Book Title: Shrutsagar 2014 12 Volume 01 07 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir KobaPage 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR DECEMBER-2014 का अन्वय, संस्कृत छाया, गुजराती शब्दार्थ किया है, फिर उन सूत्रों का विशेषार्थ विस्तारपूर्वक बताया है. यह सत्य है कि प्रत्येक धार्मिक क्रियाओं के साथ संलग्न आवश्यकसूत्रों का अर्थ, विधिपूर्वक उच्चारण और उनके साथ अपने हृदय में उत्पन्न होने वाले भाव क्षणिक न रहे, वह लम्बे समय तक टिका रहे, उसकी तारतम्यता बनी रहे, तभी तत्त्व संवेदना स्थिर हो पाती है और यही तत्त्व संवेदना आत्मा को मुक्तिधाम तक पहुँचाने में सहायक होती है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए पूज्य साध्वी श्री चंद्राननाश्रीजी की शिष्या परम विदुषी शिष्या साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी म. सा. ने सूत्र संवेदना नामक पुस्तक की रचना कर ७ भागों में प्रकाशित करवाया है. विक्रम संवत् २०५७ से २०७० के मध्य इस पुस्तक के ७ भागों का प्रकाशन पूज्यश्रीजी ने बहुत ही चिंतन-मनन के पश्चात् पूर्ण करवाया है. प्रत्येक सूत्रों का गुजराती भाषा में विवेचन बड़ी ही सूक्ष्मता पूर्वक करते हुए मुमुक्षु जीवों के लिए आराधना मार्ग स्पष्ट और सुलभ कर दिया है. यह पुस्तक मुमुक्षु जीवों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा. धार्मिक आराधना जिन सूत्रों के सहारे की जाती है, उन सूत्रों के रचयिता गणधर भगवन्त हैं, हमारे सद्भाग्य से ये सूत्र आज तक हमको उपलब्ध हैं. इन्हीं सूत्रों के आधार पर हम अपनी सभी धार्मिक क्रियाएँ करते हैं, किन्तु आज कठिनाई यह है कि इन सूत्रों का अर्थ समझे बिना ही रटते रहते हैं, जिसके कारण उन सूत्रों से जो शक्ति जितने प्रमाण में उत्पन्न होनी चाहिए वह नहीं हो पाती है. परिणाम स्वरूप अपेक्षित कर्म क्षय नहीं हो पाता है. मात्र सूत्रों को रटने से जीव को लाभ तो होता है, किन्तु बहुत सामान्य होता है. यह तो वही बात हुई कि जिस कार्य से हमें करोड़ों की आमदनी होनी चाहिए वहाँ से मात्र कौड़ी लेकर ही घर वापस आने जैसी है. यदि हम पूर्ण सावधानी पूर्वक एवं विधिपूर्वक इन सूत्रों की आराधना करें तो अवश्य ही हमें अपेक्षित लाभ प्राप्त होगा और अपने कर्मों की निर्जरा कर सकेंगे. पूज्य विदुषी साध्वीश्रीजी ने इसी बात को समझाने का सफल प्रयास किया है. पूज्य साध्वीश्रीजी ने संपूर्ण आवश्यकसूत्र का गुजराती भाषा में अनुवाद कर गुजराती भाषा-भाषी मुमुक्षुओं-वाचकों के लिए सरल एवं सुबोध बनाने का जो अनुग्रह किया है, वह सराहनीय एवं स्तुत्य कार्य है. भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं श्रुतसेवा में समाज को इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करता हूँ. पूज्य साध्वीश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन. For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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