Book Title: Shrutsagar 2014 12 Volume 01 07 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 5 दिसम्बर - २०१४ श्रुतसागर छे अने क्रिया खद्योत (आगीया) जेवी छे. क्रियाथी भ्रष्ट ज्ञानी, देशथी विराधक छे अने सर्वथी आराधक छे, अने ज्ञानथी भ्रष्ट क्रिया करनार, देशथी आराधक छे पण सर्वथी विराधक छे, एम भगवती सूत्रमां कह्युं छे. ज्ञान विना मनुष्य रोझ समान छे. अज्ञानी शुं करशे? शुं लेशे ? अज्ञानी शी रीते तप, जप, प्रभुनी आराधना करी शकशे? आ प्रमाणे ज्ञाननी उत्तमता यात्राळुओ विचारशे तो मालुम पडशे के, पहेलुं ज्ञान प्राप्त कर्या बाद प्रभुनी पूजा, भक्ति, यात्रा, वगेरे करवामां आवे तो दूधमां साकर मळ्या बरोबर थाय !!! एक ज्ञानी हजारो वा लाखो मनुष्योने बोध आपी शके छे, पोते तरे छे अने बीजाओने तारी शके छे. ज्ञानीनी संगति समान जगत्मां कोईनी संगति उत्तम नथी. जैन तत्त्वज्ञान प्राप्त कर्या विना भाव जैनपणु प्राप्त थई शकतुं नथी. जेओए तत्त्वज्ञान प्राप्त कर्तुं नथी, एवा यात्राळुओए मनमां संकल्प वा प्रतिज्ञा करवी के, कोई ज्ञानी सद्गुरु पासे तत्त्वज्ञान प्राप्त करवुं, तेम पोताना पुत्र अने पुत्रीओने जैन तत्त्वज्ञान प्राप्त कराववुं ज्ञान विनानुं जीवन शून्य छे. ज्ञानीने सूर्यनी उपमा आपवामां आवे छे. धर्मनी क्रियाओ पण ज्ञानीनी पासे छे. चंद्र, समुद्र, मेरूपर्वत, अने कल्पवृक्ष, पारसमणि आदिनी उपमाओ ज्ञानीओने ज आपवामां आवे छे. दररोज ज्ञाननो अभ्यास करवो ए पण श्रुत ज्ञान रूप तीर्थनी यात्रा समजवी -जो श्रुत ज्ञान रूप तीर्थनी यात्रा न करवामां आवे तो, स्थावर तीर्थनी यात्रा बराबर थई शकवानी नथी. हालमां सकळ संघने श्रुत ज्ञानरूप तीर्थनो आधार छे. जे श्रुत ज्ञानरूप तीर्थनी तन मन अने धनथी सेवा करतो नथी, ते तीर्थनी यात्रानो परिपूर्ण अर्थ समजी शकतो नथी. श्रुत ज्ञानरूप तीर्थनी उन्नति माटे जेओ पोताना प्राण आपे छे अने ते माटे पोतानुं सर्व समर्पण करे छे, तेओ तीर्थंकरादि पदनी प्राप्ति करे छे; आ उपरथी सहेजे समजवामां आवशे के श्रुतज्ञानरूप तीर्थ विना कदी जैन शासन चालवानुं नथी. श्रुत ज्ञाननी बलिहारी छे. साधुओ अने साध्वीओने जे श्रुतज्ञान भणावे छे, भणतां तन, मन अने धनथी जेओ मदद करे छे, तेओ श्रुतज्ञानरूप तीर्थनी यात्रा करनारा समजवा. जे श्रावको अने जे श्राविकाओ प्रतिदिन कंईपण जैन सिद्धांतोनो अभ्यास करता नथी, तेओनो जन्म थयो तो शुं? अने न थयो तो पण शुं? आपणा साधुओए अने साध्वीओए श्रावक अने श्राविकाओने भणाववानो For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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