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श्रुतसागर
अप्रैल-२०१७ आप सुकवि, गीतार्थ, प्रभावक थे। लक्षण साहित्य के आप विद्वान थे। संवत् १५०३ पालनपुर में रचित पृथ्वीचंद चरित में आपने अपनी दीक्षा, विद्या और पददाता गुरुओं का उल्लेख किया है
तत्पट्टशाद्वलवक्षःस्थलकौस्तुभसन्निभः। श्री जिनराजसूरीन्द्रो योऽभूद्दीक्षागुरु मम ॥३॥ तदनु च श्रीजिनवर्द्धनसूरिः श्रीमानुदैदुदारमनाः। लक्षणसाहित्यादिग्रन्थेषु गुरु मम प्रथितः ॥४॥ श्रीजिनभद्रमुनीन्द्राः खरतरगणगगनपूर्णचन्द्रमसः। ते चोपाध्यायपदप्रदानतो मे परमपूज्याः ॥५॥
आपकी गृहस्थ अवस्था का परिचय अर्बुद प्राचीन जैन लेख संदोह भाग-२ के शिलालेख क्रमांक ४४२, ४४९, ४५५, ४५६, ४५७ और पाटण जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह के शिलालेख क्रमांक ५५२ के अनुसार ओसवाल दरड़ा गोत्रीय संघपति खीमसिंह के पुत्र हरिपाल की पत्नी सीता के पुत्र आसराज की भार्या सोषू के आप पुत्र थे। संघपति मंडलिक जिसने आबु महातीर्थ पर खरतरवसही नामक जैन मंदिर का निर्माण करवाया, वे आपके गृहस्थावस्था के भाई थे।
लेखांक ४५५ द्रष्टव्य है
॥ सं० १५१५ वर्षे आषाढ वदि १शुक्रे श्रीअर्बुदगिरिमहातीर्थे ..... तत्पुत्र हरिपाल भा० सीतादे पुत्र सा० आसराज भार्या सोषू तत्पुत्र श्रीजयसागरोपाध्यायबांधवेन संघाधिपतिमंडलिकेन ..... परिवारसहितेन श्रीनवफणपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छाधीश्वरश्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥
आपके द्वारा रचित संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और मरुगुर्जर भाषा में अनेक कृतियां प्राप्त होती है। जिनमें सं.१४७८ में पाटण में रचित पर्वरत्नावली, संदेह दोहावली टीका, गुरुपारतंत्र्य वृत्ति, उपसर्गहर वृत्ति, भावारिवारण वृत्ति, नेमिजिन स्तुति टीका, सर्वाधिष्ठायी स्तोत्र टीका, उक्ति समुच्चय आदि ग्रंथ प्राप्त होते हैं। ___ गेय रचनाओं में गिरनार, खंभात, मांडवगढ, शंखेश्वर, मरुकोट, नागद्रह, जीरापल्ली, नगरकोटादि सहित चैत्यपरिपाटी स्तव, विनती स्तवन, जिनकुशलसूरि सप्ततिका, वयरस्वामी रास, गौतमस्वामी चतुष्पदिका, नेमिनाथ विवाहलो, अर्बुद तीर्थ विज्ञप्ति, पंचवर्गपरिहार पार्श्व स्तोत्र, चौबीस जिन कालगर्भित स्तवन आदि पचासों रचनाओं से साहित्य को समृद्ध किया।
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