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April-2017
SHRUTSAGAR परिचयात्मक ग्रंथसूचियाँ आधुनिक शैली में तैयार की जायें.
ग्रंथसूचियों के लाभ विद्वानों को अविदित नहीं हैं. अपनी साहित्य संपदा एवं हस्तलिखित ग्रंथों का लेखाजोखा जानना मात्र ही नहीं, प्रायः प्रत्येक भंडार में एकाधिक अप्रकाशित रचनाएँ प्राप्त होती हैं, कभी-कभी तो ऐसी विरल रचनाएँ भी प्राप्त हो जाती हैं, जिनके अस्तित्व की जानकारी तो ग्रंथांतरों से थी किन्तु वह कहीं भी उपलब्ध नहीं थी. इसके अतिरिक्त, किसी भी ग्रंथ के आधुनिक पद्धति से सुसंपादित संस्करण का निर्माण करने के लिए विभिन्न भंडारों में प्राप्त उसकी प्रतियों का मिलान करने से पाठभेदों के प्रक्षिप्त या त्रुटित अंशों आदि का निर्णय करने में बड़ी सहायता मिलती है. शास्त्र-दान करने वाले और प्रतिलिपिलेखक की पुष्पिकाओं से अनेक रचनाओं के रचनाकाल-निर्धारण में सहायता मिलती है और मूल लेखक के विषय में, दानप्रेरक गुरु, दाता श्रावक या श्राविका, लिपिकार आदि के व देश-काल आदि के संबंध में अनेक महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त हो जाते हैं. भाषा एवं लिपि के विकास का अध्ययन करने में भी विभिन्न कालीन एवं विभिन्न क्षेत्रीय प्रतिलिपियाँ उपयोगी होती हैं.
पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी की प्रेरणा व आशीर्वाद से स्थापित एवं संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रंथालय) कोबा में संगृहीत लगभग दो लाख से अधिक हस्तप्रतों के सूचीकरण का कार्य जारी है. यह कार्य यहीं कम्प्युटर आधारित आधुनिक तकनीकी की सहायता से विकसित सूचीकरण प्रणाली, जो आजतक की सबसे विस्तृत व विकसित सूचीकरण पद्धति है, के द्वारा सूचीकरण का कार्य किया जा रहा है. लगभग ५० से अधिक भागों में प्रकाशित होने वाली इस ग्रंथसूची के अभी तक इक्कीस भाग प्रकाशित हो चुके हैं. इस प्रकार की सूचियों के निर्माण करने कार्य बड़ा धैर्य, श्रम एवं समयसाध्य तो होता ही है, कदाचित् निरस भी होता है. इस कार्य के प्राचीन लिपि के विशेषज्ञों, जो विभिन्न भाषा एवं विषयों के भी मर्मज्ञ हैं, के द्वारा किया जा रहा है. पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी महाराज ने अपने एक लाख पचास हजार से भी अधिक किलोमीटर की पदयात्रा के क्रम में भारत भर के गाँ-गाँव में वर्षों से उपेक्षित ज्ञानभंडारों तथा उसमें संगृहीत हस्तप्रतों के अस्त-व्यस्त स्थिति को देखा. उनका हृदय द्रवित हो उठा, अपने श्रुतविरासत को संरक्षित करने की भावना जाग्रत हो उठी तथा उन भंडारों के संचालकों को समझा-बुझा कर जिस स्थिति में हस्तप्रत
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