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श्रुतसागर
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भादमंत्री रास
१. युगल पर, २. जडीबुट्टी,
॥८०॥॥ श्रीसोमजयसूरि गुरुभ्यो नमः ।।
पणमिअ प्रथम जिणेसरपाय, राय सेवक जिन तस तणउ ए; गायसो रंगिहिं नव नव भंगिहिं, भाद मंत्री सहूं करी जगी ॥१॥ सिरि सिद्ध-सेहर असम भूमी (मि)धर, सिहिर-शृंगारण-रयण-कुंभ, नाभि-नरेसर-नंदन नायक, वंछित - व -दायक गलिअ-दंभ; र(रि)सह जिणेसर भुवण-दिणेसर, पणय-सुरेसर जगगुरु ए, भाद भूमी(मि)पति अति भगति सेवति,
जास पयकमलि जुअलि' वरू ए॥२॥
विमल-भूधर-शिरि रायणि तरुन्तलि, समोसरिया नवाणूंअ पूरव वार; सुरनर किंनर असुर योगीश्वर, भणइ एह तीरथ त्रैलोक्य- सार ॥३॥ निरमल नाणीअ महिमा जाणीअ, आदर आणीअ अति धणु ए; तीणइ ठामि वास करइ नामि,
आवद हरइ वंछित श(स) वि करइ भादराय ॥४॥
आहे भादराय महिमा अपार, हूं पार न जाणूं; ज्ञान नही मुखि एक जीभ, कुण परि वखाणूं ॥५॥ एक निरंतर देवभक्ति, गुरूभगतिइ माचइ; प्रीति धरइ निरलोभसुं, अनइ साचइ राचइ ॥६॥ कालबलइ नवि फलइं मंत्र, महिमा नवि गोली, मंत्र तंत्र देवता-वयण, नवि जडी' अनमूली; इक बलवत्तर नाभिराय-नंदन कलपतर, सेव-परायण भादराय, पूरु आणंदि ॥७॥ तास तणा अवदात वात केतली वखाणं, सांभलतां अंगि करइ रोम अंकूर अमाण(णूं); दर्शन सुदृढ धरइ प्रेम मिथ्यात व (वि) गरइ,
सायण जयनि भूअ पेअ' सवि नीअ' पगि पाडइ ॥८॥
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३. कल्पवृक्ष. ४. शाकिनी,डाकिनी, भूत, प्रेत आदि
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५. निज, पोतानुं.
मे २०१७
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