि के हाथों प्रतिमाजी की स्थापना की गई. श्रेष्ठि श्री मांडण संघवी ने स्वद्रव्य का सद्व्यय करके For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 श्रुतसागर मे-२०१७ शिखरबद्ध जिनालय का निर्माण कराया था. ___यह स्तवन भाववाही, रोचक व भक्ति से ओत-प्रोत है। इसमें कुल ७ गाथाएँ हैं। १ से ६ गाथा में भगवान की महिमा का गुणगान किया गया है एवं ७वीं गाथा में कर्ता का परिचय गुंफित है। कर्ता तपागच्छाधिराज आचार्य विजयप्रभसूरि के गच्छाधिपति काल में पूज्य महिमाविजयजी के शिष्य लालविजय है। प्रशस्ति में रचना स्थल या संवत् का उल्लेख नहीं है, किन्तु लेखन संवत् १७८९ होने से तथा प्रस्तुत प्रति किसी अन्य प्रति के आधार से लिखवायी जाने का उल्लेख होने से कृति का रचना काल करीब ५० वर्ष से पूर्व का होना चाहिये। जैन परम्परानो इतिहास भाग-४ के अनुसार तपागच्छाधिपति विजयप्रभसूरि की शिष्यपरम्परा में भाणविजय, लावण्यविजय, महिमाविजय व नित्य(नीति)विजय का क्रमशः उल्लेख है. अतः लालविजयजी नित्यविजय के गुरुभाई हुए. यहाँ नित्यविजयजी द्वारा वि.सं. १७४५ में नवस्मरण पर टबा रचने का उल्लेख किया गया है. अतः कर्ता नित्यविजयजी के समकालीन होने में संशय नहीं है. अतः रचना व कर्ता का समय वि.सं.१७वीं से १८वीं के मध्य अनुमानतः किया जा सकता है। __ लघुकाय यह कृति संभवतः अप्रकाशित है। इसी भंडार में इसी कर्ता के द्वारा रचित मौनएकादशीपर्व स्तवन भी है, जो मात्र ४ गाथाओं में हैं। अंकपल्लवीलिपि का देवनागरी में लिप्यंतर का यह प्रथम प्रयास है। क्षतियाँ संभवित हैं, अतः सुधार करते हुए पढ़ें तथा इस संदर्भ में हमारा ध्यान आकृष्ट करें। अंकपल्लवीलिपि में लिखे होने से अर्थसंगति की दृष्टि से कुछेक स्थलों पर सुधार किया गया है तथा अपेक्षित योग्य शब्द व अंक कोष्ठक के मध्य में दिया गया है। ध्यातव्य है कि ह्रस्व उकारवाले शब्द कई जगह ह्रस्व इकार के रूप में पाये गये हैं. जैसे किपरभि-परभु, मिख-मुख, सिष-सुख, सिंदर-सुंदर आदि इस तरह मूलपाठ को यथावत् रखकर उसके साथ शुद्ध पाठ को कौंस में बताया गया है. अंकपल्लवीलिपिदर्शक वर्णमाला कोष्ठक | वर्ग | १ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | | अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ए | ऐ | ओ | औ | अं ख | प | फ | ब | भ | म | ८ | श | ष | स | ह मात्रा | 0 | | | | For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHRUTSAGAR Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra । जो । है । स पीरखी) । पृ । जो है । या । स | जि । णे | म | लो | जी।। For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन-अंकपल्लवीलिपिबद्ध भा | व | हे । स पी(खी)| भा | व भ । ग | द । ज द । धा । | ६४२। । ७४। | ८४७। । ८३। । ८२४। | ६४२। । ७४। । ६४। | ५३। । ५३१। | ३३१। । ५३१। | ५४२। । ७२१। ॥॥भाव हे सखी भाव भगद जद धार, पू । जो | हे | स | षी(खी)| पू । जो | हे | पा | स | जि | णे । स | लो | जी। ६१६। | ३३९। । ८४७। | ८३। | ८२४। | ६१६। | ३३९। | ८४७। । ६१२। । ८३। | ३३३। | ४५७। | ८३। | ७३९। | ३३४।। पूजो हे सखी पूजो हे पास जिणेसलो जी। आ | स से । ण । हे । स पी(खी) आ | स | से ण | रा य । म | ला | र | १२२।। ८३।। ८३७। ४५। ८४७।। ८३। | ८२४। | १२२। | ८३।। ८३७। | ४५। | ७२२। | ७१। | ६५। | ७३२ | ७२। । आससेण हे सखी आससेण राय मलार, | वा | मा | हे । स । षी(खी) | वा | मा | हे | कू | (खै)। हं । स | लो | जी | ॥१॥ ७४२।। ६५२।। ८४७।। ८३। । ८२४। । ७४२।। ६५२। । ८४७। | २१६।। ८२८। । ८४११।। ८३। | ७३९। | ३३४ | ॥१॥ | वामा हे सखी वामा हे कूखै हंसलो जी ॥१॥ | प | र | भि(भु) | जी | हे । स | षी(खी)| प | र | भि(भु) | जी | त | णै | सि(सु) | प | सा | य | ६१। ७२। ६४३(५)। ३३४। ८४७। ८३॥ ८२४।। ६१। ७२। ६४३(५)। ३३४। ५१॥ ४५८। ८३३(५)। ६१। ८३२। ७१। परभि(भु)जी हे सखी परभि(भु)जी तणै सि(सु)पसाय, www.kobatirth.org May-2017 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतसागर Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra For Private and Personal Use Only स | म(मि)| हि | त | हे | स | षी(खी) | स | म(मि) | हि | त | सि(सु) | ष(ख) | आ | वी | मि | लै | जी। | | દૂધ(રૂ) | ૮૪રા, પશ ળ | | દર | | દારૂ)| ૮૪રૂા, | રા | શરાજજા, ઘણા રૂડા | રરકા सम(मि)हित हे सखी सम(मि)हित सि(सु)ख आवी मिलै जी। दि । न । दि । न । हे . स पी(खी)| दि | न | दि । न । दो | ल द | था | य | ५३३। ५५। ५३३।। ५५|| ८४७। ८३। ८२४। ५३३।। ५५। ५३३। ५५॥ | ५३९। ७३। ५३१। ५२२। ७१।। दिन-दिन हे सखी दिन-दिन दोलद थाय, सं | क | ट | हे | स | षी(खी) सं | क | ट | स | ग | ला | ही | ट | ली | जी | ॥२॥ | | ८३११|| २१। ४१। ८४७। | ८३। | ८२४। | ८३११। २१। ४१। | ८३। | २३। ७३२।८४४। | ४१। ७३८। ३३४ | ॥२॥ संकट हे सखी संकट सगला ही टली जी ॥२॥ के | स | ला | हे । स | षी(खी)। के | स | ला | नै | घ । न । सा | र, २१७।। ८३। | ७३२। | ८४७। । ८३। | ८२४। | २१७।। ८३। | ७३२।। ५५८। । २४। । ५५। । ८३२। । ७२, केसला हे सखी केसला नै घनसार, चं | द | न | हे । स पी(खी)| चं । द | न | कू | क | म | घ | सि | घ | णो | जी। |३१११। | ५३। | ५५॥ | ८४७। ८३। | ८२४। | ३१११। | ५३।। ५५। | २१६। | २१। ६५। | २४। | ८३३। २४। | ४५९। | ३३४। | चंदन हे सखी चंदन कूकम घसि घणो जी। www.kobatirth.org मे-२०१७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private and Personal Use Only जि न अं गै स ३३३| ५५ ११११|| २३८| | ८४७| ८३ । जिन अंगै हे सखी (जिन) अंगै पूजा रचै सार, पा मै हे स षी (खी) पा ६१२। ६५८ । ८४७ । ८३ । ८२४ । ६१२। पामै हे सखी पामै हे पार ते भवतणो जी ॥३॥ सि(सु.) स ८३३ (५) ११। ५३ । ७२ । ८४७ । ८३ । सिं (सुं) दर हे सखी सुंदर रू ( प ) त सोहाय, पे ष (ख) द र ६१७। त स ८२ । ५१। ८४७|| ८३| पेखत हे सखी पेखत परमाणंदलो जी, सो है ८३९ । ८४८ । ८४७ । ८३। सो हे सखी सोहै हे श्रीजिणराय, षी (खी) ८२४। षी (खी) ८२४ । षी (खी) ८२४ । षी (खी) अं गै ८२४| | ११११|| २३८ मै पा र भ व त ६५८ । ८४७ ६१२। ७२ । ५१७ ६४ ७४ ५१ पे पे सुं द र ८३११ | | ५३ | | ७२ | सो ८३९ । ख त प ख त ६१। The ८४८ । पू जा र चै सा र ६१६। ३३२|७२ | | ३१८|| ८३२| ७२। हे ८४७। रू ७२६ र ७२। श्री श्री (प) (६१) त ५१ । जि ३३३ | णो जी || 3|| ४५९ | | ३३४ | | ॥ ३॥ सो हा य ८३९| | ८४२ | ७१। मा णं द लो ६५२ । ४५११५३। ७३९। ण ५५। रा ७२२ । जी ३३४| य ७१। SHRUTSAGAR 21 May-2017 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private and Personal Use Only मि (मु) ष(ख) जि ण हे स षी (खी) मि (मु) ख ६५३ (५) । ८२ । ३३३ | ४५ ८४७२ ८३ ८२४ । ६५३ (५) । ८२ । मि (मुख जिण हे सखी मि (मु)ख जिम पूनिम चंदलौ जी ॥४॥ जि न म हे स षी(खी) ८२४| |३३| ३३ ५५ ६५ ८४७ ८३। जिनम हे सखी जिनम हे सफल थयो स फ ल हे स ८३ | | ६२ । ७३ । ८४७ | | ८३ | सफल हे सखी सफल फली मुझ हे ७४ । ६४। ७य । ८४७। भ व भ य ६४ | मूझ न म ५५ ६५| षी(वी) स फ ६२४ । ८३ | | ६२ । I आसली जी । स षी (खी) ८३ । । ८२४ । जि ३३३। भ ६४। हे ८४७। (ल) ( ७३ ) भवभय हे सखी भवभय दि(दु)ख गा' मिझ, सषी (ख) ढ्या (ट्या) हे ६४७ । ४४या (४१या) हे भे ढ्या(ट्या) हे ६४७ । ४४या (४१या) । हे ८३। ८२४ । भेढ्या (भेट्या) हे सखी भेढ्या (भेट्या) हे श्रीजिन छेछली जी ॥५॥ 1. गया. म पू ६५ ६१६। ५५३ फ ६२ । ली ७३४ । व भ ७४। ६४। 2) स फ ल थ यो ८३ । ६२ । ७३ | | ५२|| ७१९| ६५६। श्री जि श्री ३३३ म चं द ६५ ३१११ ५३। मु झ ३४। ६५६ । य दि (दु) ७१। ५३३ (५) । लौ ७३९ । आ १२२ । जी |४| ३३४ ॥४॥ झ ३४। स ली जी । ८३ । ७३४। ३३४ । ख गा २२ २३२ । ६५३ (६) । मि(मू) झ ३४ न छे छ ली ॥५॥ ५५ ३२७। ३२ । ७३४||३३४| ॥५॥ श्रुतसागर 22 मे २०१७ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHRUTSAGAR Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra For Private and Personal Use Only (श्री) | त | प | ग | छ | हे | स | षी(खी) | त | प | ग | छ | के | रो | [आई | स | (श्री) | ५१। | ६१। | २३। | ३२। | ८४७। | ८३।। ८२४। | ५१। | ६१। | २३। | ३२। | २१७। | ७२९। | [२]४। | ८३।। (श्री)तपगछ हे सखी तपगछ केरो [आ] ईस, (श्री) | वा(वि) | ज | य | हे | स | खी | वि | ज | य | प | र | भ | सू | री | स | रू | जी। | () | ૭૪રારૂ) | રા| શ| ૮૪૭ | રૂા | ૮૨૪ | ૭૪રા | રૂણા | શ | દશ૭૨ા ૬૪ ૦રૂદ્દા રજા રૂાબિદ્દા પુરૂજા, श्रीविजय हे सखी विजयपरभसूरीसरू जी। प | र | त | पो | हे | स | षी(खी) | प | र । त | पो | हे | को | डि | व | री | स ६१।। ७२।। ५१। ६१९। ८४७। ८३। ८२४। | ६१। | ७२। ५१। ६१९। ८४७। २१९। ४३३। ७४। | ७२४। ८३। परतपो हे सखी परतपो हे कोडि वरीस, | जि | हां | ल | गि | हे | स पी(खी) | जि | हां | ल | गि | ज | ग | र | वि | श | शी | ह | रू | जी | ॥६॥ | રૂરૂરૂ | ૮૪૨૨ા | Gરૂા. રર | ૮૪છા | cરા દર | ૨૩ ૮૪ | Gરૂા. રર | રા| રા | શ | ૭૪ | શા| ૪ | જા | બ્રઘા રૂઝ | Wદ્દા जिहां लगि हे सखी जिहां लगि जग रवि-शशीहरू जी ॥६॥ स | क | ल । हे । स षी(खी)। स | क | ल | वि | बू | ध | सि | ण | गा | र ८३। | २१। | ७३। | ८४७। | ८३। । ८२४। | ८३। | २१। । ७३। | ७४३। | ६३६। | ५४। | ८३३।। ४५। | २३२। | ७२। सकल हे सखी सकल विबूध सिणगार, www.kobatirth.org May-2017 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private and Personal Use Only हे स षी(वी) म ८२४ । (श्री) म हि मा (श्री) ६५ ८४३ | | ६५२। ८४७ | ८३ | हि ६५। ८२४ । (श्री) महिमा हे सखी महिमाविजय गु(रु) परतपै जी । स षी (खी) ८२४ । thc मु झ आ वा हे ६५५। ३४| १२२। ७४२। ८४७| ८३। मुझ आवा हे सखी आवा हे गमण निवार, सं ८३११। ला ल हे स खी ला ल वि ज य ७३२८ ७३ | |८४७ । ८३ । ८२४ । ७३२ । ७३ । लाल हे सखी लालविजय मुनि ईम जंपै जी ॥७॥ इति श्रीपार्श्वजिनस्तवन संपूरणं व ७४। संवत सतर ८९ (सं. १७८९) वि मा ६५२। ७४ । त ५१। आ वा हे १२२। | ७४२|| ८४७| ज य गु ३३ । ७१ । २३५ स ८३। 2 the ७४४ । ३३| ७१ ६५५ ५५३| ई | ग २३। হু नि ई म (रु) प र त पै जी। (७२५) ६१ । ७२ । ५१ । ६१८ । ३३४| त ५१। म ६५। ण नि वा र ४५। ५५४। ७४२। ७२ । जं पै ६५। ३३११| ६१८ ३३४| र ७२। अंकपल्लीकृतं स्तवनं । लिखावतं पत्रांतरे विलोक्य । विद्वान् स पुमान् । यादृशं तादृशं भवेत् ॥ १॥ शुभं भवतु दिने२। श्रीभव० जी ॥७॥ ॥७॥ ८९ ८९। श्रुतसागर 24 मे-२०१७ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषभपंचाशिका ब्राह्मी लिपिमा एक प्रयास (गतांक से आगे...) किरीट के. शाह. LE1880II 188 od 0852 8t उप्पन्नविमलनाणे तुमंमि भुवणस्स विअलिओ मोहो। AIIALI४' AII ४ ॥१६॥ सयलुग्गयसूरे वासरंमि गयणस्स व तमोहो ॥१६॥ 48811 ist 58 dti † PILI पूआवसरे सरिसो, दिट्ठो चक्कस्स तं सि भरहेण । 8 dlukt, AHI I.. ४.४।१७।। विसमा हु विसय तिन्हा, गरुआण वि कुणइ मइमोहं ॥१७॥ ८८४/४ ४ +JA8+ पढमसमोसरणंमुहे, तुह केवलसुरवहूकओज्जोआ। हा प्र.:. हा 181UALICE ॥१८॥ जाया अग्गेइ दिसा, सेवासयमागयसिहिव्व ॥१८॥ ACHAITABJI I LIC Burn गहिअवयभंगमलिणो, नूणं दूरोणएहिं मुहराओ। 0.:.1 ८८४Hd 05/1८८४ ॥१९॥ ठइओ पढमिल्लुअतावसेहिं, तुह दंसणे पढमे ॥१९॥ R IBGAIL &GL84 I +J8.4 तेहिं परवेढिएणय, वूढा तुमए खणं कुलवइस्स। 10 HbJTJREP+JI ॥२०॥ सोहा विअडंसत्थलघोलंतजडाकलावेण ॥२०॥ ८ ४ | UFILMS तुह रूवं पिच्छंता, न हुंति जे नाह हरिसपडिहत्थ। For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 26 श्रुतसागर मे-२०१७ ४F BIHI1 JF.| ॥२१॥ समणा वि गयमणच्चिय, ते केवलिणो जइ न हंति ॥२१॥ LEF Hf ४.: 81 पत्तानि असामन्नं, समुन्नई जेहिं देवया अन्ने । RE AIIA CLAF ४६ ॥२२॥ ते दिति तुम्ह, गुणसंकहासु हासं गुणा मज्झ ॥२२॥ FACHA K I F४१४' MLARA दोसरहिअस्स तुह जिण, निंदामरंमि भग्गपसराए। हा.:. BJIJE JAIR ४ ॥२३॥ वायाइ वयणकुलसा, वि बलिसायंति मच्छरिणो ॥२३॥ HFFILI83 .:.8JINKE४४' अणुरायपल्लविल्ले, रइवल्लिफुरंतहासकुसुमंमि। ABKL0 [४FINBI Kls"F ॥२४॥ तवताविऊवि न मणो, सिंगारवणे तुहल्लीणो ॥२४॥ HF 48J.:. H U tt आणा जस्स विलइआ, सीसे सेसव्व हरिहरेहिंपि। to AU PIEJI VII YLI OJ'117411 सो वि तुह झाणजलणे, मयणो मयणं विअ विलीणो ॥२५॥ ८.: 18 [HUF ItHIFF पइं नवरि निरभिमाणा जाया जयदप्पभज्जणुत्ताणा। LI". ४८४४ ॥२६॥ वम्महनरिंदजोहा, दिट्ठिच्छोहा मयच्छीणम ॥२६॥ ४४ KAI LELI ४४ विसमा रागद्दोसा, निंता तुरयव्व उप्पहेण मणम। OR DETEC 580 811 18 ॥२७॥ ठायंति धम्मसारहि, दिढे तुह पवयणे नवरं ॥२७॥ मणम। For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR ugJ+t↓d{ पच्चलकसायचोरे, www.kobatirth.org 27 कालमणतं Aartytd†DE{t सइसंनिहिआसिचक्कधणुरेहा । PK Kt d'a dJI AII II २८॥ हुति तुह च्चिअ चलणा, सरणं भीआण भवरन्ने 112811 KY 198 UK AJJA :: तुह समय सरप्भठ्ठा, [{F Jd ठ सायणि जलं व जीवा, AJJ_LAJI KL ACA भमंति सयलासु रुक्खजाईसु। OIO1A ODF २९ ॥ ठाणठाणेसु बज्झता 112911 LE Ht dye' उड्ठं अहो विमुक्कम्मि । सलिलव्व पवयणे, पवणे, तुह गहिए dgK_EL J{LECT♛ वच्चंति नाह कूवयहट्टघटीसंनिभा ठ ||३०|| JJIK È 71 लीलाह निंति सुक्खं, अन्ने जह KKAJA YAK जीवा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 113011 KG 1 kg तित्थिआ तहा न तुमं । ['BAG.::/३१/ मग्गति बुहा सिवसुहाई ॥31॥ तह वि तुह मग्गलग्गा, {{' } [DLY{IF ćI I ÆK : 5'8 सारि व्व बंधवहमरणभाइणो जिण न हुंति पइं दिठ्ठे । भने ॥३२॥ अक्खेहिं May-2017 & K "ठ [{bJJY' वि हीरंता जीवा संसारफलयंमि अवहीरिआ तए पहु निंति FJYIKAF AY +III सत्ता, समं कयाहारनीहारा For Private and Personal Use Only KAL¢_IK ILAJ5 निओगिक्कसंखलाबद्धा । ॥३३॥ 113211 113311 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 ॥36॥ श्रुतसागर मे-२०१७ C HI Aart El.:. ८१४ ४' UP जेहिं तविआणं तवनिहि जायइ परमा तुमम्मि पडिवत्ती। :::४1 R+g Hg ॥३४॥ दुक्खाइं ताई मन्ने न हुंति कम्मं अहम्मस्स ॥34॥ t" LAL 164 [४' होही मोहुच्छेओ तुह सेवाए धुव त्ति नंदामि। I | PRIL ॥३५॥ जं पुण न वंदिअव्वो, तत्थ तुमं तेण झिज्जामि ॥35॥ ६ ८४४ ४ L ४८४' जो तुह सेवाविमुहस्स, हुंतु मा ताउ मह समिद्धीओ। HERULE .:. T IGFL ॥३६॥ अहिगारसंपया इव, पेरंतविडंबणफलाओ THI४ ४ ४ lb I JH.. भित्तूण तमं दीवो, देव पयत्थे जणस्स पयडेइ । LI 818T६.84PH४ ॥३७॥ तुह पुण विवरीयमिणं, जइक्कदीवस्स निव्वडिअम ॥37॥ ४ F AdF हा I R+ मिच्छत्तविसपसुत्ता, सचेयणा जिण न हुंति किं जीवा। +ाई' +४.:. ६.:.+Trt A BII814 ॥३८॥ कन्नम्मि कमइ जइ, कित्तिअं पि तुह वयणमन्तस्स ॥38॥ HIf I C..: T+TR HEET आयन्निआ खणद्धं पि, पइं थिरं ते करिति अणुरायं । LAUT BUIRCHI IIR ॥३९॥ परसमया तह वि मणं, तुह समयन्नूण न हरंति ॥39।। (शेष अगले अंक में...) For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( गतांक से आगे...) www.kobatirth.org जैन न्यायनो विकास Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि श्री धुरंधरविजयजी २४-२५ श्री रामचंद्रसूरिजी तथा श्रीगुणचंद्रसूरिजी आ आचार्य तेरमां सैकामां थयां, ए बन्ने श्री हेमचंद्रसूरिजीनां शिष्य हतां. तेमां श्री रामचंद्रसूरिजी साहित्यमा अद्वितीय विद्वान हतां तेमणे सो काव्यग्रन्थो रच्यां छे. अने ‘सिद्धहेमशब्दानुशसासन' बृहद्वृत्ति उपर ५३००० श्लोकप्रमाण न्याय रच्यो छे. ते बन्नेए मळी स्वोपज्ञवृत्ति युक्त 'द्रव्यालंकार' नामनो न्यायग्रन्थ रच्यो छे. तेमां त्रण प्रकाश छे. पहेलामां जीवद्रव्यनुं स्वरूप, बीजामां पुद्गलद्रव्यनुं स्वरूप ने लीजामां धर्माधर्म आकाश आदिनुं स्वरूप-आ स्वप्रमाणथी सिद्ध करेल छे. २६. श्री प्रद्युम्नसूरिजी तेओ तेरमां सैकामां थयां, तेमणे 'वादस्थळ' नामनो एक ग्रन्थ रच्यो छे. जेमां जिनपतिसूरिनां मतानुयायिओ 'उदयनविहारमां प्रतिष्ठित थयेल जिनबिम्बो पूजनीय नथी, एम कहेतां हतां तेनुं खंडन छे. २७. श्री रत्नप्रभसूरिजी तेओ बारमां-तेरमां सैकामां थयां तेओ वादिदेवसूरिजीनां पट्टालंकार अने न्यायनां अपूर्व विद्वान हतां वादिदेवसूरिजीना 'स्याद्वादरत्नाकर' मां ते ओए सहकार आप्यो हतो. तेमनी संस्कृत लखवानी शक्ति अनन्य हती. तेमणे 'स्याद्वादरत्नाकर'मां प्रवेश करवा माटे ‘प्रमाणनयतत्त्वालोक' उपर 'रत्नाकरावतारिका' नामनी लघु वृत्ति रची छे, ते घणी विद्वत्तापूर्ण अने प्रतिभाशालिनी छे. तेमां बौद्ध नैयायिक 'अर्चट' अने ‘धर्मोत्तर’नो उल्लेख छे. तेमां शब्दनी रमक-झमक घणी ज छे. चक्षु प्राप्यकारी छे के अप्राप्यकारी ए विषयनो वाद सम्पूर्ण विविध छन्दोमां श्लोकबद्ध लख्यो छे. जगत्कर्तृत्वनो विध्वंस फक्त तेर वर्ण, त्रण स्यादिविभक्ति अने बे त्यादिविभक्तिमां ज गोठव्यो छे, ते आ प्रमाणे - For Private and Personal Use Only त्यादिवचनद्वयेन, स्यादिकवचनत्रयेण वर्णैस्तु । त्रिभिरधिकैर्दशभिरयं व्यधायि शिवसिद्धिविध्वंसः ॥ (ति, ते, । सि, टा, ङस्, । तथदधन, पबभम, यरलव ।) पोतानी आ वृत्ति माटे Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 30 मे-२०१७ तेओए ज अन्ते लख्यु छे के वृत्तिः पञ्चसहस्राणि येनेयं परिपठ्यते। भारती भारती चास्य, प्रसर्पन्ति प्रजल्पतः ।। 'जेनां वडे आ पांच हजार श्लोकप्रमाण वृत्ति भणाय छे, बोलतां एवां तेनी प्रभा आनंद अने वाणी विस्तारने पामे छे. तेमणे बीजां पण 'नेमिनाथचरित', 'उपदेशमाला टीका, “मतपरीक्षा पंचाशत्' वगेरे ग्रन्थो रच्यां छे. ___ए प्रमाणे आ सातसो वर्षमा जैन न्यायनो सूर्य बरोबर मध्याह्नकाळने अनुभवतो हतो अने ते समयमां थयेल आचार्यो तेनी आडे आवतां वादळोने विखेरी नाखी तेनां प्रकाशने प्रसारतां हतां. आज पण आपणा माटे ते आचार्योए प्रसारेल किरणोनो प्रकाश ग्रन्थरूपे विद्यमान छे. तो ते प्रकाशमां विचरीने अन्धकारनी पीडाथी बची आनन्दित थq. आलेख प्रभावकचरित्र, चतुर्विंशति प्रबन्ध, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास तथा आ लेखमां आवता न्यायग्रन्थोमांथी उपलब्ध अने प्राप्त थयेल ग्रन्थोनां अवलोकनथी लखायेल छे, एटलो आवश्यक उल्लेख करी आ लेख समाप्त करूं छु. श्री जैन सत्यप्रकाश वर्ष-७, दीपोत्सवी अंकमांथी साभार क्या आप अपने ज्ञानभंडार को समद्ध करना चाहते हैं ? पुस्तकें भेंट में दी जाती हैं आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में आगम, प्रकीर्णक, औपदेशिक, आध्यात्मिक, प्रवचन, कथा, स्तवन-स्तुति संग्रह आदि विविध प्रकार के साहित्य तथा प्राकृत, संस्कृत, मारुगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी, पुरानी हिन्दी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं की भेंट में आई बहुमूल्य पुस्तकों की अधिक नकलों का अतिविशाल संग्रह है, जो हम किसी भी ज्ञानभंडार को भेंट में देते हैं. ___ यदि आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं तो यथाशीघ्र संपर्क करें. पहले आने वाले आवेदन को प्राथमिकता दी जाएगी. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाचारसार रामप्रकाश झा श्री शांतिधाम जैन तीर्थ में आचार्यपदवी का त्रिदिवसीय भव्य महोत्सव सम्पन्न प.पू.तपागच्छाधिपति आचार्य श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. एवं श्रुततीर्थ संरक्षक राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. आदि विशाल साधु-साध्वी वृन्द की पावन निश्रा में श्री शांतिधाम जैन तीर्थ, वटवा, अहमदाबाद के तत्वावधान में अंकुर मंदिर के समीपवर्ती मैदान के भव्य शामियाने में वि.सं. २०७३ चैत्रकृष्ण ६, दिनांक १७ अप्रैल, २०१७ को ज्योतिर्विद पंन्यासप्रवर श्री अरविंदसागरजी म.सा. व तपोनिष्ठ पंन्यासप्रवर श्री महेन्द्रसागरजी म.सा. को आचार्य पदवी से विभूषित किया गया. इस त्रिदिवसीय कार्यक्रम के अन्तर्गत दिनांक १५ अप्रैल को प्रातःकाल पूज्य गुरुभगवंतों के प्रवेश के निमित्त श्रीसंघ की राजतिलकोत्सव यात्रा का आयोजन किया गया तथा दोपहर को पूज्य आचार्य भगवन्तों की गुण गरिमा को उजागर करनेवाली हृदयस्पर्शी प्रस्तुति की गई. दिनांक १६ अप्रैल को पंचप्रस्थानयुक्त यंत्र के ऊपर श्री गौतमस्वामी महापूजन किया गया. दिनांक १७ अप्रैल को तपागच्छाधिपति एवं राष्ट्रसन्त गुरुदेवश्री के करकमलों से सूरिपदप्रदान विधि सम्पन्न हुई. इसी अवसर पर पू. आचार्य श्री अरविंदसागरसूरिजी म.सा. द्वारा निर्मित ऐतिहासिक १०० वर्षीय श्री सीमन्धरस्वामि प्रत्यक्ष पंचांग का लोकार्पण किया गया. श्री शांतिग्राम टाउनशीप में मूलनायक श्री आदिनाथ प्रभु का महामंगलकारी त्रिदिवसीय प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न परमोपकारी राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा तथा समतासुधानिधि आ. श्री वर्धमानसागरसूरि म.सा., आ. श्री अमृतसागरसूरि म.सा., आ. श्री विनयसागरसूरि म.सा., आ. श्री हेमचंद्रसागरसूरि म.सा., आ. श्री विवेकसागरसूरि म.सा., आ. श्री अजयसागरसूरि म.सा. तथा आ. श्री महेन्द्रसागरसूरि म.सा. आदि शिष्य-प्रशिष्यों के पावन सान्निध्य में तथा योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरि समुदाय व अन्य समुदायों की साध्वीजी भगवंतों की समुपस्थिति में श्री शांतिग्राम टाउनशीप, अहमदाबाद में मूलनायक श्री आदिनाथ प्रभु के त्रिदिवसीय प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन वि.सं. २०७३ चैत्रकृष्ण ८, ९ व १० दिनांक १९, २० व २१ अप्रैल को भक्तिपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ. इस अवसर पर गच्छाधिपति आचार्य श्री कल्पजयसूरीश्वरजी म.सा., आचार्य श्री राजयशसूरीश्वरजी म.सा. व आचार्य श्री महाबोधिसूरीश्वरजी म.सा. भी उपस्थित थे. For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मे-२०१७ प्रथमदिन १९ अप्रैल को पंचकल्याणक वंदना, जिनचैत्यों की विशिष्ट नृत्यभक्ति का आयोजन, द्वितीयदिवस २० अप्रैल को विशेष मांगलिक के साथ धर्मसभा का आयोजन तथा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में संग्रहीत जैन हस्तप्रतों की सूची कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूची भाग-२२ का चतुर्विधसंघ की उपस्थिति में विमोचन किया गया. तृतीयदिन २१ अप्रैल को जिनप्रासादका द्वारोद्घाटन तथा मुनि श्री हृदयपद्मसागरजी म.सा., साध्वी श्री जितयशाश्रीजी म.सा. तथा साध्वी श्री वीतरागदर्शिताश्रीजी म.सा. नूतन दीक्षित भगवंतों की वडीदीक्षा संपूर्ण भक्तिमय वातावरण में सम्पन्न हुई. प.पू. साधु-साध्वीजी भगवंतों के वर्षीतप का पारणा महोत्सव कोबा में विविध धार्मिक अनुष्ठानों के साथ सानन्द सम्पन्न ___ परमोपकारी राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. आदि की पावन निश्रा में कोबातीर्थ में श्रुतसंरक्षक आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी के शिष्यरत्न मुनिराज श्री ऋषिपद्मसागरजी, समतासुधानिधि आचार्य श्री वर्धमानसागरसूरिजी के शिष्यरत्न मुनिराज श्री हृदयपद्मसागरजी तथा बुद्धिसागरसूरिजी समुदाय की श्रमणीभगवंत साध्वीवर्या श्री ध्यानवर्षाश्रीजी, श्री निर्वेददर्शिताश्रीजी, श्री अहँरत्नाश्रीजी, श्री जितयशाश्रीजी आदि का वर्षीतप का पारणा महोत्सव दिनांक-२७ से २९ अप्रैल, २०१७ को विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के साथ सम्पन्न हुआ. दिनांक २७ अप्रैल को महावीरालय में योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी विरचित ९९ प्रकारी पूजा का आयोजन किया गया. दिनांक २८ अप्रैल को भक्तामर स्तोत्र महापूजन का आयोजन किया गया, जिसमें चतुर्विधसंघ ने महापूजन में जुड़ कर अपना जीवन धन्य किया. पारणोत्सव समारोह के पावन अवसर पर दिनांक २९ अप्रैल को प. प. परमोपकारी राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी, समतासुधानिधि आ. श्री वर्धमानसागरसूरिजी, जापमग्न आ. श्री अमृतसागरसूरिजी, ज्योतिर्विद आ. श्री अरुणोदयसागरसूरिजी व श्री अरविंदसागरसूरिजी, आ. श्री विनयसागरसूरिजी, आ. श्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी, आ. श्री विवेकसागरसूरिजी, आ. श्री अजयसागरसूरिजी, गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी, गणिवर्य श्री अमरप्रद्मसागरजी आदि तथा योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धसागरसूरीश्वरजी के समुदाय की प्रमुख साध्वीजी भगवंत आदि ६४ ठाणा तथा अनेक गुरुभक्तों-श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में पारणा महोत्सव बेंगलोर जयनगर से पधारे जिनभक्तिमंडल द्वारा प्रस्तुत “ऋषभनी शोभा शी कहुं ?" कार्यक्रम के साथ सानन्द सम्पन्न हुआ. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिग्राम प्रतिष्ठा महोत्सव शांतिग्राम जिनालय का सौंदर्य जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठाविधि करते हुए प.पू. गुरुभगवंत प.पू. गुरुभगवंत की निश्रा में कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूची भाग-२२ का विमोचन वर्षीतप पारणा महोत्सव ) प.पू. गुरुभगवंत के साथ तपस्वी मुनिराज श्री ऋषिपद्मसागरजी व मुनिराज श्री हृदयपद्मसागरजी प.पू. गुरुभगवंत व तपस्वी मुनिराज को इक्षुरस वहोराते For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No. GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City so, and on 20th date of every month under Postal Regd. No. G-GNR-338 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2018. 62/66FERE1512) G891GIGR8/22 114 / प.पू. गुरुभगवंत की निश्रा में वर्षीतप पारणा महोत्सव BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि. गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फेक्स (079) 23276249 Website : www.kobatirth.org email: gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by : HIREN KISHORBHAI DOSHL on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. And Printed at : NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAIDOSHI For Private and Personal Use Only