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श्रुतसागर
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मे-२०१७ तेओए ज अन्ते लख्यु छे के
वृत्तिः पञ्चसहस्राणि येनेयं परिपठ्यते। भारती भारती चास्य, प्रसर्पन्ति प्रजल्पतः ।।
'जेनां वडे आ पांच हजार श्लोकप्रमाण वृत्ति भणाय छे, बोलतां एवां तेनी प्रभा आनंद अने वाणी विस्तारने पामे छे.
तेमणे बीजां पण 'नेमिनाथचरित', 'उपदेशमाला टीका, “मतपरीक्षा पंचाशत्' वगेरे ग्रन्थो रच्यां छे. ___ए प्रमाणे आ सातसो वर्षमा जैन न्यायनो सूर्य बरोबर मध्याह्नकाळने अनुभवतो हतो अने ते समयमां थयेल आचार्यो तेनी आडे आवतां वादळोने विखेरी नाखी तेनां प्रकाशने प्रसारतां हतां. आज पण आपणा माटे ते आचार्योए प्रसारेल किरणोनो प्रकाश ग्रन्थरूपे विद्यमान छे. तो ते प्रकाशमां विचरीने अन्धकारनी पीडाथी बची आनन्दित थq.
आलेख प्रभावकचरित्र, चतुर्विंशति प्रबन्ध, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास तथा आ लेखमां आवता न्यायग्रन्थोमांथी उपलब्ध अने प्राप्त थयेल ग्रन्थोनां अवलोकनथी लखायेल छे, एटलो आवश्यक उल्लेख करी आ लेख समाप्त करूं छु.
श्री जैन सत्यप्रकाश वर्ष-७, दीपोत्सवी अंकमांथी साभार
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