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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 10 भादमंत्री रास १. युगल पर, २. जडीबुट्टी, ॥८०॥॥ श्रीसोमजयसूरि गुरुभ्यो नमः ।। पणमिअ प्रथम जिणेसरपाय, राय सेवक जिन तस तणउ ए; गायसो रंगिहिं नव नव भंगिहिं, भाद मंत्री सहूं करी जगी ॥१॥ सिरि सिद्ध-सेहर असम भूमी (मि)धर, सिहिर-शृंगारण-रयण-कुंभ, नाभि-नरेसर-नंदन नायक, वंछित - व -दायक गलिअ-दंभ; र(रि)सह जिणेसर भुवण-दिणेसर, पणय-सुरेसर जगगुरु ए, भाद भूमी(मि)पति अति भगति सेवति, जास पयकमलि जुअलि' वरू ए॥२॥ विमल-भूधर-शिरि रायणि तरुन्तलि, समोसरिया नवाणूंअ पूरव वार; सुरनर किंनर असुर योगीश्वर, भणइ एह तीरथ त्रैलोक्य- सार ॥३॥ निरमल नाणीअ महिमा जाणीअ, आदर आणीअ अति धणु ए; तीणइ ठामि वास करइ नामि, आवद हरइ वंछित श(स) वि करइ भादराय ॥४॥ आहे भादराय महिमा अपार, हूं पार न जाणूं; ज्ञान नही मुखि एक जीभ, कुण परि वखाणूं ॥५॥ एक निरंतर देवभक्ति, गुरूभगतिइ माचइ; प्रीति धरइ निरलोभसुं, अनइ साचइ राचइ ॥६॥ कालबलइ नवि फलइं मंत्र, महिमा नवि गोली, मंत्र तंत्र देवता-वयण, नवि जडी' अनमूली; इक बलवत्तर नाभिराय-नंदन कलपतर, सेव-परायण भादराय, पूरु आणंदि ॥७॥ तास तणा अवदात वात केतली वखाणं, सांभलतां अंगि करइ रोम अंकूर अमाण(णूं); दर्शन सुदृढ धरइ प्रेम मिथ्यात व (वि) गरइ, सायण जयनि भूअ पेअ' सवि नीअ' पगि पाडइ ॥८॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. कल्पवृक्ष. ४. शाकिनी,डाकिनी, भूत, प्रेत आदि For Private and Personal Use Only ५. निज, पोतानुं. मे २०१७ 11811 ॥२॥ ॥३॥ 11811 ॥५॥ ॥६॥ 11611 11211
SR No.525322
Book TitleShrutsagar 2017 05 Volume 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size7 MB
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