Book Title: Shrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
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दश ब्रह्मचर्य समाधिस्थान कुलक
॥ श्री जिनाय नमः ॥ ॥ ६० ॥
श्री नेमीश्वर पाय नमी, पामी सुगुरु पसाउ । मन उल्लासई संथुणउ, परम ब्रह्मव्रतरीव' ॥१॥
ब्रह्मचर्यना गुण घणा, रयण जेम जगि सार । सुरगुरुजीभई कह, तउ पुण न लहइ पार ॥२॥ तरुणपणई' जे तारुआ', ते विरला संसारि । खुता नारि' नदी जलिइं, ते किम पुहुचई पार ॥३॥ शिवगामी तेणइ ज भवि, स्वामी मल्लि नेमि ।
भचेर मनि थिरकर, मुकति पहुता खेमि ॥४॥ जीव विमासी' जोइतउं, जीवन खिण-खिण जाइ । अंजलिना जलनी परइं, तिम करि जिम थिर थाइ ॥ ५॥ गुरु आराम' जोइ, जिनप्रवचन आरा 1 मनथाई तरु रोपियउ, बंभचेर अभिराम ॥६॥ श्रद्धा सारण जल विमल, वहइ तिहां सुविवेक । सुदृढमूल समकित भलउ, गुणगण पत्र अनेक ॥७॥ पंचमहाव्रत'विडिम' सम, तत्त्वविगति तसु खंध । तेनी शाखा भावना, मउर जि (जे) शुभनउं बंध ॥ ८ ॥ उत्तम सुरसुख तसु कुस (सु)म, मुगति ति फल अतिचं 1 महावृक्ष ते राखिवा, हियडइ अविहड रंग ॥ ९ ॥
॥ ढाल ॥
उत्तराध्ययनि बोल्या सोलमइंजी, बंभ समाहीठाण । कीधा उत्तम तरुवर पाखलिइंजी, ए दश वाडि समाण ॥ १० ॥
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भवियण भावइं निरतउ पालिइंजी, व्रतमांहि गुरुअउ बंभ । दंभ कदाग्रह दूर परहरी जी, नरभव लहिय दुर्लभ ॥ ११॥ ( आंचली) स्त्री पसु (शु) पंडक वसतिइं जिणइ वसइजी, तिह न करेवउ वास । इहनी संगति भलीय न जाणियइंजी, व्रतनउं करय विणा ॥ १२ ॥
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अगस्त २०१४
1. राजा. 2. यौवनवय, 3. तरी जनारा, 4. विचारी, 5. माळी, 6. बगीचो, 7. वृक्ष (?) 8. मोर.
भवियण भावई...

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