Book Title: Shrutsagar 2014 12 Volume 01 07 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir KobaPage 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक समीक्षा डॉ. हेमन्त कुमार पुस्तक नाम : सूत्र संवेदना मूल कृति नाम : आवश्यकसूत्र विवेचक साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन, अहमदाबाद प्रकाशन वर्ष : विक्रम संवत्-२०५७ से २०७० भाग मूल्य ५००/- (सेट की कीमत) भाषा : गुजराती जैनधर्म का सिद्धांत मूलतः कर्म पर आधरित है. संपूर्ण कर्मों का क्षय हुए बिना मानव जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति असंभव है, यह निर्विवाद है. अपनी आत्मा कर्म से आच्छादित है. इन सभी कर्मों का क्षय करने के पश्चात् ही परम ऐश्वर्य की प्राप्ति की जा सकती है. अतः समस्त साधना एवं क्रियाओं का मूल उद्देश्य एक ही होना चाहिए कि किस प्रकार कर्मों को क्षय किया जाए. हमें यह भी विचार करना चाहिए कि आज तक इतनी साधना-आराधना करने के बाद भी हम अपने समस्त कर्मों को क्षय क्यों नहीं कर सके? इसका कारण क्या है? हमारी आत्मा कर्म रहित बने इस हेतु से ही पूज्य विदुषी साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी म. सा. ने सूत्र संवेदना नामक विशिष्ट ग्रंथ की रचना करके मुमुक्षुओं के मोक्ष मार्ग को सुलभ बनाने का प्रयास किया है. सूत्र संवेदना एक अति उपयोगी ग्रन्थ है, क्योंकि इसमें मोक्ष मार्ग के आराधकों के लिए बहुत ही सुन्दर ढंग से कर्म क्षय करने के उपाय बताए गए हैं. इस पुस्तक में नित्यप्रति किए जानेवाले प्रतिक्रमण आदि आवश्यकसूत्रों का सामान्य अर्थ तो दिया ही गया है साथ ही यह भी बताया गया है कि इस सूत्र को बोलते समय हृदय का भाव किस प्रकार का होना चाहिए. इन सूत्रों का अर्थ पूर्णतः शास्त्रसम्मत एवं शास्त्राधारित है. शब्द एवं भाषा की मर्यादा होते हुए भी यथाशक्य हृदय के अनेक भावों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है. सभी आवश्यक क्रियाओं को मुमुक्षु उपयुक्त भाव के साथ करें इस हेतु से सूत्रों का अर्थ किया गया है. विदुषी पूज्य साध्वीश्रीजी ने प्रत्येक सूत्र का प्रथमतः सामान्य परिचय कराया है, फिर मूल सूत्र दिया है, उसके बाद सूत्रों For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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